हांगकांग में सार्वजनिक क्षेत्र के भारतीय बैंकों के संचालन में अनियमितताओं को लेकर फ़र्स्टपोस्ट के खुलासे के बाद से चीन चौकन्ना हो गया है. चीन के बैंकिंग नियामक ने स्पेशल एडमिनिस्ट्रेटिव रीजन (SAR) में बाकायदा एक क्लीन अप ऑपरेशन (सफाई) अभियान शुरू किया है. जिसके तहत स्पेशल एडमिनिस्ट्रेटिव रीजन में काम कर रहीं सभी भारतीय बैंकों की कठोर समीक्षा की जा रही है. इसमें ऑन साइट एग्जामिनेशन (मौके पर जाकर मुआयना करना) और क्रेडिट रिस्क मैनेजमेंट प्रोसेस (ऋण जोखिम की प्रबंधन प्रक्रियाओं) की समीक्षा भी शामिल है.
फ़र्स्टपोस्ट ने पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) की हांगकांग और दुबई ब्रांच की फाइलों के आधार पर पिछले हफ्ते खुलासा किया था कि हीरा कारोबारी नीरव मोदी की बैंक के आला अधिकारियों के साथ मिलीभगत थी. पीएनबी की हांगकांग और दुबई ब्रांच से नीरव मोदी की कंपनियों के नाम कई फर्जी लेटर्स ऑफ अंडरटेकिंग (एलओयू) जारी किए गए. बिना बिल या फर्जी बिल के जरिए जारी किए गए इन एलओयू में निर्यातक (एक्सपोर्टर) का विवरण देने के बजाय ‘XYZ’ लिखा गया था. फर्जी लेटर्स ऑफ अंडरटेकिंग के आधार पर नीरव मोदी की अलग-अलग कंपनियों ने पीएनबी से करोड़ों डॉलर की रकम निकाली. जाहिर है यह सारा गोलमाल बैंक के आला अफसरों की सहमति के बिना संभव नहीं है.
बिना किसी लिखित अनुरोध के जारी किए बायर्स क्रेडिट
पीएनबी घोटाले से जुड़ी बैंक की दुबई और हांगकांग ब्रांच की फाइलों का फ़र्स्टपोस्ट ने अध्ययन किया है. फाइलों के मुताबिक बैंक ने कई बार बिना किसी लिखित अनुरोध के नीरव मोदी की कंपनियों के नाम बायर्स क्रेडिट जारी किए. कुछ मामलों में जब बैंक की दुबई और हांगकांग ब्रांच को यह लगा कि बिना लिखित अनुरोध के बायर्स क्रेडिट मंजूर करने से बात बिगड़ सकती है, तब बायर्स ने क्रेडिट के रूप में जारी की गई रकम को वापस ले लिया. हालांकि कई बार बैंक की दुबई और हांगकांग ब्रांच में फर्जीवाड़े का विवरण और जानकारियां पीएनबी के हेड ऑफिस को विधिवत तरीके से भेजी गईं. लेकिन फाइलें बताती हैं कि फर्जीवाड़े में शामिल किसी भी बैंक अधिकारी पर कोई कार्रवाई नहीं की गई.
फ़र्स्टपोस्ट ने हांगकांग की फाइलों के संबंध में पीएनबी के मैनेजिंग डायरेक्टर सुनील मेहता से कुछ सवाल पूछे थे. यह सवाल फर्जी बायर्स क्रेडिट, बैंक की कमजोर कड़ियों, बैंक के डाटा और फर्जीवाड़े में शामिल बैंक के आला अधिकारियों के संबंध में थे. फ़र्स्टपोस्ट ने इन सवालों पर सुनील मेहता की टिप्पणी मांगी थी. लेकिन पीएनबी के मैनेजिंग डायरेक्टर सुनील मेहता ने अबतक उनमें से किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया है.
इससे पहले, फ़र्स्टपोस्ट ने 13 अप्रैल को खुलासा किया था कि 13 हजार करोड़ के पीएनबी घोटाले से जुड़े सभी सरकारी स्वामित्व वाले बैंक एक ही ऑडिटर (लेखा परीक्षक) की सेवाएं ले रहे थे. वह ऑडिटर चीन की तीन स्मॉल स्ट्रीट फर्म्स (मामूली व्यापारिक कंपनियों) का इस्तेमाल रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के रोटेशन नॉर्म्स (आवर्तन नियमों) को गच्चा देने के लिए कर रहा था.
