छात्र किसी भी देश का भविष्य होते हैं और छात्र नेता आने वाले समय के नेता. कवि प्रदीप ने यूं ही नहीं लिखा था, 'इंसाफ की डगर पे, बच्चों दिखाओ चल के. ये देश है तुम्हारा, नेता तुम्ही हो कल के.' आज के हमारे उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू से ले कर अरुण जेटली और सुषमा स्वराज सब छात्र राजनीति की ही देन हैं. ऐसे में ये जरूरी हो जाता है कि देश का छात्र रूढ़िवाद से हटकर नए राजनीतिक प्रयोग करता रहे ताकि उसके आधार पर भावी राजनीति खड़ी सके.
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) वर्षों से देश की प्रगतिशील राजनीति का केंद्र रहा है. कहा जाता है कि जेएनयू का वर्तमान देश का भविष्य होता है. इस बार का जेएनयू छात्र-संघ चुनाव खुद में कई प्रथमों के लिए याद किया जाएगा. ये पहली बार है जब की लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल के छात्र संगठन ने यूनिवर्सिटी में अपना कोई उम्मीदवार उतारा है. पहली ही बार अगड़ी जातियों के एक संगठन ‘सवर्ण छात्र मोर्चा’ ने भी चुनावी मैदान में दो-दो हाथ करने की सोची है. परंतु जो सबसे रोचक पहल है वो सवर्ण मोर्चा की अध्यक्ष पद की उम्मीदवार निधि मिश्रा हैं. निधि मिश्रा जेएनयू छात्र-संघ के अध्यक्ष पद के लिए खड़ी होने वाली पहली दृष्टि बाधित उम्मीदवार हैं. वे देख नहीं सकती हैं.
उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ीपुर में जन्मीं निधि की प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली के ही ‘स्पेशल स्कूल’ से हुई थी जिसके बाद वे दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ीं और अब जेएनयू में शोध छात्र हैं. इसके अलावा वे भारत के लिए खेल-कूद में कई पदक जीत चुकी हैं. अभी हाल ही में दुबई में संपन्न हुए फ़ज़ा इंटरनेशनल गेम्स में उन्होंने दो स्वर्ण-पदक भी भारत को दिलाये हैं और अब वे एशियाई खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व करने जा रही हैं. अपनी श्रेणी में शॉटपुट का राष्ट्रीय रिकॉर्ड भी इन्हीं के नाम है. अब शिक्षा और खेल में खुद का लोहा मनवाने के बाद उन्होंने राजनीति में भी झंडे गाड़ने का मन बनाया है.
उनसे बात करते हुए जब हमने उनसे पूछा कि उनको ये चुनाव लड़ने का खयाल कैसे आया और क्यों इसके लिए उन्होंने सवर्ण छात्र मोर्चा को चुना. उन्होंने जवाब दिया, 'आप देखेंगे क्षेत्रीय दल सुबह शाम आपको पिछड़ी और अगड़ी जातियों में बांटते रहते हैं और राष्ट्रीय दल जैसे कि, भाजपा और कांग्रेस बस हिन्दू और मुस्लिम करते रहते हैं. इनमें कोई भी शोषित वर्ग और निचले तबके की बात करने को तैयार नहीं है. मैं पूछती हूं क्या अगड़ी जाति के व्यक्ति का शोषण नहीं हो सकता ?'
