'सॉरी मम्मी मैंने आपको बहुत तकलीफ दी'. यह उस लड़की के आखिरी शब्द थे जो 13 दिन तक सिंगापुर के एलिजाबेथ अस्पताल में मौत से लगातार जंग लड़ती रही, लेकिन अंत में वो इसे हार गई और दुनिया से चली गई. उस लड़की को हम निर्भया के नाम से जानते है. निर्भया डॉक्टर बनना चाहती थी. अपने माता-पिता का सपना पूरा कर घर की हर परेशानी को दूर करना चाहती थी, लेकिन उसे क्या पता था कि उसका सपना बस एक सपना बन कर ही रह जाएगा वो भी उन दरिंदों की वजह से जो उसे कुचलन के लिए घात लगाए बैठे थे.
निर्भया कांड को हुए 6 साल पूरे
आज यानी 16 दिसबंर को निर्भया कांड की छठी बरसी है. 2012 में आज ही के दिन वो कांड हुआ था जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया था. दिसंबर की वो काली रात आज तक कोई नहीं भूल पाया है जिसमें चलती बस में एक लड़की पर ऐसे जुल्म ढाए गए जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता. क्या किसी ने ये सोचा भी होगा कि जो लड़की डॉक्टर बनना चाहती है वो खुद किसी सड़क किनारे लोगों की मदद की मोहताज बनकर रह जाएगी. इस बात की कल्पान तो खुद निर्भया ने भी कभी नहीं की होगी.
16 दिसंबर, 2012 को निर्भया चीखती रही, चिल्लाती रही , लेकिन किसी ने उस पर तरस नहीं खाया. किसी ने उसकी आवाज नहीं सुनी. सड़क किनारे निर्भया का दोस्त मदद की भीख मांगता रहा लेकिन किसी ने उसकी मदद नहीं की. 16 दिसंबर की ये काली रात सिर्फ निर्भया और उसके परिवार के लिए काली नहीं है बल्कि हर उस इंसान के लिए काली है जिसने उस दिन निर्भया और उसेक दोस्त की मदद नहीं की.
क्या हुआ था उस 'काली' रात?
6 साल पहले आज ही के दिन निर्भया अपने दोस्त के साथ सिलेक्ट सिटी मॉल में सिनेमा देखने के लिए आई थी. लेकिन उसे का क्या पता था कुछ ही समय बाद उसके साथ कुछ ऐसा होने वाला था जिससे उसके और उसके परिवार की जिंदगी हमेशा-हमेशा के लिए बदलने वाली थी. उस दिन फिल्म देखने के बाद निर्भया अपने दोस्त के साथ मुनिरका बस स्टॉप पहुंची. वहां से अपने घर द्वारका जाने के लिए वो अपने दोस्त के साथ बस में बैठ गई. ये वही बस थी जिसमें उसके साथ 6 दरिंदों ने गैंगरेप किया.
बस में मौजूद 6 भेडियों ने एक-एक करके निर्भया का रेप किया. उसके दोस्त ने रोकने की कोशिश की तो उसे भी बुरी तरह पिटा गया. अपने घिनौने मनसूबों को अंजाम देने के बाद आखिरकार वो भेड़िए निर्भया और उसके दोस्त को सड़क किनारे पटक कर फरार हो गए. निर्भया का दोस्त लोगों से मदद की गुहार लगाता रहा लेकिन किसी ने उसकी आवाज नहीं सुनी, बस तमाशा देखकर चलते बने. थोड़ी देर बाद पुलिस की पीसीआर वैन आई और दोनों को सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया.
इसके दो दिन बाद निर्भया को होश आया. वो बोलने असमर्थ थी लेकिन उसकी आंखों में उस काली रात की पूरी खौफनाक वारदात साफ-साफ देखी जा सकती थी. निर्भया की बिगड़ती हालत को देखते सरकार जागी औऱ उसे सिंगापुर के एलिजाबेथ अस्पताल में भर्ती कराया गया. लेकिन 13 दिनों तक जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ने के बाद आखिरकार निर्भया ने दम तोड़ दिया. निर्भया चली तो चली गई मगर पीछे छोड़ गई अपने लाचार माता-पिता जिनके आंसू आज भी सूखने का नाम नहीं ले रहे हैं.
निर्भया के जाने के बाद एक-एक कर उसको दोषी भी पकड़े गए. इनमे से एक ने जो कि इस घटना का मुख्य आरोपी था राम सिंह, उसने जेल में फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली. इसके बाद 4 आरोपियों को लंबी सुनवाई के बाद फांसी की सजा दी गई. हालांकि इसकी अभी भी तामील नहीं हुई है. इनमें छठा आरोपी 18 साल से कम उम्र का था. उसे नाबालि होने का फायदा मिला और सुधार गृह चला गया.
क्या 6 साल बाद बदले हैं हालात?
इसे दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि निर्भया कांड के 6 साल बाद भी महिलाओं के साथ हो रहे अपराधों में कोई कमी नहीं आई है. हालांकि सरकार ने दावे तो बहुत किए लेकिन उसका असर कहीं नहीं है. न्यूज 18 की रिपोर्ट के मुताबिक आंकड़े बताते हैं कि न तो महिलाओं के खिलाफ अपराध कम हुए हैं और न निर्भया फंड का सही उपयोग हो रहा है और न तो 'निर्भीक गन' महिलाओं के काम आ रही है.
देश को हिला देने वाले 2012 के दिल्ली के गैंगरेप कांड के बाद केंद्र सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा बढ़ाने के मकसद से निर्भया को समर्पित एक कोष (फंड) की स्थापना की थी. लेकिन केंद्र सरकार निर्भया फंड का 40 फीसदी भी अभी तक खर्च नहीं कर पाई है. वहीं देश के हर जिले में 'वन स्टॉप सेंटर' का सपना भी अधर में लटका है.
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