SBI और एक निजी बैंक को छोड़कर बाकी सभी भारतीय निजी बैंकों पर कड़ी निगरानी
फ़र्स्टपोस्ट के खुलासे में यह भी सामने आया कि भगोड़े हीरा कारोबारी नीरव मोदी और उसके मामा मेहुल चौकसी को फर्जी लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (एलओयू) जारी किए जाने के मामले में किसी भी बैंक ने शिकायत नहीं की थी. सरकारी स्वामित्व वाले सभी बैंकों के इकलौते ऑडिटर ने भी इतनी बड़ी धोखाधड़ी की रिपोर्ट नहीं की. जबकि इस ऑडिटर का काम भारतीय बैंकों के कामकाज और पैसों के लेनदेन के लेखा परीक्षण (ऑडिट) की औपचारिकताएं पूरी करना था.
गुप्त सूत्रों से फ़र्स्टपोस्ट को मिली जानकारी के मुताबिक हांगकांग मॉनिटरी अथॉरिटी (HKMA) ने भारतीय स्टेट बैंक (SBI) और एक निजी बैंक को छोड़कर बाकी की लगभग सभी भारतीय बैंकों की कड़ी निगरानी शुरू कर दी है. यानी HKMA द्वारा सभी भारतीय बैंकों की समीक्षा और निरीक्षण का काम किया जा रहा है. इसके तहत बैंकों से कहा गया है कि वे नियामक (रेगुलेटर) को इस बात के लिए संतुष्ट करें कि उनकी शाखाओं (बैंक ब्रांचेज़) का वाणिज्यिक संचालन (कमर्शियल ऑपरेशन) दुरुस्त है.
सूत्रों के मुताबिक, 'जब से यह रिपोर्ट सार्वजनिक हुई है कि सभी बैंक एक ही ऑडिटर की सेवाएं ले रहे थे, उसके बाद से HKMA ने प्रत्येक बैंक से नियामक (रेगुलेटर) को इस बात का विश्वास दिलाने के लिए कहा है कि उनके पास अपनी बैंक का मजबूत आंतरिक नियंत्रण है. साथ ही, HKMA ने भारतीय बैंकों से जल्द से जल्द समीक्षा कराने या ऑनसाइट एग्जामिनेशन (मौका मुआयना) के लिए तैयार रहने के लिए भी कहा है. दो भारतीय बैंकों का ऑनसाइट एग्जामिनेशन का काम अभी भी प्रक्रिया में है. इसके अलावा HKMA ने भारतीय बैंकों को अपना ऑडिटर बदलने का सुझाव भी दिया है. साथ ही यह भी पूछा है कि, आखिर सभी भारतीय बैंक पिछले आठ-नौ सालों से एक ही ऑडिटर की सेवाएं क्यों लेते आ रहे हैं.'
सूत्रों ने आगे बताया कि ऑडिटर जी नटराजन फिलहाल भारतीय जांच एजेंसियों और HKMA के रडार पर है. उसके कामकाज के तरीकों, गतिविधियों और अतीत की पड़ताल की जा रही है. वहीं लगभग सभी बैंकों ने आगामी वित्तीय वर्ष से ऑडिटर नटराजन की सेवाएं न लेने का फैसला किया है.
क्रेडिट रिस्क मैनेजमेंट की होगी समीक्षा
हांगकांग में सार्वजनिक क्षेत्र के 9 भारतीय बैंक ऑपरेट (परिचालन) करते हैं. इन बैंकों की हांगकांग में 13 ब्रांच हैं. इनके अलावा तीन निजी भारतीय बैंक भी हांगकांग में कामकाज करते हैं. पता चला है कि HKMA ने इन सभी बैंकों को अपने क्रेडिट रिस्क मैनेजमेंट (ऋण जोखिम का प्रबंधन) की समीक्षा सेक्शन 59 (2) के तहत कराने के लिए चार बड़ी ऑडिट फर्मों में से किसी एक से कराने को कहा है.
सूत्रों का कहना है कि, 'यह समीक्षा भारतीय बैंकों के लिए घातक साबित हो सकती है, क्योंकि प्रतिकूल नतीजे आने पर बैंकों को न सिर्फ भारी जुर्माना भरना पड़ सकता है बल्कि नियामक द्वारा उनके खिलाफ दंडात्कामक कार्रवाई भी की जा सकती है. अतीत में हांगकांग में किसी भी भारतीय बैंक को कभी भी इतनी कठोर समीक्षा से नहीं गुजरना पड़ा है. हालांकि हांगकांग मॉनिटरी अथॉरिटी (HKMA) ने सभी भारतीय बैंकों को ऑडिटर नटराजन से वित्तीय वर्ष 2017-18 का ऑडिट (लेखापरीक्षा) पूरा कराने की इजाजत दे दी है. लेकिन यूनियन बैंक ऑफ इंडिया को छोड़कर बाकी की लगभग सभी बैंकों ने ऑडिटर नटराजन से आगे और सेवाएं नहीं लेने का फैसला किया है. दिलचस्प बात यह है कि हितों के स्पष्ट टकराव के बावजूद नटराजन यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के लिए इंटरनल ऑडिटर (आंतरिक लेखा परीक्षक) और स्टेट्यूटरी ऑडिटर (वैधानिक लेखा परीक्षक) दोनों थे. यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने कथित रूप से चीन की छोटी और मामूली ऑडिट फर्मों के साथ काम जारी रखने का फैसला किया है. ऐसी संभावना जताई जा रही है कि यह छोटी चीनी ऑडिट फर्म्स छद्म रूप से वर्तमान ऑडिटर के लिए ही काम करती हैं.'
