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MCI पर मनमानी का आरोप, सुप्रीम कोर्ट की बनाई कमेटी ने हेल्थ मिनिस्ट्री को लिखी चिट्ठी

मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया पर इस बार आरोप कोई और नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बनाई गई ओवर साइट कमेटी ने लगाया है

Updated On: Aug 01, 2018 07:41 AM IST

Pankaj Kumar Pankaj Kumar

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MCI पर मनमानी का आरोप, सुप्रीम कोर्ट की बनाई कमेटी ने हेल्थ मिनिस्ट्री को लिखी चिट्ठी

मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) एक बार फिर विवादों के घेरे में है. इस बार काउंसिल पर आरोप कोई और नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बनाई गई ओवर साइट कमेटी ने लगाया है. ध्यान रहे ये वो कमेटी है जिसे मेडिकल काउंसिल के कार्य प्रणाली पर निगरानी रखने के लिए बनाया गया था लेकिन ओवर साइट कमेटी ने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया पर उसकी एक नहीं सुनने का आरोप लगाया है. इतना ही नहीं ओवर साइट कमेटी ने यह भी आरोप लगाया है कि एमसीआई कोई सूचना मांगने पर भी उन्हें देने से इनकार कर देती है.

दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 18 जुलाई, 2017 को जिम्मेदारियां तय करते हुए साफ तौर पर निर्देश दिया था कि ओवरसाइट कमेटी एमसीआई की कार्यप्रणाली पर निगरानी रखेगी और एमसीआई अपने सारे फैसले की स्वीकृति ओवरसाइट कमेटी से लेकर ही केन्द्र सरकार को भेजेगी. इतना ही नहीं ओवरसाइट कमेटी को ये स्वतंत्रता भी सुप्रीम कोर्ट ने दी है कि वो एमसीआई की कार्यप्रणाली में सुधार के लिए दिशा-निर्देश तक जारी कर सकती है. ये व्यवस्था सुप्रीम कोर्ट के नए आदेश तक अथवा सरकार द्वारा नया तंत्र बहाल किए जाने तक बरकरार रहेगी.

A view of the Indian Supreme Court building is seen in New Delhi

सुप्रीम कोर्ट

लेकिन ओवरसाइट कमेटी की 6 जुलाई, 2018 को हेल्थ मिनिस्ट्री को लिखी चिट्टी में एमसीआई द्वारा की गई मनमानी को सिलसिलेवार तरीके से रखा गया है. फ़र्स्टपोस्ट के हाथ लगी एक्सक्लुसिव चिट्ठी 7 पन्ने की है जिसे ड्राफ्ट ओवरसाइट कमेटी के सचिव डॉक्टर संजय श्रीवास्तव ने किया है.

मेडिकल कॉलेज की जांच करने वाले इंस्पेक्टर्स की पूरी जानकारी नहीं देने का आरोप

इस चिट्ठी में सबसे पहले कॉलेज के इंस्पेक्शन की प्रक्रिया पर सवाल उठाए गए हैं. ओवरसाइट कमेटी के मुताबिक मेडिकल कॉलेज की जांच करने गए सभी इंस्पेक्टर्स की डिटेल एक उचित फॉर्मेट में एमसीआई के साथ हुई संयुक्त मीटिंग में 8 फरवरी, 2018 को मांगी गई थी. लेकिन उन्हें अब तक मुहैया नहीं कराया गया है. इतना ही नहीं इंस्पेक्टर्स (assessors) की कार्यप्रणाली की गुणवत्ता की जांच का आधार भी पूछा गया जिससे जांच प्रक्रिया की गुणवत्ता पर सवाल न उठ सके. एमसीआई द्वारा ये जानकारी भी मुहैया नहीं करायी जा सकी है. हालांकि 8 फरवरी, 2018 को हुई एक संयुक्त मीटिंग में इस बात पर रजामंदी हुई थी और एमसीआई ने 12 मार्च, 2018 को ओवरसाइट कमेटी से पूरा ब्यौरा देने के लिए एक महीने का समय मांगा था.

