पद्मावत के विरोध से मशहूर हुए करणी सेना का बिहार से कोई लेना देना नहीं है. पद्मावत विवाद एपिसोड से पहले वहां के लोग इसका नाम तक नहीं जानते होंगे. लेकिन ऐन 25 जनवरी यानी रिलीज के दिन बिहार के कोने-कोने में न जाने कहां से करणी सेना के कार्यकर्ता निकलने लगे. जिस हंगामे से बिहार का दूर-दूर तक कोई ताल्लुक न था, वो न जाने कहां से बिहार के कई हिस्सों में फूटने लगा.
मुज्जफरपुर में तलवार-भाले गड़ासे लेकर लोगों ने रैली निकाली. पद्मावत का विरोध किया गया. नालंदा जिले के बिहार शरीफ में मोटरसाइकिल रैली निकाली गई. यहां के एक सिनेमा हॉल में तोड़फोड़ की गई. नेशनल हाइवे को जाम कर दिया गया. मोतिहारी में बैनर पोस्टर लेकर लोग सड़कों पर उतर गए. पुतले जलाए गए. गया और नवादा जैसे शहरों में भी विरोध प्रदर्शन हुआ. बांका में सिनेमा हॉल के भीतर हिंदू सेना के कुछ उत्तेजित कार्यकर्ता पहुंच गए. सिनेमा हॉल के मालिक ने माफी मांगकर फिल्म न चलाने की बात कही तब जाकर वो बाहर निकले. बेतिया, छपरा और सीतामढ़ी से विरोध प्रदर्शन की खबरें आईं. बिहार के इन इलाकों में रानी पद्मावती के मान और अपमान की सच्ची-झूठी जो भी कहानी रही हो, वो भी पता नहीं होगी. लेकिन विरोध प्रदर्शन हर जगह हो रहे थे. बेवकूफी और जाहिलियत की आग इतनी तेजी से फैल सकती है ये सोचकर भी हैरानी होती है.
सवाल है कि आखिर करणी सेना जैसी हवा दिल्ली, मुंबई और गुजरात से होते हुए बिहार तक कैसे पहुंच जाती है? इसके पीछे कैसी ताकतें काम करती है? जिस संगठन का वजूद इतना भी नहीं कि उनके साथ कुछ हजार लोग इकट्ठा हों वो कैसे एक भावनात्मक मुद्दे पर आग सुलगाकर अपने लिए लाखों लोगों का समर्थन जुटा लेती है? क्या पद्मावत विवाद के दौरान हुए हंगामे पर इस सवाल को संजीदगी से लेने की जरूरत नहीं है?
पद्मावत विवाद की रोशनी में कुछ चीजें गौर करने लायक हैं, जो इस दौरान लोगों को पता चलीं. करणी सेना को कोई नहीं जानता था. इस विवाद के बाद अब पूरा देश इस बदनाम संगठन को जान चुका है. इसके नेता लोकेंद्र सिंह काल्वी को कोई नहीं जानता था. इस विवाद के बाद इस बुजुर्ग लेकिन बददिमाग शख्स को सब जानने लगे हैं. सूरजपाल अमु नाम का कोई शख्स भी है, जो अपनी बदमिजाजी में दीपिका पादुकोण के सिर पर 10 करोड़ का इनाम रख देता है, वो भी इसी एपिसोड के बाद पता चला. इस विवाद के बाद लोगों का ये यकीन पुख्ता होता है कि अगर कुछ गुंडे लफंगें भी इकट्ठा होकर किसी मुद्दे को एक समुदाय विशेष के मान अपमान का मसला बना दें तो बड़ी-बड़ी सरकारें उनके सामने घुटने टेक सकती हैं.
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इस विवाद के बाद से ही पता चलता है कि जिसे न पढ़ा हो न सुना हो उसे इतिहास की बात बतलाकर अपनी मनमर्जी से पूरे देश में हंगामे के हालात पैदा किए जा सकते हैं. इसी विवाद के बाद इस सच को मानने में किसी को गुरेज नहीं होना चाहिए कि अगर किसी मसले में किसी खास वोट बैंक के नाराज होने की बू आती है तो सारे सियासी दल एकसमान अंधे-गूंगे और बहरे हो जाते हैं.
