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करणी सेना: पद्मावती पर इतना विवाद होता ही नहीं अगर...

फ़र्स्टपोस्ट के साथ एक खास मुलाकात में करणीसेना के संरक्षक लोकेंद्र सिंह कलवी ने कहा कि फसाद की शुरुआत रणवीर सिंह के एक घटिया बयान से हुई

Updated On: Nov 22, 2017 02:10 PM IST

FP Staff

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करणी सेना: पद्मावती पर इतना विवाद होता ही नहीं अगर...

संजय लीला भंसाली की ‘पद्मावती’ को लेकर जोर पकड़ते विवाद का रिश्ता दरअसल फिल्म की कहानी से नहीं है. फिल्म का क्रू जब जयपुर में शूटिंग के लिए आया था तो हंगामा खड़ा करने वाले ना तो ये जानते थे कि फिल्म की पटकथा में क्या है और ना ही उनको इस बात की ही कुछ अता-पता था कि प्रोड्यूसर-डायरेक्टर या फिर फिल्म के मुख्य एक्टर रणवीर सिंह, दीपिका पादुकोण और शाहिद कपूर अलाउद्दीन खिलजी, पद्मावती और महाराणा रावल रतन सिंह की अपनी भूमिका किस तरह निभाने जा रहे हैं. उस वक्त जयपुर मे जो हुआ वह अब अतीत के पन्नों में दर्ज हो चुका है.

राजपूत करणीसेना के विरोध प्रदर्शन के पीछे की असली वजह कुछ और ही है- दरअसल यह बड़जोर अहं के टकराव का मामला था. फ़र्स्टपोस्ट के साथ एक खास मुलाकात में फेसबुक लाईव चैट पर पद्मावती के रिलीज के मुखर विरोधी और करणीसेना के संरक्षक लोकेंद्र सिंह कलवी ने कहा कि फसाद की शुरुआत रणवीर सिंह के एक घटिया बयान से हुई.

'रणवीर सिंह के बयान से शुरू हुआ विवाद'

कलवी के मुताबिक, फिल्म की शूटिंग के शुरुआती दिनों में मीडियाकर्मियों से बातचीत के दौरान रणवीर सिंह से पूछा गया कि क्या वे फिल्म में खलनायक (विलेन) की भूमिका निभा रहे हैं. इस सवाल के जवाब में रणवीर सिंह ने कहा कि फिल्म की हीरोइन के साथ अगर दो अंतरंग दृश्य करने को मिलें तो वे खलनायक की भूमिका निभाने से भी दो कदम आगे जाने की बात सोच सकते हैं. किसी ने राजस्थान की करणीसेना को इस बातचीत की क्लिपिंग भेज दी.

करणीसेना के संरक्षकों ने इस बयान को हल्के में ना लेते हुए फिल्म के निर्माता भंसाली और अभिनेता रणवीर सिंह को मेल और चिट्ठियां भेजीं और स्पष्टीकरण मांगा लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला. बाद में फिल्म के डायरेक्टर और एक्टर के साथ करणीसेना के प्रतिनिधियों की बैठक तय की गई. करणीसेना के लोग मुंबई गए लेकिन बैठक नहीं हुई.

कलवी ने कहा, 'मैं मानता हूं कि वे व्यस्त आदमी हैं. उन लोगों को हमसे मिलने का मौका उस वक्त मिला जब हमलोग जयपुर वापसी के लिए फ्लाइट पकड़ने को निकल चुके थे. मुंबई से वापसी के पहले करणीसेना के लोगों ने भंसाली से कह दिया था कि आपको अपनी फिल्म के साथ जो करना हो कीजिए लेकिन राजस्थान में कदम मत रखिएगा.'

'भंसाली की ओर बरती गई लापरवाही'

कलवी का कहना है कि 'यह छोटा सा मामला था. वे लोग इसे वहीं और उसी वक्त रफा-दफा कर सकते थे या कह सकते थे कि रणवीर ने अपना बचकाना बयान दीपिका के साथ अपने निजी रिश्ते की वजह से दिया, बात वहीं खत्म हो जाती. लेकिन उनलोगों ने ऐसा नहीं किया. उन लोगों ने सोचा कि हमलोग छोटे लोग हैं सो कोई स्पष्टीकरण देने की जरुरत नहीं है.'