जांच प्रक्रिया को लेकर जताई नाराजगी

ओवरसाइट कमेटी ने एमसीआई को निर्देश दिया था कि जांच किए जा रहे कॉलेज के डीन या प्रिंसपल असेसमेंट रिपोर्ट (आकलन रिपोर्ट) में अपनी असहमति जताते हैं तो उन्हें जरूर सुना जाना चाहिए. साथ ही उनकी असहमति नोट और उनके विस्तृत प्रस्तुतिकरण को एक्जीक्यूटिव कमेटी के सामने रिकॉर्ड पर लेकर पेश किया जाना चाहिए. अगर ऐसा नहीं किया गया तो किन कारणों से नहीं किया गया ये एक्जीक्यूटिव कमेटी के मिनट्स ( लिखित ब्योरा ) में बताया जाना चाहिए. ओवरसाइट कमेटी के इस मसौदे पर हेल्थ मिनिस्ट्री ने भी पूरी तरह सही करार देकर अपनी रजामंदी दे दी....लेकिन 8 जनवरी, 2018 को एमसीआई प्रेसिडेंट ने अपने पत्र के जरिए ओवरसाइट कमेटी को इन मुद्दों पर पुनर्विचार करने को कहा.

ओवरसाइट कमेटी की तरफ से हेल्थ मिनिस्ट्री को लिखी गई चिट्ठी...क्रमवार

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अपने पत्र में एमसीआई प्रेसिडेंट जयश्रीबेन मेहता कहती हैं, ‘अगर असहमति नोट पर रिजेक्शन के बाद विस्तृत जानकारी देने की रवायत हर केस में अपनाई गई तो इसे असेसर्स (इंस्पेक्टर्स) की विश्वसनियता को नीचा दिखाने की कोशिश समझा जाएगा. जबकि ये असेसर्स सरकारी मेडिकल कॉलेज के जाने माने प्रोफेसर होते हैं. साथ ही इससे उलझन पैदा होंगी और मुकदमेबाजी का सिलसिला काफी ज्यादा बढ़ जाएगा. इतना ही नहीं एक्जिक्यूटिव कमेटी पर हर केस में जवाब देने की जिम्मेदारी बढ़ जाएगी.'

ओवरसाइट कमेटी एमसीआई प्रेसिडेंट के पत्र का हवाला देते हुए इसे अपने निर्देश की अवहेलना मानती है और इस बारे में वो 8 फरवरी, 2018 को एमसीआई प्रेसिडेंट के साथ मीटिंग के दरमियान नाराजगी व्यक्त कर चुकी है. नीति में एमसीआई द्वारा एकरूपता नहीं अपनाए जाने पर जताई नाराजगी

ओवरसाइट कमेटी की नाराजगी इस बात पर भी है क्लॉज 8 (3)(1) (c) के तहत कई कॉलेजों को सजा दी गई जबकि सात कॉलेज के लिए इस नियम को उलट कर उनकी मान्यता बहाल कर दी गई. दरअसल इस नियम के तहत मान्यता प्राप्त कॉलेज में अगर 70 फीसदी से कम मरीजों की संख्या है और 10 फीसदी से ज्यादा रेसिडेंट्स और शिक्षक अनुपस्थित हैं तो उनकी मान्यता की खटाई में पड़ जाती है. ओवरसाइट कमेटी की नाराजगी इस बात पर भी है कि बिना मंत्रालय की मंजूरी लिए क्लॉज 8 (3)(1) (c) का बेजा इस्तेमाल कैसे किया गया?

डिस्चार्ज नोटिस का अनुपालन नहीं किए जाने पर जताई नाराजगी

57 कॉलेजों ने एमसीआई के नियमों का उल्लंघन कर विद्यार्थियों को अपने कॉलेज में दाखिला दिया जिसको लेकर ओवरसाइट कमेटी ने दो सप्ताह के नोटिस के बाद उन्हें निकाले जाने की मंजूरी दी. इतना ही नहीं इस प्रक्रिया की पूरी रिपोर्ट नोटिस की तारीख के तीन सप्ताह के भीतर ओवरसाइट कमेटी को सौंपने को कहा गया. ध्यान रहे 57 कॉलेजों ने नियम विरुद्ध जाकर कुछ विद्यार्थियों का दाखिला दिया था जिसका विवरण एक्जिक्यूटिव कमेटी के मिनट्स में दर्ज था. लेकिन वैसे अनुचित दाखिले को निरस्त और डिस्चार्ज करने की पूरी रिपोर्ट ओवरसाइट कमेटी को नहीं सौंपी गई.

इतना ही नहीं ओवरसाइट कमेटी को मिली जानकारी के मुताबिक 57 में से सिर्फ 3 कॉलेजों ने गैरअनुचित तरीके से लिए दाखिले को निरस्त किया ओर उन स्टूडेन्ट्स को बाहर किया. ओवरसाइट कमेटी ने 13 अप्रैल, 2018 को पत्र के जरिए त्वरित कार्रवाई का निर्देश दिया लेकिन इस पर एमसीआई ने क्या कार्रवाई की, इसकी जानकारी ओवरसाइट कमेटी को नहीं दी गई.