ये विवाद एक सबक है, सोचने समझने और विचार करने वाले एक आम भारतीय के लिए कि मामला किसी समुदाय विशेष के जिद का हो तो उन्हें चलते-फिरते बीच सड़क पर तमाशा बनाया जा सकता है, उनकी गाड़ियों में आग लगाई जा सकती है, उनके बच्चों के स्कूल बस पर हमला हो सकता है, उन्हें बीच बाजार में घसीटा और पीटा जा सकता है.
एक समुदाय जब अपनी जिद पर उतर आए तो सरकार से लेकर पुलिस-प्रशासन तक कितनी मजबूर हो जाती हैं इसके उदाहरण बिहार से लेकर राजस्थान तक में दिखता है. राजस्थान के उदयपुर में जिला प्रशासन ने बाकायदा सर्कुलर जारी करके निर्देश दिया है कि गणतंत्र दिवस के किसी प्रोग्राम में पद्मावत का गाना घूमर नहीं बजना चाहिए. किसी कॉलेज-स्कूल के फंक्शन में इस गाने पर डांस नहीं होना चाहिए.
प्रशासन का ये फैसला किसी सरकारी निर्देश के मद्देनजर नहीं लिया गया. असल फसाना ये है कि मेवाड़ के किसी श्री राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना ने जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपा था कि गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम में स्कूल-कॉलेज के किसी फंक्शन में ये गाना नहीं बजना चाहिए. उनके इस ज्ञापन पर पूरा जिला प्रशासन सहम जाता है और आनन-फानन में सरकारी सर्कुलर जारी कर घूमर गाने पर रोक लगा दी जाती है. सोचिए कि एक जिले का प्रशासन एक टुच्ची सी संस्था के सामने कितना मजबूर हो उठता है. ऐसा हाल सिर्फ उदयपुर का ही हो ऐसा भी नहीं है. अगर ऐसा होता तो फिर विरोध प्रदर्शन की ऐसी तस्वीरें सभी जगहों से नहीं आती.
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पद्मावत विवाद की कुछ और बातों पर गौर किया जा सकता है. इस पूरे विवाद में हो-हंगामा छत्तीसगढ़ में भी हो रहा था. छत्तीसगढ़ की पुलिस ने इससे सख्ती से निपटने का फैसला किया. 24 जनवरी को कुछ लोग हंगामा कर रहे थे. पुलिस ने लाठीचार्च कर दिया. कई लोगों को जबरदस्त चोटें आईं. लेकिन नतीजा ये निकला कि 25 जनवरी को फिल्म रिलीज के दिन छत्तीसगढ़ के 54 थियेटरों से 37 थियेटरों में ये फिल्म दिखाई गई. पुलिस ने कुछ लोगों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया. उन लोगों ने लिखित में माफी मांगी. आइंदा ऐसे किसी विरोध प्रदर्शन में न शामिल होने के वायदे पर पुलिस ने उन्हें छोड़ा.
एक दिलचस्प नजारा लखनऊ में भी देखने को मिला. 24 जनवरी को यहां के कुछ सिनेमा हॉल में कुछ लोगों ने हुड़दंग करने की कोशिश की. पुलिस ने हॉल से खींच-खींचकर हंगामा कर रहे लोगों की धुनाई की. 25 जनवरी को सिनेमा हॉल के बाहर का नजारा बदला हुआ था. करणी सेना के कुछ लोग विरोध कर रहे थे लेकिन शांतिपूर्ण तरीके से. ये लोग गुलाब का फूल देकर पद्मावत देखने जा रहे लोगों से फिल्म न देखने की गुजारिश कर रहे थे. तो मामले को इस तरह से भी पलटा जा सकता है. पद्मावत विवाद आज के बाद से ज्यादा उबालें नहीं मारेगा. मामला अब ठंडा पड़ने की ओर है. लेकिन ऐसे विवाद को न थामने की मजबूरी दिखाने वाली सरकारों को क्यों न लताड़ा जाए?
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