सीबीआई, उन 150 लेटर ऑफ अंडरस्टैंडिंग की पड़ताल कर रही है, जिनकी मदद से हीरा व्यापारी नीरव मोदी 11 हजार 360 करोड़ रुपए लेकर विदेश भाग निकला है. ये लेटर ऑफ अंडरस्टैंडिंग सरकारी बैंक पंजाब नेशनल बैंक ने जारी किए थे. सीबीआई के सूत्रों के मुताबिक जांच एजेंसी ने अब तक नीरव मोदी और उसके साथियों के 20 से ज्यादा ठिकानों की पड़ताल की है. तफ्तीश के दौरान सीबीआई के अधिकारियों के हाथ पीएनबी घोटाले से जुड़े 95 अहम दस्तावेज लगे हैं.
सीबीआई के सूत्रों ने कहा कि, 'ये 95 दस्तावेज असल में आयात के बिल की अर्जियां हैं, जिनके आधार पर पंजाब नेशनल बैंक ने नीरव मोदी के हक में एलओयू यानी लेटर ऑफ अंडरस्टैंडिंग जारी किए. बैंक ने हमारे पास दो और शिकायतें की हैं. साथ ही पीएनबी ने घोटाले से जुड़े कुछ और दस्तावेज भी हमारे हवाले किए हैं. हम इनकी जांच कर रहे हैं. हमने बैंक से कुछ और कागजात भी मांगे हैं. साथ ही बैंक से कहा है कि वो अपनी ऑडिट रिपोर्ट भी दे, ताकि हम इस सवाल का जवाब तलाश सकें कि इतनी बड़ी रकम होने के बावजूद ऑडिट करने वाले ने इस पर सवाल क्यों नहीं उठाया.'
बैंक ने सीबीआई को दी सारी जानकारी
बैंक ने सीबीआई को अपनी शिकायत में बताया है कि उसके दो कर्मचारियों गोकुलनाथ शेट्टी और मनोज खरात ने नियम-कायदों को ताक पर रखकर नीरव मोदी के लिए फर्जी तरीके से एलओयू जारी किए. बैंक का ये भी दावा है उसके दस्तावेजों में इसकी एंट्री भी देर से की गई, ताकि गड़बड़ी का पता न चल सके. पंजाब नेशनल बैंक के एमडी सुनील मेहता ने कहा कि, 'ये फर्जीवाड़ा 2011 में शुरू हुआ था और 16 जनवरी 2018 तक चलता रहा. उस दिन अमेरिका की मेसर्स डायमंड आर, मेसर्स सोलर एक्सपोर्ट और मेसर्स स्टेलर डायमंड ने बैंक की मिड कॉरपोरेट शाखा मुंबई से संपर्क किया. इन तीनों ने गुजारिश की कि उन्हें खरीदारी का क्रेडिट दिया जाए ताकि विदेशी सप्लाई का भुगतान किया जा सके'.
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पंजाब नेशनल बैंक ने सीबीआई से जो शिकायत की है. उसके मुताबिक, 'चूंकि इन कंपनियों के नाम पर कोई पहले से तय रकम की इजाजत नहीं थी. इसलिए पीएनबी मिड कॉरपोरेट शाखा के अधिकारियों ने इन कंपनियों से कहा कि विदेश में भुगतान के एवज में वो उतनी ही नकद रकम जमा करें, ताकि उन्हें खरीदारी के लिए एलओयू जारी किया जा सके. जब इन कंपनियों ने कहा कि वो तो ये सुविधा काफी दिनों से ले रही हैं, तो बैंक ने अपने दस्तावेजों की पड़ताल की. पता चला कि इस बात की कोई एंट्री है ही नहीं'.
वित्त मंत्रालय को बैंक पर यकीन नहीं
लेकिन वित्त मंत्रालय के अधिकारियों को बैंक के इन दावों पर यकीन नहीं है. वित्त मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि बैंक में हुए लेन-देन में कुछ तो ऐसा जरूर है, जिससे ये लेन-देन अधूरा लग रहा है. वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पूरे मामले में बड़ी गड़बड़ी हुई है. सबसे अजीब बात तो ये है कि दूसरे बैंकों ने पीएनबीए के लेटर ऑफ अंडरस्टैंडिंग को बिना अपने स्तर पर जांचे परखे आंख मूंदकर मान लिया.
