पिछले शुक्रवार की सुबह कश्मीर के बारामुला जिले के एक मकान में करीब दो सौ युवा और उनके मां-बाप जमा हुए थे. जिस तरह वे आपस में फुसफुसाकर बात कर रहे थे, उससे उनका डर साफ झलक रहा था.
पिछले पांच महीनों की हिंसा के दौरान कश्मीर की पुलिस ने पत्थरबाजों पर 2400 से ज्यादा केस दर्ज किए हैं. इनमें से कई लड़के उस दिन बारामुला के डाक बंगले में जमा हुए थे. हालांकि ये कोई नई बात नहीं थी.
डाक बंगले के हॉल में एक तरफ सोफे पर पुलिस के बड़े अधिकारी बैठे हुए थे. खाकी जैकेट पहने हुए इम्तियाज हुसैन नाम का शख्स इन लोगों के यहां जमा होने की वजह समझा रहा था. इनमें से कई लड़के ऐसे थे जिन्हे पुलिस ने गिरफ्तार करने के बाद चेतावनी देकर छोड़ दिया था.
इम्तियाज हुसैन बारामुला जिले के एसएसपी हैं. वो लोगों से कह रहे थे कि हम आप लोगों की बात समझना चाहते हैं और ये भी चाहते हैं कि आप हमारी बात समझें. इस बैठक में मोहल्ला कमेटियों के सदस्य भी मौजूद थे. वहां जमा हुए लड़कों में कुछ नाबालिग भी थे.
पांच महीने में सिर्फ तकलीफें मिलीं
इम्तियाज हुसैन ने उन लोगों को समझाया कि पिछले पांच महीनों में शोर-शराबे और नारेबाजी में उनके हाथ सिर्फ तकलीफें और बर्बादी ही आई हैं.
ये पहली बार है कि जम्मू-कश्मीर में हिंसा के ताजा दौर के बीच वहां की पुलिस आम लोगों से संवाद कर रही है. युवाओं को समझाने की कोशिश कर रही है. हिंसा का ये दौर हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकवादी बुरहान वानी के एनकाउंटर में मौत के बाद शुरू हुआ था.
तब से जब भी जनता और पुलिस आमने-सामने होती है, पत्थरबाजी शुरू हो जाती है. गोलियां चलती हैं और भगदड़ मचती है. लेकिन इस मीटिंग में जब पुलिसवाले, पब्लिक से मुखातिब हुए तो महफिल में सन्नाटा पसरा हुआ था. जब इम्तियाज हुसैन बोल रहे थे तो वहां मौजूद सभी लोग बड़े ध्यान से उन्हें सुन रहे थे.
इम्तियाज हुसैन ने कहा, 'तुम हमारे ही बच्चे हो. तुम्हारा भविष्य तुम्हारे ही हाथों में है. तुम्हें सही और गलत में फर्क करना सीखना होगा. हम तुम्हें सिर्फ रास्ता दिखा सकते हैं. तुम्हें रास्ता खुद ही चुनना है'.
डाक बंगले के अंदर का माहौल बेहद भावुकता भरा था. लेकिन पांच महीने से जारी हिंसा की वजह से यहां लोग बेहद गुस्से में हैं. इसे अगर नहीं दूर किया गया तो इसके गंभीर नतीजे हो सकते हैं.
श्रीनगर के मनोवैज्ञानिक डॉक्टर अरशद हुसैन कहते हैं कि गुस्से के इस मनोविज्ञान को सब लोग नहीं समझ पा रहे हैं. लोगों में हताशा का माहौल है. ऐसे में उन्हें काउंसलिंग की सख्त जरूरत है.
हॉल के अंदर एक लड़के ने खड़े होकर पुलिसवालों से कहा कि उन पर चल रहे केस से कुछ रियायत मिलनी चाहिए. लड़के ने कहा कि अगर किसी पर आठ केस दर्ज हैं तो उसे जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए, ताकि वो सामान्य जिंदगी जीने की कोशिश करे. फिर आम लोगों ने पुलिस और सुरक्षा बलों की ज्यादतियों की शिकायत की. कुछ लोगों ने कहा कि जब पुलिस, सीआरपीएफ और सेना के जवान पत्थरबाजों को गिरफ्तार करने आते हैं तो वो पूरे इलाके पर कहर बरपा देते हैं. लोगों के घरो की खिड़कियां तोड़ते हैं, विरोध करने वालो को मारते-पीटते हैं.
7800 से ज्यादा हुए गिरफ्तार
8 जुलाई से शुरू हुई हिंसा के ताजा दौर में जम्मू-कश्मीर की पुलिस ने 7800 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया है. इनमें से 350 लोग राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तार किए गए हैं. सूत्रों के मुताबिक गिरफ्तार लोगों में से 5500 को सिर्फ चेतावनी देकर छोड़ दिया गया.
पत्थरबाजों को पकड़ने के लिए पुलिस अपने मुखबिरों के अलावा सीसीटीवी कैमरों की मदद ले रही है. इससे पत्थरबाजों पर शिकंजा कस रहा है. पुलिसवालों का मानना है कि जो युवा काउंसलिंग के लिए आ रहे हैं, वे हिंसा भड़कने पर फिर पत्थर फेंकने के काम में लग जाएंगे. बहुत कम ही ऐसे होंगे जो हिंसा का रास्ता छोड़ेंगे.
इम्तियाज हुसैन ने बताया कि पुलिस की कोशिश है कि वो लोगों को हिंसा के नुकसान के बारे में समझाए. युवाओं को ये समझाए कि वो पत्थरबाजी के बजाय पढ़ाई पर ध्यान दें. ऐसे तरीकों से ही उन्हें हिंसा के रास्ते से दूर किया जा सकता है. उन्हे समझना होगा कि हिंसा से उन्हें कुछ भी नहीं हासिल होगा. जो लोग उन्हें हिंसा के लिए उकसा रहे हैं, वो सिर्फ अपना हित साध रहे हैं.
केंद्र सरकार की तरफ से आम लोगों से संवाद की कोई ठोस कोशिश नहीं हुई है. सिर्फ स्थानीय पुलिस की इस कोशिश से कुछ ज्यादा उम्मीदें नहीं हैं.
इम्तियाज हुसैन का मानना है कि ऐसी बैठकों से एक बात तो साफ है कि सुरक्षा बलों को भी समझ में आ रहा है कि हिंसा का रास्ता ठीक नहीं. इसलिए वो आम लोगों से मेल-जोल बढ़ाने, उन्हें समझाने में जुटे हैं. इससे कश्मीर के युवाओं का भविष्य ही दांव पर लगा है. इम्तियाज हुसैन लोगों को हिंसा के लिए भड़काने वालों से अपील करते हैं कि वो नौजवानों के भविष्य का ख्याल करके उन पर रहम करें.
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