प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी जापान यात्रा के दौरान भी पांच सौ और एक हजार रुपए के नोट बंद किए जाने के प्रकरण को भूले नहीं. जापान में भी लोगों ने तालियां बजाकर न केवल उनके इस फैसले का स्वागत किया, बल्कि प्रधानमंत्री ने सख्त लहजे में यह कहकर चौंकाया भी कि भ्रष्टाचार की कमाई को छुपाकर रखने वालों के खिलाफ अभी और भी कड़े कदम उठाए जाने हैं. लेकिन प्रधानमंत्री ने एक और बात कही कि एफडीआई की गति बहुत तेज है. आपको याद होगा कि एक हजार और पांच सौ के नोटों को बंद करने की तरह की भाजपा एफडीआई के भी बहुत खिलाफ थी.
पल- पल बदलते विचार
आखिर ऐसा क्या है कि सत्ता में आते ही एक ही बोली बालने लगते हैं. एक फैसला एक दल करे तो वह राष्ट्रहित हो जाता है और कोई दूसरा करे तो वह चीज़ देशविरोधी हो जाती है. आज एक का करना देशभक्ति है, तो इसे कोई दूसरा करने की सोचता था तो वह देशद्रोह जैसी चीज़ थी. यह ठीक ऐसा ही है कि मैं करूं तो कैरेक्टर ढीला और कोई दूसरा करके तो राज-लीला! बात चाहे पांच सौ और हज़ार के नोटों को बंद करने के फ़ैसले की हो या फिर एफ़डीआई की. काेई दूसरा दल जब ऐसा कर रहा था या करने की सोच रहा था तो वह देशद्रोह या आम जनता के खिलाफ फैसला कर रहा था और अब जब सत्ता में कोई और है तो यही फैसले सबसे प्यारे और मनमोहक हैं.
आप इसे कुछ बदलकर भी कह सकते हैं. आज जो लोग अचानक आलोचक की मुद्रा में आ गए हैं, वे गए समय में खुद ऐसे फैसले किया करते थे और उसकी तारीफ़ों के पुल बांधा करते थे. यानी सिंपल-सा फार्मूला ये है कि सत्ता में रहते हुए मेरे किए हुए सब फैसले परवरदिगार का फरमान हैं और आपकी आलोचना सिरे से खारिज करने वाली बात. अगर तुम सत्ता में आकर किसी ईश्वरीय इबारत काे भी लिख दो तो वह मेरे गले नहीं उतर सकती और उसकी खराबियां गिनाकर मैं आलोचना से भरे पन्नों या बयानों का ढेर लगा दूंगा.
बदलते वक्त का असर
वो जब पांच सौ और हजार के नोट बंद कर रहे थे तो भाजपा को लग रहा था कि यह आदमी को परेशान करने और उन चहेतों को बचाने के लिए है, जिनका भारत के कुल सकल घरेलू उत्पाद के बराबर कालाधन विदेशी बैंकों में जमा है. सरकार का यह फैसला उस समय गरीब लोगाें की गाढ़ी कमाई को मुश्किल में डाल देने वाला था. जो पैसा कल खून पसीने की कमाई और वक्त जरूरत के लिए कमाया हुआ बेशकीमती धन था, अब अचानक काला हो गया. आज यह फैसला देशभक्ति का सबसे बड़ा कदम है और आर्थिक अपराधियों की कमर तोड़ देने वाला मूसल प्रहार है, लेकिन कुछ समय पहले ऐसा करना मुश्किल सवालों में फंसे सत्तारूढ़ दल का मुद्दे से भागना और कालेधन को लेकर उठ रहे प्रश्नों पर जनता के असली मुद्दों को भ्रमित करने की कोशिश थी.
