हाल ही में अनुसूचित जाति जनजाति अधिनियम 1987 में केंद्र सरकार द्वारा किए गए संशोधन को चुनौती देती हुई एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई है. यह संशोधन केंद्र सरकार द्वारा किया गया जिसे संसद ने अनुमति दे दी है.
दो वरिष्ठ अधिवक्ताओं द्वारा दर्ज की गई इस याचिका में कोर्ट से अनुरोध किया गया है कि वह केंद्र सरकार के संशोधनों को रद्द कर दे. मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिनियम को रद्द कर दिया था. जिसके बाद एक बार फिर से केंद्र सरकार ने संशोधन के साथ अधिनियम पारित किया.
इस पर विरोध दर्ज करते हुए याचिका दायर करने वालों ने कहा कि अनुसुचित जाति जनजाति अधिनियम में संशोधन कर सत्ताधारी पार्टी राजनीति कर रही है. उन्होंने याचिका दायर करते हुए कहा कि यह कानून लोगों के स्वतंत्रता के अधिकार का हनन करता है. केंद्र सरकार द्वारा पारित संसोधित बिल को इसी महीने के शुरुआत में संसद ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटते हुए पास किया था.
यह बिल किसी भी अदालत के आदेश के बावजूद अनुसूचित जाति जनजाति के खिलाफ अत्याचार के आरोपी व्यक्ति के लिए अग्रिम जमानत के लिए किसी भी प्रावधान की इजाजत नहीं देता है. इस कानून के तहत आपराधिक मामलों में बिना प्रारंभिक जांच के ही एफआईआर दर्ज कर ली जाती है.
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