कई पीजी सीट्स नहीं भरे जाने पर जताई नाराजगी

ओवरसाइट कमेटी ने एमसीआई से पीजी सीट्स नहीं भरे जाने की कई वजहों को चिन्हित कर उचित कार्रवाई का निर्देश दिया. इनमें प्राइवेट कॉलेज और डीम्ड यूनिवर्सिटीज में हायर ट्यूशन फीस से लेकर अपने मनपसंद विषय का नहीं मिल पाना मुख्य वजह है. साथ ही सर्विस बॉन्ड की वो बाध्यता भी है जो नहीं माने जाने पर भारी भरकम पेनाल्टी के रूप में वसूल की जाएगी. ओवरसाइट कमेटी एमसीआई पर अपने पत्र के माध्यम से कुछ नहीं किए जाने का आरोप लगा रही है. जाहिर है ऐसे में उसे टीचिंग फैक्लटी की चिंता है जिसकी कमी देश के लिए चिंता का विषय है.

पोस्ट ग्रेजुएट सुपर स्पेशिलिटी कोर्स को लेकर भी एमसीआई से खफा

कई कॉलेजों ने एमसीआई और हेल्थ मिनिस्ट्री से परमिशन के बाद उन कोर्सेज को शुरू किया जिनकी मान्यता एमसीआई नहीं दे रही है. मसला टीचिंग फैकल्टी को लेकर है. कोर्सेज की शुरुआत में ये कमी होना लाजिमी है क्योंकि जब तक कुछ बैचेज निकलेंगे नहीं तब तक टीचिंग फैकल्टी की कमी तो बनी ही रहेगी. ओवरसाइट कमेटी ने इसके लिए सरकार और एमसीआई के साथ मीटिंग कर एक पॉलिसी ड्राफ्ट करने का निर्देश दिया था. जिसमें इनहाउस ट्रेनिंग लिए रेसिडेंट्स और डॉक्टर्स को टीचिंग फैकल्टी के लिए उपयुक्त माना जाए. इसके लिए 30 जनवरी और 20 मार्च को पत्र भी लिखा गया लेकिन एमसीआई उन विद्यार्थियों की मुश्किलों पर कोई ध्यान नहीं दे रही जिन्होंने इन सुपर स्पेशिलिटी कोर्स में दाखिला लिया है.

ओवरसाइट कमेटी डीएनबी कोर्सेज (DIPLOMATE OF NATIONAL BOARD) को एमडी, एम एस और पोस्ट ग्रेजुएट सुपर स्पेशिलिटी के समकक्ष बनाने की बात कह रही है जिसको लेकर 27 सितंबर, 2017 को आम सहमति बन गई थी. इस बात को लेकर मिनिस्ट्री के निवेदन पर ओवरसाइट कमेटी ने मेडिकल काउंसिल को इस बारे में नोटिफिकेशन भी लाने को कहा लेकिन अमेंडमेंट के बाद भी एमसीआई ओवरसाइट कमेटी से इस बारे में पुनर्विचार करने को कह रही है. ध्यान रहे डीएनबी कोर्स की मान्यता नेशनल बोर्ड ऑफ एक्जामिनेशन से दी जाती है वहीं एमडी, एमएस और पीजी एसएस की मान्यता एमसीआई द्वारा दी जाती है. दोनों को समकक्ष बनाने के पीछे उद्देश्य देश में प्राइमरी हेल्थ सेंटर से लेकर टींचिंग फैक्लटी तक की कमी को पूरा करना था.

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अंत में ओवरसाइट कमेटी ने इस मुद्दे पर मिनिस्ट्री से उचित उपाय करने की मांग की है और इसे सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में लाने की बात भी कह रही है.

जाहिर है सरकार की कोशिश इस मॉनसून सत्र में नेशनल मेडिकल काउंसिल बिल (एनएमसी बिल) लाने की है जिससे मेडिकल एजुकेशन में घोर अनियमितता को दूर किया जा सके. ऐसा सरकार संसदीय कमेटी की सलाह पर कर रही है जिससे भारतीय चिकित्सा प्रणाली में मौजूद कई खामियों को दूर किया जा सके. इस चिट्ठी पर प्रतिक्रिया लेने के लिए फ़र्स्टपोस्ट ने एमसीआई की प्रेसिडेंट और वरिष्ठ सदस्य से संपर्क साधने की कोशिश की लेकिन किसी ने भी इस बारे में कुछ भी कहने से इनकार कर दिया.

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