केन्द्र सरकार ने 11 हजार करोड़ रुपए से अधिक के पंजाब नेशनल बैंक धोखाधड़ी मामले में शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि जांच में अदालत द्वारा कोई ‘समानांतर जांच’ और ‘समानांतर निगरानी’ नहीं हो सकती है. केंद्र ने शीर्ष अदालत के सीबीआई को दिए उस सुझाव का भी विरोध किया जिसमें इस मामले की जांच की स्थिति रिपोर्ट मोहरबंद लिफाफे में दाखिल करने की बात कहीं गई थी.
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली एक पीठ को अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने बताया कि जांच एजेंसियों के मामले की जांच शुरू करने से पहले लोग जनहित याचिकाओं के साथ अदालतों में आ जाते है.
अदालतों द्वारा समानांतर और निगरानी नहीं की जा सकती
पीठ में जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ भी शामिल थे. वेणुगोपाल ने पीठ को बताया, ‘क्या किसी को पीआईएल दाखिल करके इस अदालत में आने का कोई औचित्य है और कहते है कि अदालत को जांच की स्थिति के बारे में सूचित किया जाना चाहिए. अदालतों द्वारा समानांतर जांच और समानांतर निगरानी नहीं की जा सकती हैं.’
अटॉर्नी जनरल ने यह भी तर्क दिया कि जब तक याचिकाकर्ता द्वारा कुछ गलत दिखाई नहीं दे तो इस तरह की याचिकाओं पर अदालतों द्वारा क्यों विचार किया जाएं.
इस मुद्दें को गंभीर बताते हुए वेणुगोपाल ने पीठ को बताया कि इस तरह के मामले से जांच एजेंसियों का मनोबल गिरेगा.
स्वतंत्र जांच कराने वाली याचिका का भी किया विरोध
वकील विनीत ढांडा ने एक याचिका दायर करके पीएनबी मामले की स्वतंत्र जांच कराने की मांग की थी. अटार्नी जनरल ने इस याचिका का विरोध किया.
केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने लगभग11,400 करोड़ रुपए के कथित घोटाला मामले में अरबपति हीरा व्यापारी नीरव मोदी और उनके रिश्तेदार मेहुल चोकसी और अन्य के खिलाफ दो प्राथमिकी दर्ज की थीं. पहली प्राथमिकी 31 जनवरी को दर्ज की गई थी जबकि एक अन्य प्राथमिकी फरवरी में दर्ज की गई थी.
सुनवाई के दौरान पीठ ने याचिकाकर्ता की इस बात पर आपत्ति जताई कि अटार्नी जनरल ने याचिका में उसके द्वारा किए गए आग्रह को नहीं पढा है.
चीफ जस्टिस ने कहा, ‘अटॉर्नी जनरल एक संवैधानिक पद पर है. हमें उनसे क्यों पूछना चाहिए कि क्या उन्होंने इसे पढ़ा है या नहीं. इस अदालत में भाषा सभ्य और बिल्कुल उपयुक्त है.’
मामले में अगली सुनवाई 9 अप्रैल को
कोर्ट ने कहा कि इस तरह के बयान अस्वीकार्य है. कोर्ट ने मामले की सुनवाई की तिथि नौ अप्रैल तय की.
पीआईएल में पीएनबी, भारतीय रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय तथा कानून एवं न्याय मंत्रालय को पक्षकार के रूप में बनाया गया है. याचिका में बैंकिंग धोखाधड़ी में कथित रूप से शामिल नीरव मोदी और अन्य के खिलाफ दो महीने के भीतर निर्वासन की कार्यवाही शुरू करने के लिए निर्देश देने का आग्रह किया गया है.
याचिका में मामले की जांच विशेष जांच दल( एसआईटी) से कराने का भी आग्रह किया गया है.
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