शाम 7 बजे अगर कोई लड़की अकेली कहीं जा रही हैं और उसके साथ कुछ होता है तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है? इस सवाल का जवाब खोजने की कोशिश मत कीजिए, क्योंकि इसके लिए लड़की के अलावा कोई और जिम्मेदार हो ही नहीं सकता. यह मुद्दा इतना पक्का और बोरिंग हो गया है कि अब ऐसी खबरों से ना किसी को गुस्सा आता है और ना कोई प्रतिक्रिया आती है.
हर बार की तरह इस बार भी ऐसा ही हुआ है. रायपुर की एक महिला टीचर स्नेहा शंखवार ने जीवन भर कमाया अपना ज्ञान जगजाहिर कर दिया है. यह रायपुर के केंद्रीय विद्यालय में पढ़ाती हैं. स्कूल का नाम सुनकर यह तो पक्का हो ही गया है कि यह गांव का कोई स्कूल नहीं बल्कि केंद्रीय विद्यालय है. उस महिला टीचर ने कहा है, 'लिपस्टिक लगाने और भड़काऊ कपड़े पहनना निर्भया कांड जैसी घटनाओं को बुलावा देना है.' उस टीचर का कहना है कि रात में लड़कियों का घुमना भी ऐसी घटनाओं को बढ़ावा देता है. यानी अगर लड़कियों को इस तरह के हादसों से बचना है तो खुद को छिपाकर, बदसूरत बनाकर ही रखना होगा. शंखवार जिस क्लास में यह बात समझा रही थी वहां लड़के-लड़कियां दोनों थे.
रेप, छेड़छाड़ की बात जब भी होती है उसमें बगैर कुछ सोचे लड़कियों को जिम्मेदार बता दिया जाता है. भारतीय समाज में यह मानसिकता इस कदर हावी हो चुकी है कि लड़कों के बर्ताव पर कहीं कोई चर्चा नहीं होती है. हमारा समाज किस कदर विकृत हो चुकी है, उसका अंदाजा इस घटना से लगा सकते हैं. कर्नाटक में 27 जनवरी को एक 60 साल की महिला का रेप और हत्या कर दी गई. उस महिला के मुंह में कपड़ा ठूंसकर उसके साथ मारपीट भी की गई. मुमकिन है कि 60 साल की उस महिला ने तो लिपस्टिक लगाई होगी और ना ही छोटे कपड़े पहने होंगे. लेकिन फिर भी उसके साथ जो हुआ उसके लिए कौन जिम्मेदार है?
यह कोई एक घटना नहीं है. अखबारों की सुर्खियों पर नजर डालेंगे तो हर हफ्ते ऐसी कई खबरें आती हैं, जिसमें महिलाओं के साथ रेप और छेड़छाड़ होती है. 2012 में निर्भया कांड हुआ था, तब सड़कों पर लोगों का गुस्सा नजर आया था. रात को अपने साथी के साथ फिल्म देखना क्या अपराध है? शंखवार जैसे लोगों का जवाब एक ही है. वह इन हादसों के लिए सिर्फ महिलाओं को ही जिम्मेदार मानते हैं. ये लोग पुरुषों या लड़कों में कोई सोच या समझ विकसित नहीं करना चाहते हैं. महिलाओं या लड़कियों की दुश्मन विकृत मानसिकता वाले पुरुष ही नहीं बल्कि शंखवार जैसी महिलाएं भी हैं.
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