राजस्थान में अलवर जिले के बहरोड़ में एक हत्या ऐसी हुई जिसमें कोई हत्यारा साबित नहीं हुआ है. मेवात इलाके के पशुपालक पहलू खान जयपुर में पशु मेले से गाय खरीद कर हरियाणा में अपने घर ले जा रहा था. एक अप्रैल को NH-8 पर बहरोड़ पहुंचा तो सैकड़ों की भीड़ ने उसपर गौ तस्कर होने का आरोप लगाकर पिटाई शुरू कर दी.
हम सबने वो तस्वीरें देखी हैं जिनमें पहलू और उसका बेटा भीड़ से रहम की भीख मांग रहा है. लेकिन दरिंदो की भीड़ में एक भी शख्स इतना दरियादिल नहीं निकला कि खून से सने पहलू खान को बख्श दे.
5 महीने बाद अब राजस्थान की CB-CID ने अपनी जांच में सभी आरोपियों को क्लीन चिट दे दी यानी पहलू खान का हत्यारा कोई नहीं है. बहरोड़ पुलिस ने इन छह लोगों के अलावा 200 अन्य लोगों पर भी मामला दर्ज किया था. लेकिन अब CB-CID ने पुलिस से इन छह लोगों के नाम सूची से हटाने की सिफारिश भी की है.
ये क्लीन चिट इस तथ्य के बावजूद दी गई है कि पहलू खान के पर्चा बयान ( dying declaration ) में छह आरोपियों के नाम दर्ज हैं. डेथ डिक्लेरेशन, मरने वाले शख्स का आखिरी बयान माना जाता है और इसकी सत्यता से आमतौर पर अदालत भी इनकार नहीं करती है.
जिन 6 आरोपियों को अब क्लीन चिट दी गई है, उनपर पुलिस ने पहले पांच-पांच हजार का इनाम भी रखा था. अलवर एसपी राहुल प्रकाश ने बताया कि इन पर से इनाम भी हटा लिया गया है. ये छह आरोपी थे- ओम यादव, हुक्म चंद यादव, सुधीर यादव, जगमाल यादव, नवीन सैनी और राहुल शर्मा.
इस पिटाई का वीडियो वायरल हो गया था. इसके बाद सड़क से लेकर संसद तक इसकी गूंज सुनाई दी तो सरकार ने आनन-फानन में जांच का स्तर बदला. बहरोड़ के तत्कालीन थानाप्रभारी रमेश चंद्र सिनसिनवार और डीएसपी से होती हुई जांच कोटपूतली एएसपी रामस्वरूप शर्मा के पास पहुंची. लेकिन 3 दिन बाद ही जांच CB-CID को सौंप दी गई.
पहलू को ‘पापी’ साबित करने की हुई कोशिश
शुरुआती जांच के बाद कुल 7 लोग गिरफ्तार भी किए गए थे. हालांकि इनमें से 5 को जमानत मिल गई. ये मामला जितना उछलता रहा, उतनी ही जांच की दशा और दिशा भी बदलती रही. कभी पहलू को गौ-तस्कर साबित करने की कोशिश हुई तो कभी कहा गया कि हिंसा की शुरुआत उसी ने की थी. राज्य सरकार तक की ओर से कहा गया कि पहलू के पास गौवंश ले जाने के वैध पेपर नहीं थे.
हालांकि सरकारी पक्ष की ये सभी कहानियां मीडिया ने ही झूठी साबित कर दी. पहलू खान के पास पशु बाजार से गाय खरीदने की सरकारी पर्ची थी. वह गौ-तस्कर नहीं था और न ही गाय को काटने के लिए ले जा रहा था. अगर ऐसा होता तो वह दुधारू गाय को न खरीदता. आमतौर पर गौ तस्कर सस्ती होने के कारण मरणासन्न गाय ही खरीदते हैं. पहलू के परिवार ने बताया कि वह बच्चों के दूध की खातिर गाय ला रहा था.
क्लीन चिट का आधार मोबाइल लोकेशन
CB-CID ने क्लीन चिट का आधार आरोपियों की मोबाइल लोकेशन को बनाया है. जांच रिपोर्ट में लिखा गया है कि घटना के समय इन लोगों की मोबाइल लोकेशन किसी दूसरी जगह की थी. क्लीन चिट का दूसरा आधार राठ गौशाला के कर्मचारियों और दूसरे लोगों के बयानों को भी बनाया गया है.
