किशोरों को न्याय देने और उनको न्याय मिलने की न्यायिक व्यवस्था के होने पर आज सर्वाधिक बहस छिड़ी है. आज समाज में होने वाले कई संगीन व गंभीर अपराधों में किशोरों की भागीदारी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. हत्या, बलात्कार, डकैती, अपहरण जैसी संगीन घटनाएं आज किशोरों द्वारा बड़े पैमाने पर अंजाम दी जा रही हैं.
2014 में गिरफ्तार होने वाले किशोरों में 75 प्रतिशत संख्या सोलह साल से ज्यादा किशोरों की रही. कुल किशोर अपराधियों में से 90 प्रतिशत किशोर अपराधी दसवीं भी पास नहीं हैं. साथ ही 90 प्रतिशत किशोर अपराधी ऐसी आर्थिक व सामाजिक पृष्ठभूमि से हैं जिनके परिवारों की आमदनी साल में एक लाख से भी कम है.
किशोरों द्वारा किए गए कुल अपराधों में से 5.4 प्रतिशत अपराध बलात्कार के हैं जबकि 2.5 प्रतिशत अपराध हत्या से जुड़े हैं. साथ ही 5.5 प्रतिशत किशोर अपराधी दोबारा अपराध करने वाली श्रेणी में हैं. आज पांचवीं, छठवीं, सातवीं कक्षा से ही छोटे-छोटे बच्चे मर्यादाओं की सभी सीमाएं लांघ चुके हैं.
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ऐसे में जघन्य अपराधों में शामिल 16 से 18 साल के किशोरों के खिलाफ वयस्क अपराधियों की तरह मुकदमा चलाने के प्रावधान वाले किशोर न्याय (बालकों की देख-रेख) और संरक्षण अधिनियम, 2015 का पूरा क्रियान्वयन काफी चुनौतीपूर्ण है. यह एक नया कानून है जिसका मुख्य उद्देश्य तीन प्रकार की समस्याओं का समाधान करना है—(i) 16 से 18 साल के किशोर से संबंधित (ii) सुरक्षा, संरक्षा व विशेष देखभाल में रखे जाने वाले बच्चे तथा (iii) बच्चों का पुर्नवास और उनका सामाजिक रूप से उनका पुन: एकीकरण करना.
यह कानून बच्चों के मौलिक मानव अधिकारों के संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए बने कई संवैधानिक प्रावधानों के तहत बनाया गया है जिसमें संविधान के अनुच्छेद 15, 39, 45 व 47 महत्वपूर्ण हैं.
इस नए कानून की मंशा एक प्रतिरोधक के रूप में यह सुनिश्चित करने की है कि किशोर अपराध करने से बचें और अपनी जिंदगी खराब न करें. किशोर न्याय (बालकों की देखरेख) और संरक्षण अधिनियम, 2015 और बेहतर ढंग से बच्चों की देखभाल और उनका संरक्षण सुनिश्चित करेगा.
इस कानून के कुछ मुख्य प्रावधान इस प्रकार हैं –
(1) अधिनियम में 'किशोर' शब्द से जुड़े कई नकारात्मक संकेतों को खत्म करने के लिए 'किशोर' शब्द से 'बच्चे' शब्द की नामावली में परिवर्तन
(2) अनाथ, परित्यक्त और आत्मसमर्पित बच्चों की नई परिभाषाओं को शामिल किया गया है
(3) बच्चों के छोटे, गंभीर और जघन्य अपराध, किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) व बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) के अधिकारों, कार्यों और जिम्मेदारियों को और स्पष्ट किया गया है.
(4) किशोर न्याय बोर्ड द्वारा जांच में स्पष्ट अवधि नियत की गई है.
(5) 16 साल से ऊपर के बच्चों द्वारा किए गए जघन्य अपराध की स्थिति में विशेष प्रावधान है
(6) अनाथ, परित्यक्त और आत्मसमर्पित बच्चों को गोद लेने संबंधी नियमों पर अलग व नया अध्याय है.
(7) बच्चों के विरुद्ध किए गए नए अपराधों को शामिल किया गया.
(8) बाल कल्याण व देखभाल संस्थानों के पंजीकरण को अनिवार्य बनाया गया है.
धारा 15 के अंतर्गत 16-18 साल की उम्र के बाल अपराधियों द्वारा किए गए जघन्य अपराधों को लेकर विशेष प्रावधान किए गए हैं. किशोर न्याय बोर्ड के पास बच्चों द्वारा किए गए जघन्य अपराधों के मामलों को प्रारंभिक आकलन के बाद उन्हें बाल न्यायालय (कोर्ट ऑफ सेशन) को स्थानांतरित करने का विकल्प होगा.
मनोवैज्ञानिकों ने बाल-अपराधियों का उनकी व्यक्तिगत विशेषताओं या उनके व्यक्ति मनोवैज्ञानिक गतिकी के आधार पर मानसिक रूप से दोषपूर्ण, मानसिक रोग से पीड़ित तथा परिस्थितिजन्य एवं सांस्कृतिक वातावरण से विरक्त जैसी तीन श्रेणियों में रखा है.
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मनोवैज्ञानिकों ने अनेक ऐसे भी कारक गिनाए हैं जिनसे बाल-अपराधों में उत्तरोत्तर वृद्धि पाई गई है जैसे असुरक्षा की भावना, भय, अकेलापन, भावनात्मक द्वन्द्व, अपर्याप्त निवास, परिवार में सदस्यों का अति-बाहुल्य, निम्न जीवन स्तर, पारिवारिक अलगाव, पढ़ाई के बढ़ते बोझ के साथ-साथ सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक, आधुनिक सांस्कृतिक, मनोवैज्ञानिक एवं पारिवारिक कारक भी अपराध की ओर उन्मुख करते हैं.
बाल अपराध की वर्तमान स्थिति को देखते हुए भयावह कल्पना से रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि आखिर हमारी भावी पीढ़ी कहां जा रही है, इसकी मंजिल कौन-सी है और इसकी दशा और दिशा किधर है. प्रद्म्न हत्याकांड में एक किशोर का कथित तौर पर हाथ होना और चार साल की एक बच्ची के साथ उसी की कक्षा के एक बच्चे द्वारा कथित रूप से गलत हरकत करने जैसी घटनाएं इस बात की साफगोई से पुष्टि करती हैं आने वाली पीढ़ी वाकई उग्रता में है.
बालकों द्वारा किए गए अधिकांश अपराधों में से लगभग 2.3 प्रतिशत ही पुलिस और न्यायालय के ध्यान में आते हैं. बाल-अपराध के मुख्य कारकों में गरीबी और अशिक्षा सबसे महत्वपूर्ण आयाम हैं. बाल अपराध की दरें प्रारम्भ की किशोरावस्था 12-16 वर्ष में सबसे ऊंची है. बाल अपराध ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा नगरों में अधिक है.
अनेक शोध पत्रों से ज्ञात होता है कि अधिकांश बाल अपराध समूहों में किए जाते हैं. अमेरिका में भी ’शा’ और ‘मैके’ ने अपने अध्ययन में पाया कि अपराध करते समय 90.0% बच्चों के साथ उनके साथी थे.
बच्चों को इन बाल अपराध की समस्याओं से निकालने-उबारने तथा उनके विकास के लिए सर्वोपरि आवश्यकता है कि स्कूल व परिवार में बच्चों को समुचित ढंग से भावनात्मक पोषण मिले और साथ में इन्हें साहस तथा संबल भी प्रदान किया जाए. शिक्षकों तथा अभिभावकों की जागरूकता बच्चों की तमाम समस्याओं का समाधान कर सकती है.
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