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अगर रक्षामंत्री कह रही हैं तो मान लीजिए कि डोकलाम-2 नहीं होगा

भारत अब अपनी विदेश नीति में परंपरागत आदर्शवादी सिद्धांतों को परे रख कर 'वास्तविकता' को केंद्र में रख कर आगे बढ़ रहा है. अब वास्तविकता के साथ जीना ज्यादा अच्छे नतीजे देता है.

Updated On: Mar 20, 2018 12:54 PM IST

Sreemoy Talukdar

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अगर रक्षामंत्री कह रही हैं तो मान लीजिए कि डोकलाम-2 नहीं होगा

रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि डोकलाम-2 की संभावना बहुत दूर की बात है. उनका कहना सही है. हवाओं की सवारी करने वाले मीडिया के दावों से इतर ठंडे दिमाग से जमीनी हकीकत का जायजा लें तो जान जाएंगे कि विवादास्पद हिमालय क्षेत्र में, जहां बीते साल 73 दिन तक तनातनी चली थी, चीन की नई सरगर्मियों को लेकर भारत को फिक्रमंद होने की जरूरत नहीं है. लेकिन इसका कतई यह मतलब नहीं है कि हमें सतर्क रहने और अपनी क्षमता मजबूत करने की जरूरत नहीं है, बल्कि इस बात को समझने की जरूरत है कि जिन परिस्थितियों ने डोकलाम तनाव को पैदा किया था, वो अब बदल चुकी हैं और अब हमें नई स्थितियों के साथ चलना चाहिए.

शनिवार को न्यूज18 राइजिंग इंडिया समिट के मौके पर सीतारमण ने डोकलाम में एक और टकराव की आशंकाओं को खारिज कर दिया, हालांकि जब से यह क्षेत्र चीन के वास्तविक नियंत्रण में गया है, उसके बाद से यहां पहली बार इतना भारी सैनिक जमावड़ा हुआ है. रक्षा मंत्री ने हाल ही में सदन में भी एक सवाल का जवाब देते हुए बीते साल के टकराव वाली जगह के करीब ही चीनी निर्माण और सैन्य तैनाती का ब्योरा दिया है.

उन्होंने 5 मार्च को लोकसभा को बताया, 'इन सैनिक टुकड़ियों की सर्दियों में यहां तैनाती बनाए रखने के लिए चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने कुछ बुनियादी ढांचे तैयार किए हैं, जिनमें संतरी पोस्ट, खाइयां और हैलीपैड्स शामिल हैं.'

सीतारमण की टिप्पणी कुछ हालिया सेटेलाइट तस्वीरों की पुष्टि करती है, जिनमें दिखता है कि चीन ने हाल के दिनों में स्थायी और अर्ध-स्थायी भौतिक मौजूदगी में 'जमीनी तथ्यों में' कुछ बदलाव किए हैं.

द प्रिंट में छपी कर्नल विनायक भट्ट (सेवानिवृत्त) की रिपोर्ट के अनुसार: 'उस स्थान के करीब की नई सेटेलाइट तस्वीरों में, जहां बीते साल भारतीय सेना और चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की टुकड़ियां 73 दिन तक आमने-सामने डटी रही थीं, कंक्रीट की पोस्ट, सात हैलीपैड, नई खाइयां और कई दर्जन वाहन दिख रहे हैं.' इस रिपोर्ट में 'कम से कम एक संपूर्ण मैकेनाइज्ड रेजिमेंट जो कि संभवतः जेडबीएल-90 आईएफवी या इंफेंट्री लड़ाकू वाहन हो सकते हैं' की मौजूदगी का भी जिक्र है.

रक्षामंत्री ने कहा, डोकलाम-2 संभव नहीं

इस हकीकत की रौशनी में, अब रक्षा मंत्री की न्यूज18 राइजिंग इंडिया समिट के मौके पर की गई टिप्पणी का आकलन करते हैं. सतर्क रहने की जरूरत पर जोर देते हुए सीतारमण ने कहा कि उन्हें 'पूरा यकीन' है कि डोकलाम फिर से दोहराया नहीं जाएगा. न्यूज18 थॉट लीडरशिप इनिशिएटिव में अपने संबोधन में उन्होंने कहा, 'विदेश मंत्रालय ने बेशक डोकलाम पर स्थिति को लेकर विस्तृत उत्तर दिया है. मैं इसमें कुछ और जोड़ना नहीं चाहती, लेकिन मैं निश्चित तौर पर कह सकती हूं कि डोकलाम-2 नहीं होगा. विभिन्न स्तरों पर इंतजाम किए जा रहे हैं. जैसे कि स्थापित प्रक्रिया है, जिसमें एक विशेष प्रतिनिधि के साथ वार्ताओं के करीब 20 दौर हो चुके हैं. इसके अलावा सीमा पर तैनात बल की फ्लैग मीटिंग हुई है और हाल में सेना प्रमुख ने कहा है कि, हमने बातचीत फिर से शुरू की है… हम विभिन्न स्तर पर कदम उठा रहे हैं… हमें सतर्क रहना होगा और हर मिनट सचेत रहना होगा कि हमारी सरहद पर क्या हो रहा है और क्या नहीं हो रहा है.'