फ़र्स्टपोस्ट ने ईमेल द्वारा यूनियन बैंक ऑफ इंडिया से कुछ सवाल पूछे थे. जिनका जवाब अभी तक नहीं आया है. बार-बार कोशिशों के बावजूद हांगकांग में पीएनबी के चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर (मुख्य कार्यकारी अधिकारी) भी फ़र्स्टपोस्ट के सवालों का जवाब देने के लिए सामने नहीं आए. जबकि इंडियन ओवरसीज बैंक (आईओबी) हांगकांग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने HKMA की सख्ती और कार्रवाई पर अपनी जुबान खोलने से इनकार कर दिया.
जांचकर्ताओं के मुताबिक, अगर नीरव मोदी और मेहुल चौकसी ने हांगकांग में बड़े पैमाने पर बैंकिंग फ्रॉड (वित्तीय धोखाधड़ी) की है तो उसे आसानी के साथ उजागर किया जा सकता है. जांचकर्ताओं का कहना है कि पांच बैंकों ने नीरव मोदी की कंपनियों को एलओयू की रियायत दी, लेकिन ऑडिटर ने कभी भी समकक्ष बैंक (काउंटरपार्ट बैंक) यानी पीएनबी से बकाया राशि की पुष्टि नहीं की.
हांगकांग में ऑडिट में नाकामी के चलते जल्दी सामने नहीं आया स्कैम
जांचकर्ताओं ने आगे बताया कि, 'नीरव मोदी की कंपनियों को बेरोकटोक एलओयू जारी किए जाने की जानकारी अगर दिल्ली में पीएनबी की वित्तीय टीम को मिल जाती तो विसंगतियों और अनियमितताओं को आसानी से पकड़ा जा सकता था. क्योंकि जब पीएनबी की वित्तीय टीम जांच करती तब कोर बैंकिंग सल्यूशन (CBS) के साथ राशि मेल नहीं खाती. पीएनबी घोटाला सात साल से ज्यादा समय तक पकड़ में न आने की मुख्य वजह हांगकांग में ऑडिट की नाकामी है. जबकि एक अच्छा ऑडिटर सिर्फ एक साल में समस्या की पहचान कर सकता है. पांच बैंकों के साथ सात साल तक धोखाधड़ी चलती रही लेकिन ऑडिटर को आखिर तक इसकी भनक तक नहीं लगी. अब इस मामले की जांच में हांगकांग और भारत के बीच सहयोग पर सहमति की उम्मीद की जा रही है.'
फ़र्स्टपोस्ट के खुलासे के बाद भारतीय बैंकों के खिलाफ कार्रवाई के बारे में पूछे जाने पर HKMA के प्रवक्ता ने ब्योरा देने से इनकार कर दिया है. HKMA के प्रवक्ता ने कहा कि नियामक की ओर से व्यक्तिगत मामलों पर टिप्पणी नहीं जा सकती है. हालांकि प्रवक्ता ने यह जरूर बताया कि HKMA उम्मीद करता है कि हांगकांग में ऑपरेट कर रही सभी बैंकों में उचित नियंत्रण प्रणाली स्थापित हो. साथ ही यह भी सुनिश्चित हो कि सभी बैंकों का ऋण जोखिम प्रभावी रूप से व्यवस्थित है.
HKMA के प्रवक्ता ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया, 'ऋण जोखिम प्रबंधन (क्रेडिट रिस्क मैनेजमेंट) के संबंध में बैंकों के लिए हमारे निरीक्षणात्मक दिशानिर्देशों के मुताबिक, ऋण योग्यता (क्रेडिट वर्दीनेस) और ऋण लेने वाले की पुनर्भुगतान क्षमता का आकलन बेहद जरूरी है. इसके अलावा क्रेडिट विस्तार (क्रेडिट एक्सटेंशन) के बाद ऋण लेने वाले की अंतिम स्थिति की बारीकी से निगरानी करने के लिए प्रभावी सिस्टम की आवश्यकता है. HKMA की निरीक्षणात्मक गतिविधियां (ऑनसाइट एग्जामिनेशन समेत) बताती हैं कि, अगर किसी बैंक के पास ऋण देने के व्यवसाय के लिए प्रभावी सिस्टम नहीं हैं, तो हम उस बारे में बैंक प्रबंधन से बात करेंगे और उचित निरीक्षणात्मक कार्रवाई करने पर विचार करेंगे. पेशेवर सेवाएं प्रदान करने या बैंकिंग ऑर्डिनेंस (बैंकिंग अध्यादेश) के तहत आवश्यक कार्य करने के लिए बाहरी लेखापरीक्षा फर्मों (एक्सटर्नल ऑडिट फर्म्स) के चयन के संबंध में बैंक प्रबंधन को व्यक्तिगत तौर पर स्वयं संतुष्ट होना चाहिए कि यह सेवा योग्य और सक्षम पेशेवरों द्वारा की जाएगी.'
