सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा मंगलवार को रिटायर हो गए हैं. सोमवार को उनके लिए विदाई समारोह का आयोजन किया गया. इस दौरान दीपक मिश्रा ने अपने भाषण में कहा कि 'मैं लोगों के इतिहास के आधार पर जज नहीं करता. मैं लोगों को उनकी गतिविधियों से जज करता हूं.' उन्होंने कहा, भारतीय न्यायतंत्र दुनिया की सबसे मजबूत संस्था है.
I do not judge people by history, I judge people by their activities and their perspectives: Outgoing Chief Justice of India Dipak Misra during his farewell address in Delhi. pic.twitter.com/MSeOx7o9Cu
— ANI (@ANI) October 1, 2018
इसके साथ उन्होंने ये भी कहा कि न्याय का मानवीय चेहरा होना चाहिए. उन्होंने कहा कि गरीब आदमी के आंसू और अमीर के आंसू बराबर हैं. उन्होंने कहा कि न्याय के दोनों पलड़ों में संतुलन होना चाहिए. चीफ जस्टिस ने कहा कि आंसू मोती हैं. मैं उन्हें इंसाफ के दामन से समेटना चाहता हूं. अमीर और गरीब के आंसू अलग-अलग नहीं होते हैं. उन्होंने कहा कि जस्टिस गोगोई न्यायिक गरिमा की आगे बढ़ाते रहेंगे.
Delhi: Visuals from the farewell function of outgoing Chief Justice of India Dipak Misra. pic.twitter.com/51PD5BW1bp
— ANI (@ANI) October 1, 2018
इसके साथ उन्होंने युवा वकीलों की भी जमकर तारीफ की और कहा कि वे बार एसोसिएशन के कर्जदार हैं. उऩ्होंने कहा कि वे यहां से पूरी संतुष्टी के साथ विदा ले रहे हैं.
दीपक मिश्रा ने अपने भाषण में कॉलेजियम सिस्टम की भी जमकर तारीफ की. इसके साथ उन्होंने ये भी कहा कि सोसायटी बच्चे की दूसरी मां होती है.
रंजन गोगोई ने क्या कहा?
वहीं जस्टिस रंजन गोगोई ने भी दीकपक मिश्रा के शानदार कैरियर के लिए उनकी प्रशंसा की और कहा कि नागरिक स्वतंत्रता के मामले में उनका बहुत अधिक योगदान रहा है. इस संबंध में उन्होंने उनके हाल के फैसलों का विशेष उल्लेख किया.
जस्टिस गोगोई ने कहा, ‘शायद हम जाति, वर्ग और विचाराधारा के आधार पर पहले से कहीं अधिक बंट गए हैं. हमें क्या पहनना चाहिए, हमें क्या खाना चाहिए,हमें क्या कहना चाहिए, क्या पढ़ना और सोचना चाहिए , हमारी निजी जिंदगी के छोटे और महत्वहीन सवाल नहीं रह गए है.’
उन्होंने कहा,‘हालांकि, भले ही वे हमें पहचान और उद्देश्य देते हैं और हमारे लोकतंत्र की महानता को समृद्ध करते हैं, पर ये वे मुद्दे हैं जो हमें बांटकर विभाजित करते हैं. वे हमें उन लोगों से घृणा करवाते है जो भिन्न हैं.’
उन्होंने कहा कि चुनौती एक साझा वैश्विक नजरिए के निर्माण और उसके संरक्षण की है जो ‘हमें एक समुदाय के रूप में एकजुट करती है’ और ऐसा साझा दृष्टिकोण संविधान में पाया जा सकता है.
(भाषा से इनपुट)
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