अपना ही पैसा निकालने के लिये लोग एटीएम पर वैसे ही दिखाई दे रहे हैं, जैसे जमीन अधिग्रहण के बाद अनाज पैदा करने वाला किसान राशन की दुकान पर कतारों में नजर आता है. कहीं सैकड़ों की भीड़ जो अपनी बारी का इंतजार करते-करते 3 घंटे खड़ी रहती है और अचानक शोर उठता है कि एटीएम में पैसे खतम.
भीड़ की शक्ल में नौकरीपेशा हैं, दुकानदार हैं, रिटायर्ड सीनियर सिटिजन्स हैं , घरेलू-कामकाजी महिलाएं हैं, छोटे कारोबारी हैं तो छात्र हैं. एक कतार में पूरा समाज हर गली-मोहल्ले और चौराहे पर बने एटीएम पर अपनी बारी के इंतजार में दिखाई दे रहा है. चाहे वक्त कोई भी हो. तड़के सुबह या फिर रात में 12 बजे का ही पहर क्यों न हो.
अब तो ये हाल है कि लोग रात से ही लाइन लगा कर एटीएम और बैंक पर खड़े हैं. सिर्फ दो हजार रुपये के लिये दो हजार लोग लाइन में खड़े हुए हैं. क्योंकि ये दो हजार अब बीस हजार रुपये से कम नहीं दिखाई दे रहे हैं.
सरकार कहती है कि जनता ने उसके फैसले को स्वीकार किया और इसलिये जनता का धन्यवाद.
नोट बैन से पहले नहीं सोचा बैकअप प्लान
प्लान ए तो तैयार रहा लेकिन प्लान बी को लेकर क्या संवेदनशीलता नहीं रखी गई ? यानी देश की वो जनता जो राष्ट्रहित में लिये गए फैसले के लिये सरकार के साथ है उसकी भावनाओं और परेशानियों के साथ सरकार नहीं है. बैंको और एटीएम में लगातार उमड़ती और भटकती भीड़ से संदेश तो सकारात्मक नहीं आ रहा है.
New Delhi: People queue up outside at ATM to withdraw money in New Delhi on Monday. PTI Photo by Subhav Shukla (PTI11_14_2016_000108B)
वित्तमंत्री अरुण जेटली का कहना है कि गोपनियता के चलते एटीएम पर नए नोटों को रीकॉन्फिगर नहीं किया गया. लेकिन जितनी आसानी के साथ नोटबंदी का फैसला सुनाया गया उतनी ही सहूलियत भी आम जनता के लिये सोची जानी चाहिये थी. नोटबंदी पर सरकार के फैसले और टाइमिंग पर सवाल नहीं किया जा सकता है क्योंकि गोपनियता बरतने के लिये कड़े फैसले जरुरी हैं. लेकिन उतनी ही कारीगरी के साथ सौ के नोटों की सप्लाई को युद्धस्तर पर किया जाना चाहिये.सिर्फ तकनीकी पहलुओं का हवाला देकर जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ा जा सकता है.
इस वक्त आम आदमी की रोजमर्रा की इकॉनॉमी सौ-सौ के नोट पर टिकी हुई है. पहले ये पांच सौ- हजार के नोट पर चलती थी. लेकिन इस वक्त सौ-सौ के नोट ही एटीएम में उपलब्ध नहीं हैं. नए नोट की ट्रे तैयार होने के बाद परेशानी कम हो जाएगी. 500 और 2000 के नोटों की साइज पुराने नोटों से छोटी है. इसलिये एटीएम में उनके हिसाब से ट्रे तैयार होगी. देश भर में 2 लाख एटीएम मशीने हैं. एक मशीन को नए नोटों के हिसाब से तैयार करने में 4 घंटे का वक्त लगेगा. ऐसे में खुद वित्तमंत्री मान रहे हैं कि एक महीने का समय कहीं नहीं गया. छोटा सा ही सही लेकिन एक जरूरी सवाल ये है कि क्या एटीएम में नए नोटों की ट्रे को तैयार करने का काम गोपनीय तरीके से पहले नहीं किया जा सकता था ?
सवाल बहुत हैं लेकिन फिलहाल बड़ा सवाल संडे की छुट्टी का है क्योंकि बाजार में छुट्टे का झंझट है.
अब छुट्टी का दिन भी उसी छुट्टे के लिये एटीएम पर कुर्बान है. संडे हो या मंडे ...अब रोज जाइए एटीएम.
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