सिर्फ एक फिल्म से इस देश में क्या-क्या हो सकता है, इसका नजारा साफ देखने को मिल रहा है. पद्मावत फिल्म का विरोध जिस स्तर पर हो रहा है, उससे यह साफ जाहिर होता है कि हम जरूरत के मुद्दों को लेकर गंभीर नहीं हैं या उसकी हमें कतई कोई चिंता नहीं है. फिल्म को सेंसर बोर्ड से मंजूरी मिल गई. सुप्रीम कोर्ट ने बैन को हटा दिया. उसके बाद भी इस तरह का हिंसक प्रदर्शन यह बताता है कि हम संस्थानों के फैसलों को भी सेलेक्टिव नजरिए से पसंद या नापसंद करते हैं.
इस फिल्म के विरोध के दौरान जो एक चीज नजर आ रही है वो यह है कि कई राज्यों ने विरोध करने वालों को मौन स्वीकृति दे रखी है. ऐसा ही हाल है हरियाणा का. पहली बार अपने दम पर सत्ता पाने वाली बीजेपी इस राज्य में कानून-व्यवस्था को बनाए रखने में नाकाम रही है. राज्य में कई मौकों पर हिंसक प्रदर्शन हुए हैं जो इस फिल्म के दौरान हो रहे प्रदर्शनों में भी जारी हैं.
फिल्म का विरोध खासकर राजपूत संगठनों द्वारा किया जा रहा है. उनका आरोप है कि फिल्म निर्देशक ने इतिहास से छेड़छाड़ किया है और राजपूतों के स्वाभिमान को आहत किया है. हो सकता है कि उनका यह आरोप जायज भी हो. लेकिन एक बात जो समझ नहीं आ रही है वह यह है कि हरियाणा और इस राज्य का गुड़गांव शहर इसकी आग में सबसे ज्यादा क्यों जल रहा है. जबकि हरियाणा को जाटलैंड कहा जाता है और गुड़गांव में शुरू से ही यादव जाति का दबदबा रहा है.
इस तरह का कोई भी प्रदर्शन होता है तो उसकी आग में सबसे ज्यादा गुड़गांव ही क्यों जलता है? इसका क्या कारण है कि राष्ट्रीय राजधानी से सटे और एनसीआर में आने वाले इस क्षेत्र को हिंसक तत्व सबसे ज्यादा अपना निशाना बनाते हैं? सबसे चौंकाने वाली बात तो यह है कि हर बार गुड़गांव का हिंसा की चपेट में आने के बाद भी राज्य प्रशासन ऐसी घटनाओं को रोकने में नाकाम क्यों रहता है?
गुड़गांव पुलिस प्रशासन ने हिंसक गतिविधियों को देखते हुए इलामें में रविवार तक के लिए धारा 144 लागू कर दिया था. कई स्कूल एहतियात के तौर पर बंद कर दिए गए थे. सिनेमा घर मालिकों के मन में इतना खौफ था कि उन्होंने फिल्म की स्क्रीनिंग से भी मना कर गिया. उनके इस खौफ को दूर करने की जिम्मेदारी सरकार की नहीं बनती है क्या?
एक तरफ हरियाणा के मंत्री कहते हैं कि हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानेंगे लेकिन इसके साथ ही वो यह भी कहते हैं कि जो स्वाभिमानी लोग हैं वो इस फिल्म को देखने के लिए नहीं जाएं. उनके इस बयान से पता चलता है कि इस फिल्म के प्रति सरकार का क्या रवैया रहने वाला है.
सरकार के इसी रवैये से हिंसा करने वालों का मन इतना बढ़ा हुआ है कि गुड़गांव में धारा 144 लागू होने के बाद भी वो तोड़फोड़ करते हैं. सड़कों पर आवाजाही रोकते हैं और हद तो तब हो जाती है जब वो स्कूली बच्चों तक को नहीं बख्शते और उनके बस पर भी हमला करते हैं. क्या यही राजपूती शौर्य है? और हरियाणा की सरकार इसी शौर्य को कायम रखने के लिए फिल्म का विरोध कर रहे लोगों को खुला छोड़ रखी है? सरकार के रवैये से एक हद तक यह बात सही भी लग रही है.
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