2014 में साबरमती के तट पर प्रधानमंत्री मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग कि मुलाक़ात डिनर पर हुई थी और अब 4 साल बाद फिर से एक नदी का किनारा है, दिल से दिल की बात है और ,डिनर पर मोदी और शी जिनपिंग हैं. बस इस बार ये मुलाकात साबरमती की जगह चीन के खुबसूरत वुहान में ईस्ट बैंक पर हो रही है. इस शहर में चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक माओत्से तुंग की प्रसिद्ध कोठी भी है जहां उन्होंने कई विदेशी नेताओं की मेजबानी की थी. वुहान को चीन का दिल कहा जाता है जो चेयरमैन माओ की पसंदीदा जगह थी.
दिल की बात करने के लिए चीन के दिल को चुना गया है. 64 वर्षीय शी को चीन में माओ के बाद दूसरा सबसे शक्तिशाली नेता माना जा रहा है. दोस्ताना दौरे में एक अपनापन दिखने की कोशिश में बीजिंग के बाहर वुहान चुना गया है, ठीक वैसे ही जैसे जब शी यहां आए थे तो मोदी उन्हें अपने गृह राज्य गुजरात ले गए, जहां दोनों झूला झूलते नजर आए थे.
देश प्रधानमंत्री को इन मुद्दों पर बोलते हुए सुनना चाहता है-
4 सालों में प्रधानमंत्री मोदी का ये चौथा चीनी दौरा है. इस दौरे को ‘नो एजेंडा’ दौरा कहा जा रहा है. कोई तय एजेंडा नहीं, कोई साझा बयां नहीं, कोई उम्मीदें नहीं. फिर सवाल है कि मकसद क्या है? दुनिया की 40 फीसदी जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करने वाले दोनों नेता दो दिन एक दूसरे के साथ बिता रहे हैं. चीनी मीडिया इसे एक नए युग कि शुरुआत बता रहा है. हां इस दिल की बात वाले ‘नो एजेंडा’ दौरे पर विपक्ष की नजर है. राहुल गांधी ने याद दिलाया है कि दिल की बात के साथ प्रधामनंत्री कुछ राष्ट्र हित कि बात भी कर आएं. राहुल गांधी ने कहा कि एक तो डोकलाम दूसरे चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर जो पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से गुजरता है. ये भारत की जमीन है. देश प्रधानमंत्री को इन मुद्दों पर बोलते हुए सुनना चाहता है.
डोकलाम में भारत चीन टकराव के बाद ये पहली बार है कि भारत और चीन के शीर्ष नेता मिल रहे हैं. पिछले साल जुलाई में भारत और चीन की सेना 72 दिनों तक आमने सामने डटी थीं, लेकिन डोकलाम के बाद जो अकड़ और सख्त लहजा भारत की तरफ से दिखा वो अब नई दिल्ली के सत्ता के गलियारों में सुनाई नहीं दे रहा. बल्कि चाइना के बेल्ट रोड पॉलिसी की आलोचना भी अब दबे सुरों में ही होती है. लेकिन मोदी की चीन नीति ना नेहरू की तरह चीन पर नरम ही नरम और ना ही इंदिरा गांधी की तरह चीन पर गरम ही गरम. ये थोड़ी ज्यादा व्यावहारिक है. तभी डोकलाम में आमने-सामने डटे भी रहे और वक्त पड़ने पर रिश्ते का संतुलन सही करने चीन भी पहुंच गए.
चीन ने भी गर्मजोशी दिखाते हुए बीजिंग के बाहर एक अनौपचारिक शिखर वार्ता मोदी के लिए आयोजित की, जिसमें शी दो दिनों तक बीजिंग के बाहर होंगे. शायद पहली बार किसी विदेशी नेता के लिए चीन के शी जिनपिंग ऐसा स्वागत कर रहे हैं.
शी जिनपिंग खुश हुए, पर गौर कीजिए कि भारत ने भी पिछले दिनों चीन को खुश करने के लिए क्या-क्या किया. सबसे पहले तो तिब्बत और दलाई लामा को नजरंदाज किया दूसरे मालदीव के संवैधानिक संकट में अब्दुल्लाह यमीन कि सरकार की अपेक्षा के मुताबिक मदद नहीं कि चीन के लिए ये मैदान खाली कर दिया.
मोदी हर हाल में 2019 में वापसी चाहते हैं
मोदी 4 साल में चौथी बार चीन गए हैं . एक ऐसे समय में जब सारा ध्यान 2019 के चुनाव पर है और प्रतिष्ठा की लड़ाई बना कर्नाटक का चुनाव सर पर है, अभी अचानक चीन क्यों? इस एजेंडा लेस दौरे की कुछ तो अहमियत होगी जो इन सब पर हावी है. इस डिप्लोमेसी की अभी जरूरत क्यों पड़ी. एक आंकलन ये भी है कि चुनाव है शायद इसलिए. मोदी हर हाल में 2019 में वापसी चाहते हैं. चुनाव के पहले शायद मोदी चीन की तरफ से डोकलाम जैसा कोई तनाव नहीं चाहते हैं.