शुरुआती जांच से जुड़े रहे एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने लेखक को नाम न छापने की शर्त पर बताया कि ये दोनों ही आधार हास्यास्पद हैं. अधिकारी के अनुसार यह जरूरी नहीं कि आरोपियों के पास घटना के समय मोबाइल मौजूद ही हो. हो सकता है मोबाइल घर या किसी दूसरी जगह रखा हो. ये भी हो सकता है कि आरोपियों के नाम एक से ज्यादा सिम हों, जो कोई और इस्तेमाल कर रहा हो.
यह सच भी हो सकता है क्योंकि आंखोंदेखी को कोई कैसे झुठला सकता है. वायरल हुए वीडियो में साफ दिख रहा है कि पहलू खान को भीड़ कितनी बेरहमी से पीट रही है.
सरकार के लिए नासाज बनेगी क्लीन चिट!
सभी आरोपियों को क्लीन चिट ने राजस्थान ही नहीं, दिल्ली का भी सियासी पारा एकाएक बढ़ा दिया है. जयपुर में ही साझी विरासत बचाओ सम्मेलन में हिस्सा लेने आए नेताओं ने इस मुद्दे पर आरपार की बात कही है. कांग्रेस तो पहले से ही इस मामले की सीबीआई जांच की मांग कर रही थी. स्पष्ट है कि राजे सरकार ही नहीं बल्कि मोदी सरकार के लिए भी आने वाले दिन कम मुश्किल वाले नहीं होंगे.
दरअसल, ये पहला मामला नहीं है जब कथित गौ रक्षकों ने किसी की पीट-पीटकर हत्या कर दी हो. दादरी का अखलाक हो या फरीदाबाद का जुनैद. बताया जा रहा है कि 2015 के बाद ऐसी हिंसा में 20 से ज्यादा जान जा चुकी हैं.
अभी कुछ दिन पहले ही आई एक गैर सरकारी संगठन की रिपोर्ट में बताया गया कि पिछले 10 साल में गौरक्षा के नाम पर हुई हिंसा के 97% मामले 2014 के बाद के हैं.
सरकार को किसी भी सख्ती का ख्याल नहीं?
कथित गौ रक्षकों की लगातार बढ़ती गुंडागर्दी के खिलाफ खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कई मौकों पर खुलकर चेतावनी दे चुके हैं. लेकिन लगता नहीं कि उनकी चेतावनी का कोई असर हुआ है. हालांकि विपक्ष का कहना है कि ये चेतावनियां तो महज दिखावटी गुस्सा हैं ताकि आमजन को बरगलाया जा सके.
अभी दो हफ्ते पहले ही सुप्रीम कोर्ट की चीफ जस्टिस दीपक मिश्र, जस्टिस अमिताव रॉय और जस्टिस ए एम खानविल्कर की बेंच ने गौ रक्षकों की हिंसा पर कड़ी फटकार लगाते हुए राज्यों से हर जिले में नोडल पुलिस अफसर तैनात करने के निर्देश दिए थे. राजस्थान ने अन्य बीजेपी शासित राज्यों हरियाणा, गुजरात और महाराष्ट्र के साथ इस निर्णय पर सहमति जताते हुए डीएसपी रैंक के अधिकारी की तैनाती की बात मानी थी.
इस मामले में अगली सुनवाई 22 सितंबर को है. लेकिन इससे पहले राजस्थान की बीजेपी सरकार के चेहरे का दूसरा पहलू सामने आ गया है. कांग्रेस का आरोप है कि पहलू खान मामले में कथित गौ तस्कर संघ परिवार के विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल जैसे संगठनों के सदस्य थे. यही कारण है कि मामले को ठंडा करने के लिए पहले उनकी गिरफ्तारी जरूर कर ली गई. लेकिन जांच को भटकाकर अब उन्हें आखिरकार बेगुनाह साबित कर दिया गया.
देश में लगातार बनते असहिष्णु माहौल और बिगड़ते सौहार्द के बाद सोशल मीडिया और बुद्धिजीवियों के व्यापक विरोध को भी देखा गया है. बीजेपी सरकारों की ‘भीड़तंत्र’ के प्रति कथित उदारता के विरोध में 'नॉट इन माई नेम' जैसे आंदोलन भी व्यापक समर्थन हासिल कर चुके हैं.
बहरहाल, अब वक्त आ गया है जब गौरक्षा के नाम पर भीड़तंत्र की हिंसा को व्यापक अराजकता बनने से पहले ही सख्ती से कुचल दिया जाए. वरना यह समाज, संवृद्धि और विकास पर एक साथ नकारात्मक प्रभाव डालेगा. अगर ऐसा नहीं किया गया तो सबका साथ, सबका विकास का नारा दुनिया का सबसे बड़ा झूठ ही कहा जाएगा.
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