आज से ठीक 20 साल पहले 11 मई 1998 को जब पूरी दुनिया सो रही थी. यहां तक कि सीआईए (सेंट्रल इंटेलीजेंस एजेंसी) भी भांप नहीं सकी कि भारत में क्या हो रहा है. तब प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने इसी दिन राजस्थान के पोकरण में एटमी परीक्षण कर दुनिया को चौंका दिया था.
See this awesome video on #Pokhran2... Must watch!! How India became atomic power on this day. #Pokhran pic.twitter.com/sw1eSpAAuD
— Harshil Mehta હર્ષિલ (@Harshil_S_Mehta) May 11, 2018
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और देश के नामी एटमी वैज्ञानिक और 'मिसाइलमैन' के नाम से मशहूर एपीजे अब्दुल कलाम की अगुआई में यह ऐसा अभियान था जिसने दुनिया में भारत का लोहा मनवाया. 11 मई 1998 के दिन पोकरण पार्ट-2 से पहले 1974 में इंदिरा गांधी की सरकार ने पहला एटमी परीक्षण (पोकरण-1) कर दुनिया को चौंकाया था, जिसे ऑपरेशन 'स्माइलिंग बुद्धा' नाम दिया गया.
हालांकि 1974 के परीक्षण के बाद भारत के वैज्ञानिकों ने एटमी बम बनाने की क्षमता तो पा ली लेकिन उसे धरातल पर उतारने का काम पोकरण पार्ट-2 के बाद हो सका. इसी परीक्षण के बाद भारत उन देशों में शुमार हो गया जिन्हें पूर्ण रूपेण एटमी क्षमतावान देशों का दर्जा प्राप्त था.
भारत में इस खास दिन को टेक्नोलॉजी डे के रूप में भी मनाते हैं. भारत में वैज्ञानिक और तकनीकी विकास को रेखांकित करने के लिए इस दिन का खास महत्व है.
सीआईए की निगरानी को ठेंगा
पोकरण परीक्षण ऐसा था जिसे सीआईए की पूरी मशीनरी नहीं भांप सकी, जबकि इस खुफिया एजेंसी का काम पूरी दुनिया मानती रही है. भारत के एटमी वैज्ञानिकों ने इसके लिए पूरी तैयारी की थी. यहां तक कि सीआईए के सैटेलाइट का पूरा-पूरा अध्ययन किया गया. कौन सैटेलाइट ऑरबिट में कब कहां से गुजरेगा, इस पर मुकम्मल माथापच्ची हुई.
वैज्ञानिकों ने अमेरिका के केएच-11 सैटेलाइट की रियल-टाइम गतिविधि का पता लगाया कि वह पोकरण के मरूस्थली इलाकों के उपर से कब गुजरेगा. इसका खतरा ये था कि सैटेलाइट पोकरण में हो रही गतिविधियों की तस्वीर सीधा सीआईए को भेजता. इसके बाद पोकरण परीक्षण हो पाना मुमकिन नहीं था. इसके लिए भारत के वैज्ञानिकों ने हर वो मुमकिन कोशिश ताकि सैटेलाइट की नजरों से बचा जा सके.
सैटेलाइट की निगरानी में पोकरण के इलाके दिनभर में 2-3 बार आते. इससे बचने के लिए भारत के वैज्ञानिकों ने उस समय में कोई भी तैयारी करने से खुद को रोका. सारे सामान भी या तो ढंक दिए गए. सैटेलाइट के गुजरने की अवधि ज्योंहि खत्म होती, परीक्षण का काम फिर जोरों पर शुरू हो जाता. इस तरह दुनिया की नजरों से बचते-बचाते 11 मई 1998 को भारत ने इतनी बड़ी कार्रवाई की.
क्यों जरूरी था एटमी परीक्षण
एटमी परीक्षण के वक्त एटमी वैज्ञानिक अनिल काकोदकर भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के निदेशक थे. वे 1974 के परणाणु परीक्षण में भी अहम भूमिका निभा चुके थे. उस वक्त भारत के लिए यह टेस्ट कितना जरूरी था, इस बारे में उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को बताया. काकोदकर के मुताबिक, 1974 के बाद पाकिस्तान एटमी हथियार बनाने और जुटाने में लग गया था.
चीन इस काम में पाकिस्तान की मदद कर रहा था. यह बात किसी से छुपी नहीं थी, पूरी दुनिया इसे जानती थी. भारतीय सेना को भी यह पता था कि पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं. ऐसे में भारत पड़ोस के दो परमाणु संपन्न देशों से घिरा था. भारत को इस दशा में अगर विकास करना था, चाहे वह आर्थिक स्तर पर हो या सामरिक या फिर रणनीति, तो उसे इन दोनों पड़ोसियों को कतई नजरंदाज नहीं करना था. इसके लिए भारत को भी एटमी हथियारों की जरूरत बनती गई. हालात ऐसे बने कि कि भारत को कोई कड़ा फैसला लेना था. मामला कई प्रधानमंत्रियों तक पहुंचा लेकिन सीटीबीटी के चक्कर में बात नहीं बन पा रही थी.
अंततः भारत ने फैसला लिया और 11 मई 1998 को परीक्षण किया. इसके बाद दुनिया भारत को 'परमाणु संपन्न' राष्ट्र की नजरों से देखने लगी.
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