फ़र्स्टपोस्ट ने खुलासा किया था कि चार्ल्स एचसी चेंग एंड सीपीए लिमिटेड और डब्ल्यूवाई लैम एंड कंपनी जैसी चीन की छोटी और लगभग गुमनाम फर्म्स कैसे पिछले कुछ सालों से नटराजन के साथ मिलकर पीएनबी, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI), इलाहाबाद बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, एक्सिस बैंक, यूको बैंक और बैंक ऑफ इंडिया के बहीखातों का ऑडिट कर रही हैं. फर्स्टपोस्ट ने यह भी उजागर किया था कि इन बैंकों के बोर्ड, ऑडिट कमेटी और बैंकिंग नियामक भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने कैसे इन फर्मों को मंजूरी दी थी.
हांगकांग में भारतीय बैंकों के ऑडिट में भारी अनियमितताओं को लेकर फ़र्स्टपोस्ट ने आरबीआई से कुछ सवाल पूछे थे. जिनका जवाब देने से आरबीआई ने इनकार कर दिया. इस मामले में फर्स्टपोस्ट ने हांगकांग में ऑपरेट करने वाली भारतीय बैंकों और उनके ऑडिटर यानी नटराजन की फर्म से भी कुछ सवाल पूछे. उनकी तरफ से भी फ़र्स्टपोस्ट को जवाब देने से इनकार कर दिया गया.
पीएनबी ने ठहराना इंटरनल सिस्टम को जिम्मेदार
घोटाले को लेकर पीएनबी ने एक आंतरिक रिपोर्ट नई दिल्ली स्थित अपने फॉड रिस्क मैनेजमेंट डिवीजन को भेजी है. जिसमें आरोप लगाया गया है कि विदेश में ऑपरेट कर रही भारतीय बैंकों में अनियमितताओं के लिए उनका आंतरिक सिस्टम जिम्मेदार है. ऐसा इसलिए क्योंकि बैंकों के आंतरिक सिस्टम बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी का पता लगाने में नाकाम रहे.
पीएनबी की आंतरिक रिपोर्ट के मुताबिक, 'विदेश से वित्त पोषित बैंकों ने एलओयू के तहत बायर्स क्रेडिट जारी करने में काफी लापरवाही दिखाई. उन्होंने जरूरी जांच-पड़ताल नहीं की. अगर ऐसा किया जाता तो फर्जी एलओयू के मामलों को आसानी से पकड़ा जा सकता था. कई एलओयू में एक ही रेफरेंस नंबर का इस्तेमाल किया गया. कुछ एलओयू में शर्तें बहुत असंगत थी. कई लेटर ऑफ क्रेडिट में बड़े संशोधन किए गए. बकाया या देय राशि की पुष्टि नहीं की गई. यही नहीं आरबीआई द्वारा निर्धारित 90 दिनों की सीमा से ज्यादा समय तक के लिए बायर्स क्रेडिट प्रदान किए गए. आरबीआई के नियमों के खिलाफ एलसी के तहत फर्जी बिलों के आधार पर लेटर्स ऑफ क्रेडिट जारी किए गए. लेकिन बैंकों का आंतरिक सिस्टम इस धोखाधड़ी को पकड़ने में असफल रहा.'
पीएनबी ने आरोप लगाया है कि घोटाला उजागर होने के बाद से भारतीय बैंकों की विदेशी शाखाएं उसके साथ सहयोग नहीं कर रही हैं. फर्जी एलओयू में स्पष्ट रूप से बायर्स क्रेडिट को फंडिंग करने वाले बैंक की जानकारी होती है. लिहाजा पीएनबी ने बायर्स क्रेडिट को फंडिंग करने वाले सभी बैंकों से संबंधित फर्मों के साथ संपर्क और संचार की जानकारी उपलब्ध कराने का अनुरोध किया है. लेकिन पीएनबी को अबतक किसी भी बैंक की तरफ से कोई जानकारी नहीं मिली है.
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