देशभर में चल रहे मीटू अभियान के बीच गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में आध्यात्मिक और धार्मिक संस्थानों जैसे आश्रम, मदरसा, कैथोलिक चर्च आदी में भी विशाखा गाइडलाइंस लागू करने की अपील की गई है. इसके लिए गुरुवार को कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है. अभी फिलहाल इस पर कोर्ट का फैसला आना बाकी है.
PIL filed in Supreme Court seeking direction for extension of Vishakha guidelines to spiritual and religious institutions like Ashrams, Madarsas, and Catholic institutions to prevent sexual exploitation of women
— ANI (@ANI) October 25, 2018
क्या है विशाखा गाइडलाइंस, जिसकी चर्चा हर जगह है
यह गाइडलाइंस कामकाजी महिलाओं के बुनियादी अधिकारों को सुनिश्चित करता है. कामकाजी महिलाओं को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न और प्रताड़ना से बचाने के लिए कोर्ट ने विशाखा दिशा-निर्देशों को उपलब्ध कराया और अगस्त 1997 में इस फैसले में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की बुनियादी परिभाषाएं दीं.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी की गई विशाखा गाइडलाइंस के मुताबिक ऐसा जरूरी नहीं कि यौन शोषण का मतलब केवल शारीरिक शोषण ही हो. आपके काम की जगह पर किसी भी तरह का भेदभाव जो आपको एक पुरुष सहकर्मी से अलग करे या आपको कोई नुकसान सिर्फ इसलिए पहुंचे क्योंकि आप एक महिला हैं, तो वो शोषण है.
आपके काम की जगह पर किसी पुरुष द्वारा मांगा गया शारीरिक लाभ, आपके शरीर या रंग पर की गई कोई टिप्पणी, गंदे मजाक, छेड़खानी, जानबूझकर किसी तरीके से आपके शरीर को छूना,आप और आपसे जुड़े किसी कर्मचारी के बारे में फैलाई गई यौन संबंध की अफवाह, पॉर्न फिल्में या अपमानजनक तस्वीरें दिखाना या भेजना, शारीरीक लाभ के बदले आपको भविष्य में फायदे या नुकसान का वादा करना, आपकी तरफ किए गए गंदे इशारे या आपसे की गई कोई गंदी बात, सब शोषण का हिस्सा है.
क्या है कानूनी विकल्प?
कानूनी तौर पर हर संस्थान जिसमें 10 से अधिक कर्मचारी हैं वहां, कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (निवारण, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के तहत अंदरूनी शिकायत समिति होना जरूरी है.
आप अपनी शिकायत लिखित रूप में अपने बॉस को दे सकती हैं या फिर अपने एच. आर. डिपार्टमेंट यानी मानव संसाधन विभाग से भी कर सकती हैं. याद रहे शिकायत आपको घटना या आखिरी घटना के 3 महीने के अंदर ही दर्ज करानी है. अगर आपके पास कोई सबूत है जैसे कोई मैसेज, कोई ईमेल, कोई रिकॉर्डिंग वगैरह भी जमा कर सकती हैं.
शिकायत मिलने पर समिति को मामले की जांच पड़ताल 90 दिन के अंदर खत्म कर अपनी रिपोर्ट पेश करना जरूरी है. इसके लिए समिति दोनों पक्ष से पूछताछ कर सकती है. आपके बाकी सहकर्मियों से भी गवाह के तौर पर सवाल-जवाब किए जा सकते हैं. आपकी पहचान को गोपनीय रखना समिति की जिम्मेदारी है.
जरूरी नहीं कि आप उस संस्थान की परमानेंट कर्मचारी हो, आप टेम्पररी हो, कॉन्ट्रैक्ट पर हों, इंटर्न हों, ट्रेनी हों, इसका आपकी शिकायत से कोई लेना देना नहीं है. समिति के लिए जरूरी है कि वो मामले की निष्पक्ष जांच करें.
यही नहीं, अगर कोई महिला अपनी शारिरिक या मानसिक हालत के कारण या मौत के कारण शिकायत दर्ज नहीं कर पाती तो ऐसे में आपका कानूनी वारिस शिकायत दर्ज कर सकता है.
दोषी पाए जाने पर संस्थान उस कर्मचारी पर आवश्यक कार्रवाई कर सकती है. अगर शिकायतकर्ता उस संस्थान में उस व्यक्ति विशेष के रहते काम नहीं करना चाहती तो ऐसे में उसे संस्थान से निकाल भी जा सकता है. हालांकि अगर माफी से बात बन जाए तो ऐसे में एक मौका और दिया जा सकता हैं. प्रवाधान मुआवजे का भी है जो अलग अलग केस पर निर्भर करता है.
अगर आप अंदरूनी शिकायत समिति में शिकायत दर्ज कराना नहीं चाहतीं तो आप अपने नजदीकी पुलिस स्टेशन भी जा सकती हैं. आपकी शिकायत के आधार पर अपराधी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाएगी.
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