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क्या रक्षा मंत्री अति-आत्मविश्वास का शिकार हैं? क्या उनके तर्क हकीकत के विपरीत हैं? इन सवालों का जवाब ना में है.

सबसे पहली बात, यह ध्यान देना चाहिए कि यह कंस्ट्रक्शन गतिविधियां हिमाचल के ऊंचाई वाले उस स्थान पर हो रही हैं, जिस पर भूटान और चीन दोनों दावा करते हैं. डोकलाम पठार पर भारत ने कभी भी संप्रभुता का दावा नहीं किया. चीन ने इस विवादास्पद क्षेत्र में जिस सीमा (इसके 1988 और 1998 के भूटान के साथ हुए समझौते के उल्लंघन में) तक सैन्य टुकड़ियों की मौजूदगी और स्थायी निर्माण किया है, यह चिंता का विषय होना चाहिए, क्योंकि यह चीन के अनुबंधों को तोड़ने और अपने विस्तारवाद के लिए जबरदस्ती की प्रवृत्ति के अनुरूप ही है.

फिर भी चीन जब तक टकराव वाली जगह पर यथास्थिति में बदलाव नहीं करता है, और गेमोचेन की दिशा में 'मौजूदा टर्मिनल प्वाइंट से, जो कि डोकलाम सीमा से करीब 68 किलोमीटर दूर है और भारत और चीन व भूटान के बीच विवादास्पद क्षेत्र से गुजरता है, इस रोड के चौड़ीकरण, निर्माण या विस्तार की कार्रवाई नहीं की जाती' जिससे की भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर के लिए सीधा खतरा पैदा होता हो, भारत के पास किसी तरह का नैतिक, कानूनी या सामरिक कारण नहीं है कि वह चीन की गतिविधियों में दखलअंदाजी करे. सरकार अपने इस बयान पर कायम है कि अभी तक ऐसा कोई फेरबदल नहीं हुआ है. 'हमारा ध्यान कुछ रिपोर्ट की ओर दिलाया गया जिसमें डोकलाम में हालात को लेकर जिनमें सरकार द्वारा बताई गई स्थिति को लेकर सवाल उठाए गए हैं.' विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने जनवरी में कहा था कि, 'सरकार एक बार फिर दोहराती है कि मुठभेड़ वाली जगह पर यथास्थिति में कोई बदलाव नहीं किया गया है. इसके विपरीत कही जा रही कोई भी बात गलत और शरारतपूर्ण है.'

चीन ने विवादास्पद जगह पर सेना कैसे बढ़ा ली है?

ऐसे में एक जायज सवाल उठता है. अगर टकराव वाली जगह पर यथास्थिति कायम है तो चीन ने विवादास्पद स्थान पर सैन्य बल की मौजूदगी में भारी बढ़ोत्तरी कैसे कर ली है और वहां सुरक्षा ढांचे कैसे बना लिए? क्या इसे भारत के खिलाफ खतरे के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए?

इस सवाल का जवाब पाने के लिए हमें डोकलाम प्रस्ताव के पीछे की प्रेरणा को समझना होगा. जब दो बड़ी शक्तियों के बीच तनाव पैदा हो जाता है तो शायद एक प्रस्ताव अंतिम उपाय है जहां दोनों पक्ष अपनी 'विजय' का दावा कर सकते हैं. भारत के लिए यह इसलिए जीत है क्योंकि वो चीन के सामने डटा रहा, उसके जबरदस्ती अपनी बात मनवाने की रणनीति को अस्वीकार कर दिया और उसे पीएलए की कंस्ट्रक्शन यूनिट द्वारा किए बदलावों से पहले की यथास्थिति पर लौटने को मजबूर कर दिया. यह नतीजे महत्वपूर्ण हैं.

जाने-माने रक्षा विशेषज्ञ ओरियाना स्कायलर मास्त्रो और अरजान तारापोरे 'वार ऑन द रॉक्स' में लिखते हैं, 'यथास्थिति में परिवर्तन की चीन की कोशिश को प्रभावी रूप से खारिज करके भारत ने उसे बांध दिया, जो भारत की सामरिक रणनीति के हिसाब से सटीक कदम था. भारत ने चीन की जबरदस्ती को बर्दाश्त नहीं किया और इसे चीन द्वारा उत्पन्न की गई स्थिति को पलटने के लिए अपनी पूरी ताकत लगाने की जरूरत नहीं है, जिसका अंजाम एक संपूर्ण युद्ध हो सकता है.'