भारत के पड़ोस में मालदीव, श्रीलंका और नेपाल में चीन का दबदबा बढ़ा है. हाल ही में मालदीव में जब एक संवैधानिक संकट खड़ा हुआ था. इस संकट को सुलझाने में भारत ने कोई पहल नहीं की और इसकी वजह भी चीन को खुश करना माना गया. कई विश्लेषक का ये मानना था कि मालदीव की भारत से जो उम्मीद थी भारत को उसपर खरा उतरना चाहिए था, चीन ने कई बयान जारी किए किनकी भारत इसमें दखल न दे, भारत ने भी बयां जारी किए लेकिन मालदीव में मध्यस्तता नहीं की.
अमेरिका की तरफ से भी चीन के आक्रामक रवैये को रोकने के साफ संकेत नहीं आते. ये एक शर्मनाक हद तक चीन की दादागिरी को मानने जैसा था.
वुहान की अनौपचारिक मुलाकात ने माहौल को सुधारा है. रिश्तों की ये बर्फ डोकलाम के तनाव के बाद पिघली है जिसमें 72 दिनों तक भारत चीन की सेना आमने सामने थी और आखिर में चीन को पीछे हटना पड़ा और भारत को इसमें कूटनीतिक फायदा मिला.
इससे पहले भारत चीन के बीच टकराव की कई वजह रही है. परमाणु सप्लायर ग्रुप में भारत का प्रवेश और UNSC की स्थाई सदस्यता. साथ ही संयुक्त राष्ट्र में जैश के मुखिया मसूद अजहर को आतंकी घोषित करने की भारत की कोशिश को चीन रोकता रहा है. चीन की आक्रामकता और भारत के सामरिक क्षेत्र में चीन का दखल बढ़ता ही जा रहा है, विशेष तौर पर हिंद महासागर में. ऐसा लगता है की पिछले साल डोकलाम के बाद भारत को जो मजबूती मिली थी वो वहां से कुछ पीछे हटा है, कुछ कमजोर हुआ है.
भारत ने अपेक्षा के उलट कोई दखल नहीं दिया
2 दिन के अंदर मोदी और शी जिनपिंग 6 बार मिलेंगे , लेकिन कोई साझा बयान नहीं आएगा, किसी तय एजेंडे पर बात नहीं होगी, पूरा फोकस माहौल बेहतर करने पर है. फिर भी व्यापार घाटे जैसे मुद्दे पर बात हुई है. इस से भारतीय कंपनियों के लिए चीन माल निर्यात करना आसन होगा. इसका मोदी को फायदा मिल सकता है क्योंकि नौकरियों का वादा मोदी ने किया है.
प्रधानमंत्री मोदी चीन के साथ रिश्ते सुधारना चाहते हैं, इसके संकेत तब से ही मिलने लगे थे जब फरवरी में सरकारी अधिकारीयों को एक नोटिस दिया गया कि वो दलाई लामा के भारत आने के 60 साल पूरा होने के कार्यक्रम में शामिल न हों. इससे चीन नाराज हो सकता है. दूसरे फरवरी में ही मालदीव के संवैधानिक संकट में भी भारत ने अपेक्षा के उलट कोई दखल नहीं दिया. ये सब चीन को नाराज़ न करने के लिए किया जा रहा था.
मोदी चीन से शांति वार्ता चाहते हैं, क्यों? जवाब साफ है, 2019 में उन्हें सरकार के लिए कोई बुरी खबर नहीं चाहिए. चीन और भारत की 4056 किलोमीटर लंबी सीमा है जहां पर चीन कभी भी कोई गड़बड़ कर सकता है. साथ ही चुनाव के पहले भारत सीमा पर शांति चाहता है. मोदी शी जिनपिंग की मुलाकात के बाद विदेश मंत्रालय का बयान आया है कि दोनों देश सीमा पर शांति चाहते हैं.
20 मार्च को जब शी फिर से राष्ट्रपति चुने गए तो मोदी ने फोन से उन्हें बधाई दी और शायद इसी बातचीत में वुहान दौरे का कार्यक्रम तय हुआ. उसके बाद से भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डोभाल का चीन दौरा हुआ, फिर उसके बाद , हाल ही में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज बीजिंग दौरे पर गईं. ये जून में होने वाली शंघाई कोऑपरेशन आर्गेनाईजेशन की मीटिंग के सन्दर्भ में था.
सभी दक्षिण एशियाई देश श्रीलंका, नेपाल, बांग्लादेश और मालदीव जो ऐतिहासिक तौर पर भारत पर निर्भर रहे वो अब चीन के आकर्षण को महसूस कर रहे हैं. भारत के पडोसी देश पाकिस्तान में तो चीन ने सीधे तौर पर 50 बिलियन डॉलर का निवेश कर दिया है. यानी प्रभाव क्षेत्र में चीन का दायरा भारत से ज्यादा फैलता जा रहा है. लेकिन इसका मुकाबला करने के लिए चीन को खुश करने की बजाय एशिया के दूसरे लोकतंत्रों से आर्थिक और राजनितिक रिश्ते सुधारना भारत के हित में होगा.
मोदी जब शी जिनपिंग से मिले तो कहा कि ये आपका भारत के लिए प्यार है कि आप मुझसे दो बार बीजिंग के बाहर अनौपचारिक तौर पर मिल रहे हैं, लेकिन ये याद रखना ज़रूरी होगा कि शी जिनपिंग जब 2014 में भारत आए थे तो भारत के लिए अपना प्यार दिखने को PLA की एक टुकड़ी भी साथ ले आए थे.
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