मामला यहीं से शुरु हुआ. कलवी के मुताबिक, 'हमारा विरोध प्रदर्शन इसी मुकाम से शुरु हुआ और आज यहां तक आ पहुंचा है. अब बात फिल्मनिर्माता के स्पष्टीकरण की हदों से कहीं पार जा चुका है.'

कलवी का दावा है कि वे चित्तौड़ के राजपरिवार से हैं. कुछ इतिहासकार कहते हैं कि रानी पद्मावती का कभी वजूद ही नहीं रहा. कलवी इसका प्रतिवाद करते हुए कहते हैं कि मैं हूं ना और छह फीट चार इंच लंबा हूं, इसलिए रानी पद्मावती का भी वजूद रहा था.

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कलवी को यह बताने से परहेज नहीं कि उनका एक सियासी अतीत रहा है. कलवी के पिता कल्याण सिंह कलवी चंद्रशेखर की सरकार के जमाने में केंद्रीय मंत्री थे. कलवी ने बताया कि वो गुजरात और मध्यप्रदेश सहित देश के विभिन्न हिस्सों में फिल्म ‘पद्मावती’ के खिलाफ आक्रोश जगाने के लिए जनसभाएं कर रहे हैं और फिर राजस्थान तो उनका अपना सूबा है, सो ऐसी जनसभाएं राजस्थान में भी हो रही हैं. कलवी को अच्छा लग रहा है कि उनपर लोगों की नजर है लेकिन वे यह भी कहते हैं कि संजय लीला भंसाली और उनकी फिल्म पद्मावती को हमारे विरोध-प्रदर्शन के कारण मुफ्त का प्रचार हासिल हो रहा है.

तथ्य ये है कि एक के बाद एक कई राज्य सरकारों और बहुत से राजनेताओं का उन्हें समर्थन मिला है या फिर ये राजनेता इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करने के खिलाफ हैं और सरकार से कह रहे हैं कि फिल्म की रिलीज पर रोक लगाई जाए. यह अपने आप में कलवी के लिए जीत की तरह है. कलवी से जब पूछा गया कि आखिर ऊंचे पदों पर बैठे लोग उनके विरोध-प्रदर्शन से इतना डर क्यों रहे हैं तो कलवी ने हंसते हुए कहा कि यही तो जादू है!

कल्वी का तर्क

हाल में इस बात को इतिहास कहकर प्रचारित किया गया कि अलाउद्दीन खिलजी ने पद्मावती को देखा था या फिर यह कि उसने चित्तौड़गढ़ के किले के भीतर बने तालाब के एक किनारे पर रखे दर्पण में पद्मावती का प्रतिबिम्ब देखा था. कलवी ने इस बात का खंडन किया कि उस वक्त तक तो दर्पण का आविष्कार भी नहीं हुआ था, जवाहरलाल नेहरु ने जब चित्तौड़गढ़ का दौरा किया था तो किसी अति उत्साही आदमी ने दर्पण वहां रख दिया था और वही दर्पण आज दिन तक कायम है.

करणीसेना अपनी धमकी खुलेआम दोहरा रही है हालांकि यह धमकी अपने अंदाज में तनिक महीन है जबकि करणीसेना के कुछ अन्य सदस्य बड़े साफ शब्दों में कह रहे हैं कि फिल्म का प्रदर्शन नहीं होने दिया जायेगा.

कलवी ने फ़र्स्टपोस्ट से वादा किया कि फिल्म के रिलीज हो जाने के बाद वे फ़र्स्टपोस्ट के साथ बातचीत के लिए दोबारा बैठेंगे. तो क्या यह माना जाये कि कलवी का रुख थोड़ा नरम पड़ा है? फिल्म देख चुके लोगों ने कलवी से कहा है कि इसमें राजपूती शान और गौरव का बड़ी बारीकी से अंकन हुआ है. लेकिन कलवी को अभी इस पर यकीन नहीं है. हो सकता है, जब फिल्म को सेंसर बोर्ड हरी झंडी दे दे तो कलवी ज्यादा तर्कसंगत बातें कहें.

यह बात भी गौर करने की है कि कलवी फिल्में नहीं देखते. आखिरी बार उन्होंने जब कोई फिल्म देखी थी तब वे आठवीं क्लास में थे और यह अब से तकरीबन 50 साल पहले की बात है!

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