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डोकलाम में भारत की बढ़त फिर भी एक जीत

चीन का क्या करें? इस बात को छोड़ दें कि क्या ब्रिक्स समिट के चलते मामले का हल हुआ, शी जिनपिंग अब भी घरेलू आलोचकों के सामने इसे 'जीत' कह कर पेश करते हैं. निश्चित रूप से निरंकुश शासन में यह और भी मुश्किल काम है. चीनी प्रचार तंत्र ने शी की 'दिग्विजयी सम्राट' की छवि बना रखी है, जिससे 'गरीब, खराब और गंदे भारत' को पराजित कर मिडिल किंगडम का प्राचीन वैभव वापस लेने की आशा की जाती है.

डोकलाम में भारत के हाथों चीन की 'पराजय' से चीन की छवि को धक्का लग सकता था और यह उन्हें दुनिया के सबसे नए सुपर पावर का नेतृत्व करने से अयोग्य बना सकती थी. जाहिर है कि डोकलाम में निर्माण की गतिविधियां घरेलू आलोचकों का मुंह बंद करने के लिए नुमाइशी ज्यादा हैं.

शी अब पीएलए की बढ़ी हुई तैनाती और सैन्य निर्माण गतिविधियों को यह कह कर पेश कर सकते हैं कि 'चीन भले ही भारत के साथ तनाव कम कर करने के लिए शराफत दिखाते हुए पीछे हट गया हो, लेकिन अब इसका डोकलाम पर पूरा नियंत्रण है.' यह 'हालात पर पूरी तरह नियंत्रण' दिखाना चीनी कम्युनिस्ट पार्टी नेतृत्व के लिए बहुत अहम है.

तीसरी बात, चीनी सैन्य जमावड़े को छोड़ दें तो भी डोकलाम ऐसी जगह है जहां भारत को सिर्फ सीमित सैन्य बढ़त हासिल है. जैसा कि भारतीय सेना के सेवानिवृत्त कर्नल अजय शुक्ला अपने ब्लॉग में लिखते हैं, सिक्किम सेक्टर ऐसा स्थान है 'जहां भारत चीन पर हमला कर सकता है, ना कि चीन भारत पर.' लेखक तर्क देते हैं कि सिलीगुड़ी कॉरिडोर इतना आसान सामरिक प्वाइंट नहीं है, जितना समझा जा रहा है.

वह बताते हैं: 'अगर चांबी घाटी में समुचित मात्रा में सैन्य बल पहुंचाना एक चुनौती है, तो इस बॉटलनेक में भारतीय तोपखाने, वायु और जमीना हमलों से बचाना और भी मुश्किल होगा. इसके बाद पीएलए को मजबूत भारतीय रक्षा तंत्र, खासकर ऊंचाइयों पर हमले, और फिर पूरे रास्ते संख्या बल में श्रेष्ठ भारतीय सेनाओं के हमले के डर के साये तले दक्षिण में सिलीगुड़ी के घने जंगलों वाली पहाड़ियों पर आगे बढ़ना होगा…अगर चमत्कारी रूप से चीनी फिर भी सिलीगुड़ी पहुंच जाते हैं तो यहां उन्हें रिजर्व भारतीय टुकड़ियों, जिनकी यहां तेजी से तैनाती की जा सकती है, के भारी हमले से काबू में किया जा सकता है.'

A signboard is seen from the Indian side of the Indo-China border at Bumla

यह सभी महत्वपूर्ण बिंदु हैं, लेकिन डोकलाम में फिर से पुरानी स्थिति पैदा हो जाने का डर छोड़ देने की एक सबसे बड़ी वजह दोनों देशों में हुई नई पहल है, जिसके सभी पहलुओं पर एक हालिया फ़र्स्टपोस्ट लेख में विस्तार से चर्चा की गई.

चीन की विश्वासघात की आदत को देखते हुए इसके किसी भी कदम के साथ सावधानी भी जरूरी है. यहां तक कि बीते कुछ हफ्तों में तनाव के मुद्दों से इतर क्षेत्रों में आगे बढ़ने के लिए दोनों देशों ने काफी कोशिशें कीं (शायद भारत चीन से ज्यादा दूर तक गया). बातचीत का रास्ता फिर से खोलने के साथ ही- न्यूज18 के समिट में इसके बारे में रक्षा मंत्री ने बताया- दोनों देश उच्चस्तरीय बैठकों की कोशिश कर रहे हैं, जिसमें सुषमा स्वराज और सीतारमण के जल्द होने वाले दौरे के बाद संभावित रूप से नरेंद्र मोदी और शी की सीधी मुलाकात शामिल है.

संयोग से प्रधानमंत्री मोदी ने सोमवार को शी को दोबारा राष्ट्रपति चुने जाने पर वाइबो (टि्वटर की चीनी समकक्ष सोशल साइट) पर बधाई दी.

भारत अब अपनी विदेश नीति में परंपरागत आदर्शवादी सिद्धांतों को परे रख कर 'वास्तविकता' को केंद्र में रख कर आगे बढ़ रहा है. चीनी इसके पुराने खिलाड़ी रहे हैं. अब वास्तविकता के साथ जीना ज्यादा अच्छे नतीजे देता है. दूसरे डरों को फिलहाल के लिए आराम दे दीजिए.

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