इस अधिकारी ने कहा कि, 'अव्वल तो ये कि इसमें पीएनबी की तरफ से गड़बड़ी हुई. हर रोज काम खत्म होने के बाद हर लेन-देन का, पाई-पाई का हिसाब मिलाया जाता है. अगर पैसा बैंक से बाहर गया, तो किसने दिया? किसकी जिम्मेदारी है? अगर फर्जीवाड़ा हुआ, तो 2011 में हुए पहले ही लेन-देन के बाद इसका सत्यापन क्यों नहीं हुआ? रिजर्व बैंक खुद भी बैंकों का ऑडिट करता है. बैंक का खुद का लेखा-जोखा होता है. अगर भुगतान हुआ, तो ये कहीं तो दर्ज होना चाहिए था. अगर दो कर्मचारी ही इतने बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी कर सकते हैं. तो, यकीनन ये बैंक के कामकाज पर बहुत बड़ा सवाल है.'
पंजाब नेशनल बैंक के एमडी सुनील मेहता ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि उनका बैंक इस मामले में पीड़ित भी है और उसी ने मामले पर से पर्दा भी उठाया. लेकिन प्रवर्तन निदेशालय के जो अधिकारी मेहता की प्रेस कांफ्रेंस देख रहे थे, उनके लिए ये दावा चौंकाने वाला था. प्रवर्तन निदेशालय ने सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फिनांनशियल टेलेकम्युनिकेशन यानी SWIFT के जरिए हुए लेन-देन के दस्तावेज मांगे हैं. इनमें विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम यानी फेमा के नियमों में क्या गड़बड़ियां हुईं, इनका पता लगाया जाएगा. इन मामलों में क्लियरेंस देने में कई बार एक हफ्ते तक का वक्त लग जाता है.
क्या बैंक को ऑडिट में कोई गड़बड़ी नहीं मिली थी?
प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारी ये भी जानना चाहते हैं कि क्या पिछले सात सालों में एक बार भी पीएनबी की तरफ से जारी एलओयू (Letter of Understanding) को उस ब्रांच में सत्यापन के लिए भेजा गया, जहां से ये जारी हो रहे थे. अगर ऐसा नहीं हुआ, तो क्या कभी भी बैंक के विदेशी लेन-देन के ऑडिट में इन पर सवाल नहीं उठाए गए? पीएनबी के सुनील मेहता ने कहा कि ये बीमारी 2011 में लगी थी और अब इसकी सर्जरी की जरूरत है.
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प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारी ये तो मानते हैं कि इस घोटाले के लिए सुनील मेहता को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. लेकिन वो ये जरूर कहते हैं कि सुनील मेहता ने अपने कर्मचारियों गोवर्धन शेट्टी और मनोज खरात के काम करने का तरीका बताकर बैंक की कमियों को छुपाने की कोशिश की है. ये कमी गड़बड़ लेन-देन की रोकथाम में नाकामी की है.
प्रवर्तन निदेशालय के एक अधिकारी ने कहा कि, 'पंजाब नेशनल बैंक ने इतने बड़े घोटाले की भनक लगते ही आनन-फानन में शिकायत दर्ज करा दी. हालांकि बैंक ये दावा जरूर कर रहा है कि उसने अपने स्तर पर पूरे मामले की गहराई से पड़ताल की. मगर ऐसा लग नहीं रहा. शेट्टी और खराट ने अपने स्तर पर एलओयू जारी जरूर किए, मगर उन्होंने इन्हें मंजूरी के लिए ऊपरी अधिकारियों को तो जरूर भेजा होगा. किसी ने इस पर सवाल क्यों नहीं उठाया? क्या अधिकारियों ने आंखें मूंदी हुई थीं. अगर ऐसा है, तो पंजाब नेशनल बैंक के काम-काज के तरीके पर बहुत बड़ा सवालिया निशान लगता है.'
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प्रवर्तन निदेशालय ने नीरव मोदी, उसकी पत्नी अमी नीरव, भाई निशाल मोदी और मामा मेहुल चोकसी के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी किया है. नीरव मोदी एक जनवरी 2018 को भारत छोड़कर चला गया था. उसकी पत्नी भी 6 जनवरी को देश से भाग गई थी. कहा जा रहा है कि नीरव की पत्नी अमी अमेरिकी नागरिक है. सूत्रों के मुताबिक पीएनबी का पूर्व डिप्टी मैनेजर गोकुलनाथ शेट्टी भी अपने पते पर नहीं मिला. वो भी फरार हो गया है. सरकारी आंकड़ों में दर्ज उसका पता किराए पर उठा है.
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