अरसे से जेएनयू छात्र-संघ पर काबिज लेफ्ट के बारे में वो कहती हैं, 'लेफ़्ट ने मार्क्स की विचारधारा के साथ क्या किया ? कायदे से तो उनको आर्थिक आधार पर सामाजिक शोषण की बात करनी चाहिए पर कर वो केवल जातीय आधार की बात रहे हैं. क्या वे कभी गांव गए और ये जानने की कोशिश की कि श्राद्ध कराने वाले पंडित को समाज में किस भेद भाव से दो चार होना पड़ता है. क्या हर सवर्ण जालिम है और हर दलित मज़लूम? क्या ये लेफ्ट ये बताएगा कि बिहार जो जातीय हिंसा में सवर्ण मारे गए हैं उन पर इनकी राय क्या है? सही बात तो ये है कि सत्ता के लालच में इस लेफ्ट ने मार्क्स का साथ बहुत पहले ही छोड़ दिया है.' एबीवीपी, जो कि आरएसएस का छात्र संगठन है, उसके बारे में निधि कहती हैं, 'परिषद पर केवल इल्जाम है कि वे अगड़ी जातियों के हित में सोचते हैं. असल में वे केवल सांप्रदायिक एवं दलित तुष्टिकरण की राजनीति कर रहे हैं. क्या आपने उनके किसी पर्चे में ये देखा कि उन्होंने सवर्णों का कोई मुद्दा उठाया भी हो ? उनकी केंद्र सरकार तो एस.सी/एस.टी क़ानून को उच्च-न्यायालय के विरुद्ध संशोधन ले आती है.'
कैंपस पर कार्य कर रही दलित/बहुजन समाज की पार्टी ‘बापसा’ पर तो वे आक्रामक रुख़ अपना लेती हैं और पूछती हैं, 'उनके एक बड़े कार्यकर्ता ने भरी सभा में बोला था कि ब्राह्मण स्त्रियों का बलात्कार होना चाहिए. अब ये कौन सी राजनीति है ? जातिवाद जहर है, फिर चाहे वो सवर्ण फैलायें या दलित. आप दलितों द्वारा सवर्णों के उत्पीड़न क्रांति नहीं कह सकते.'
खुद दृष्टिहीन होने के नाते वो कहती हैं, 'कैंपस पर दृष्टिहीन छात्र कुत्ते/बिल्ली पर पांव रख देते है जिस से वे उनको काट लेते हैं. उन्होंने दृष्टिहीन छात्रों के संगठन, विजन फोरम, की कन्वेनर के तौर पर ये मुद्दा कई बार उठाया परंतु क्योंकि पशुप्रेमी एक बड़ा वोटबैंक है तो कोई छात्र संगठन इस बारे में कोई कदम नहीं उठाता. प्रशासन सौंदर्यकरण पर करोड़ों ख़र्च करता है लेकिन टैकटाइल पाथ ( दृष्टिबाधितों की मदद के लिए बनाया गया रास्ता ) के लिए पैसा नहीं है. दिव्यांगों को केवल तीन हॉस्टल मे रखा जाता है जो कि उनको समान अवसर से वंचित करना है। और क्यों आज तक किसी पार्टी ने कभी कोई दृष्टिहीन उम्मीदवार नहीं उतारा ?'
'एक महिला होने के नाते मैं बस ये कहना चाहूंगी कि औरत चाहे किसी जाति, धर्म, या क्षेत्र की हो वो प्रताड़ित है और हर औरत के मुद्दे समान हैं. लेफ्ट, राइट, दलित, मुस्लिम, हिन्दू इन सब में बांटकर पार्टियां औरत को कमज़ोर बना रही हैं.'
निधि अनुसार वे देश को जातिवाद से ऊपर उठ कर देखना चाहती हैं. वो याद करती हैं, 'मेरे एक सहपाठी ने जो कि दलित एक्टिविस्ट भी है मुझे ये कहकर पानी देने से इंकार कर दिया था कि ‘तुम तो ब्राह्मण हो, हमारा पानी कहां पियोगी’ अब ये कौन सा भेदभाव है? मैं मिश्रा हूं तो ? क्या मैं एक औरत नहीं, दृष्टिहीन नहीं, ग्रामीण नहीं या एक किसान की लड़की नहीं? क्या इस देश मैं गरीब और वही है जो किसी जाति में पैदा हुआ हो?'
आखिर में उन्होंने उम्मीद जाहिर की कि वो हारें या जीतें परंतु नई जनचेतना वे अवश्य पैदा कर सकेंगी. उन्होंने फ़राज़ का ये शेर पढ़ते हुए हमसे विदा ली कि,
'मैं कट गिरूं कि सलामत रहूं यक़ीन है मुझे
ये हिसार-ए-सितम कोई तो गिरायेगा.'
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