बाघों के संरक्षण के लिए देश और दुनियाभर में कई मुहिम चलाई जा रही हैं. पहले प्रोजेक्ट टाइगर का निर्माण किया गया फिर एनटीसीए बनाया गया. लेकिन बाघ अभी भी खतरे में पड़ी प्रजातियों की श्रेणी में ही है. ओडिशा के सिमिलिपाल टाइगर रिजर्व में 2006 में जहां 100 से ज्यादा बाघ हुआ करते थे. वहीं 2018 में इनकी संख्या घटकर अब 28 रह गई है.
ओडिशा सरकार के मुताबिक 2016 में पैरों के निशान और कैमरा ट्रैप्स की मदद से किए गए सेंसस में पाया गया कि मयूरभांज के सिमिलिपाल में 28 बाघ ही बचे हैं. और इसके लिए पोचिंग काफी हद तक जिम्मेदार है. न्यूज एजेंसी के एएनआई के मुताबिक, सिमिलिपाल ने पिछले 12 साल में अपने 75 बाघ खोए हैं.
Odisha: Similipal tiger reserve loses 75 tigers in 12 years
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देश के पहले बाघों के अंतरराज्यीय हस्तांतरण को भी लगा झटका
ओडिशा में बाघों की घटती आबादी के लिए मध्यप्रदेश से भी मदद ली गई थी. लेकिन देश के इस पहले बाघों के अंतरराज्यीय हस्तांतरण को भी तब बड़ा झटका लगा, जब कुछ दिन पहले ही मध्यप्रदेश से सतकोसिया वन्यजीव अभयारण्य में एक बाघ मृत पाया गया. इस बाघ को कान्हा टाइगर रिजर्व से सतकोसिया लाया गया था. वहीं इससे पहले सतकोसिया में ही मध्यप्रदेश से भेजी गई एक बाघिन ने इनसान को अपना शिकार बनाया था. जिससे गुस्साए लोगो ने टाइगर रिजर्व के कार्यालय में आग लगा दी थी. इसके अलावा एक बाघ कई दिनों से लापता भी है. हालात बिगड़ते देख एनटीसीए ने ओडिशा सरकार को सलाह भी दी थी कि बाघों के हस्तांतरण पर रोक लगाई जाए.
वाइल्डलाइफ सोसायटी ऑफ ओडिशा (WSO) के सेक्रेटरी बिश्वजीत मोहंती ने एएनआई को बताया कि रिजर्व ने अपने 75 टाइगर खोए हैं. ये बिलकुल भी अच्छे संकेत नहीं हैं, क्योंकि टाइगर कंजरवेशन के लिए जनता के करोड़ों रुपए अकेले सिमिलिपाल में खर्च किए गए हैं. एनटीसीए ने भी बाघों की संख्या में बढ़ोतरी बताई है. लेकिन ओडिशा में बाघों की संख्या का ग्राफ गिरा है.
कभी ब्लैक टाइगर के बारे में सुना है
आपको मोगली का दोस्त बघेरा याद होगा. काले रंग का बघेरा कोई काल्पनिक जीव नहीं है. बल्कि अफ्रीका से लेकर भारत तक में पाया जाता है. हालांकि इनकी आबादी इतनी नहीं है, जितनी सामान्य तौर पर दिखने वाले तेंदुए की होती है. ये जीव तेंदुए ही होते हैं, बस जीन्स में कुछ बदलावों के कारण इनका रंग काला हो जाता है. ठीक वैसे ही ब्लैक टाइगर भी होते हैं. हां, आपको सुनने में अटपटा जरूर लग रहा होगा. लेकिन ब्लैक टाइगर भी जंगलों में जीवित हैं और ये सिर्फ ओडिशा में ही पाए जाते हैं. हालांकि जंगलों में ये गिनती के ही बचे हैं. ओडिशा के सतकोसिया और सिमिलिपाल टाइगर रिजर्व में 2006 में 45 के करीब ब्लैक टाइगर्स पाए जाते थे. लेकिन अब इनकी संख्या घटकर 20 के आसपास ही रह गई है.
पोचर्स कर रहे हैं बाघों के शिकार का शिकार
वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट्स का मानना है कि बाघों की घटती आबादी की एक सबसे बड़ी वजह उनका कम होता शिकार भी है. ओडिशा में जानवर शिकारियों के डर में जी रहे हैं. एक्सपर्ट्स का कहना है कि पोचर्स (शिकारी) बाघों के शिकार (हिरण, सांभर आदि) को निशाना बना रहे हैं. रिसर्चर्स ने जो कैमरा ट्रैप्स लगाए थे, उनमें भी जंगलों में शिकारियों के घूमते हुए की तस्वीरें कैद हुई हैं. 2012 में ओडिशा के टाइगर रिजर्व्स के कौर एरिया (अंदरूनी इलाका) में भी सात पोचर्स पाए गए थे.
बाघों के संरक्षण के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं. लेकिन इतनी बड़ी संख्या में हो रही बाघों की मौत ये भी सवाल खड़ा करती है कि क्या इस पैसे का सही इस्तेमाल किया जा रहा है? मोहंत ने कहा है कि हर साल सिमिलिपाल टाइगर रिजर्व पर केंद्र सरकार पांच से छह करोड़ रुपए खर्च कर रही है. पिछले 12 सालों में राज्य और केंद्र सरकारों ने मिलकर 100 करोड़ से ज्यादा रुपए खर्च किए. पर फिर भी मौजूदा दिनों में पोचिंग बढ़ी है, इसके लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए.
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