आज मोदी जी का जो फैसला अाम जनता को मुश्किल में डालने वाला है, लेकिन यही फैसला जब कोई और ले रहा था तो उन्हें लग रहा था कह यह जनकल्याणकारी है. कांग्रेस जब नोट बंद करने का सोच रही थी तो भाजपा को लग रहा था, 'सरकार का यह फैसला विदेशी बैंकों में अमेरिकी डॉलर, जर्मन ड्यूश मार्क और फ्रांसिसी फ्रांक आदि करेंसियों के रूप में जमा भारतीयों के कालेधन में से एक पाई भी वापस नहीं ला सकेगा. इससे साफ है कि सरकार का विदेश में जमा भारतीयों के कालेधन को वापस लाने का कोई इरादा नहीं है और वह केवल चुनावी स्टंट कर रही है.’ भाजपा के अनुसार उस समय इस निर्णय से दूर दराज के इलाकों के गरीबों की मेहनत की कमाई पर पानी फिर जाने का पूरा खतरा पैदा हो गया था, क्योंकि देश की 65 प्रतिशत आबादी के पास बैंक खातों की सुविधाएं नहीं हैं.
फायदा अपना-अपना
लेकिन अब सबके पास बैंक खाते मोदी जी ने खुलवा दिए हैं और कुछ ही समय में ठीक वैसा ही फैसला देशहितकारी हो गया है. क्योंकि जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी तो हजार और पांच सौ के नोट बंद करना बहुत गरीब और आदिवासी विरोधी था, क्योंकि ये लोग पाई पाई करके अपनी बेटियों की शादी ब्याह और अन्य वक्त जरूरत के लिए घर के आटे-दाल के डिब्बों आदि में धन छिपा कर रखते हैं. ये लोग ऐसे-ऐसे इलाकों में रहते हैं, जहां बैंकों की सुविधा नहीं होने के कारण अधिकतर लोग अपना धन 2005 के बाद की करेंसी से नहीं बदल पाएंगे या बिचौलियों के भारी शोषण का शिकार होंगे. लेकिन अब हर जगह बैंक खुल गए हैं और दो-ढाई साल में सब आदिवासी सुशिक्षित हो गए हैं.
केंद्र में सत्ता जब किसी और के पास थी तो देश की बहुत बड़ी आबादी ऐसी थी जिसे इस खबर का पता भी नहीं लग सकेगा और वक्त जरूरत के लिए जब वे अपना यह कीमती धन खर्च करने के लिए निकालेंगे तब उन्हें एहसास होगा कि उनकी कड़ी मेहनत की कमाई कागज का टुकड़ा भर रह गई है. जो निर्णय उस समय आम आदमी और आम औरत को परेशान करने तथा उन ‘चहेतों’ को बचाने के लिए था, जिनका भारत के कुल सकल घरेलू उत्पाद के बराबर का कालाधन विदेशी बैंकों में जमा है, वही फैसला अब ठीक उलट तरह की सोच पैदा कर रहा है. आज वही फैसला कुछ और असर कर रहा है, लेकिन उस वक्त कुछ और असर कर रहा था. यह सत्ता में रहने और सत्ता में न रहने के अंदाज का असर है.
जनता क्या करे ?
तो मित्रों, आप ये जान लो कि एफडीआई हो या किसी सरहद पर किसी सैनिक का मारा जाना, सर्जिकल स्ट्राइक हो या कोई आतंकवादी हमला, हमारे यहां हर दल की दो तरह की राय होती है. एक राय वह जब वो खुद सत्ता में होता और दूसरी राय वह जब वो विपक्ष में होता है. यही वह चीज है, जिसके लिए कहा जाता है कि जब मैं करूं तो कैरेक्टर ढीला और जब तुम करो तो पवित्र रासलीला. यह बिलकुल वाइसवरसा है. यह सिर्फ बीजेपी की या कांग्रेस की बात नहीं है. हर दल और हर नेता इसी दल-दल में खड़ा है. हम इसे इस तरह भी देख सकते हैं कि जब आज की सरकार ये फैसले ले रही है तो वह आलोचना का निशाना बन गई है, लेकिन जब खुद राहुल बाबा की पार्टी ऐसा करने का सोच रही थी तो वह लोककल्याण का मार्ग था. वह कॉरपोरेट का नहीं, समरसता का फैसला था.
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