नेश्नल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष और सांसद फारूक अब्दुल्ला ने शनिवार को कश्मीर मामले में एक बयान दिया है. इसके बाद विवाद शुरू हो गया है.
ग्रेटर कश्मीर के मुताबिक, फारूक ने कहा कि कश्मीर हर तरफ जमीन से घिरा (लैंडलॉक्ड) प्रदेश है, इसलिए इसकी आजादी कभी संभव नहीं है. उन्होंने कहा कि हमारे एक तरफ चीन है, एक ओर पाकिस्तान और एक ओर भारत. तीनों परमाणु शक्ति संपन्न देश हैं. जो आजादी मांग रहे हैं वो गलत है.
The part which is with Pakistan belongs to Pakistan & this is India's part. If they want peace govt will have to talk to Pakistan & conclude that an autonomy be given to us as well as them: Farooq Abdullah pic.twitter.com/5bL0loxtBs
— ANI (@ANI) November 11, 2017
इसके बाद अब्दुल्ला ने कहा कि भारत ने कश्मीरियों को धोखा दिया प्यार नहीं दिखाया. जबकि कश्मीरियों ने उनके साथ जुड़ने का भरोसा दिखाया था. अब्दुल्ला ने ये भी कहा कि आंतरिक स्वायत्ता कश्मीर का हक है.
I can't comment much on that. He has held talks but talks alone is not the solution. This issue is between India & Pakistan. Indian govt must also hold talks with Pakistan govt because a part of Kashmir is also with them: Farooq Abdullah on J&K Interlocutor Dineshwar Sharma pic.twitter.com/PrAWB79j6j
— ANI (@ANI) November 11, 2017
अब्दुल्ला ने कहा कि आज सरकार विलयपत्र को भूल कर पाक अधिकृत कश्मीर पर भी अपना हक जताती है.
अगर पाक अधिकृत कश्मीर पर भारत का हक है तो विलय पत्र की शर्तों पर भी बात होनी चाहिए. इसके आगे उन्होंने कहा कि 'मैं सीधे-सीधे बताता हूं. पीओके पाकिस्तान के पास है और इस तरफ का कश्मीर भारत के पास, ये स्थिति नहीं बदलने वाली है.
फारूक अबदुल्ला का बयान कश्मीर में पिछले कुछ समय में बदले हालात की एक बानगी माना जा सकता है. फारूक के पिता शेख अब्दुल्ला कश्मीर के भारत में विलय के सबसे बड़े हिमायतियों में से एक रहे हैं. खुद फारूक भी अटल सरकार का हिस्सा रहे हैं.
A Pak Minister very rightly said that you forget that the part which is yours was acquired by an Instrument of Accession. You forget Instrument of accession & say that the part is yours. If you talk about this being your part then remember the Instrument as well: Farooq Abdullah pic.twitter.com/tuBpr4cd5D
— ANI (@ANI) November 11, 2017
2016 में बुरहान वानी के इनकाउंटर के बाद कश्मीर में दुबारा शुरू हुए उपद्रव और पत्थरबाजी से हालात खराब हुए थे. कश्मीर के हालात को करीब से जानने वाले लोगों का कहना है कि बिना सोचे समझे किए गए पैलेट गन के इस्तेमाल और महबूबा मुफ्ती सरकार के रवैये ने कश्मीरियों की दिल्ली से दूरी बढ़ाने का काम किया है. इसका फायदा पाकिस्तान उठा रहा है. इसके साथ ही वहां राजनीतिक विद्रोह में शरीयत और धार्मिक जिहाद का रंग मिलाकर स्थिति को और खराब किया जा रहा है.
ऐसे में फारूक अब्दुल्ला जैसे आदमी का अलगाववादियों जैसी भाषा बोलना केंद्र सरकार के लिए चिंता का विषय होना चाहिए. कश्मीर की तरफ से बात करने वाले ज्यादातर लोग वाजपेयी सरकार के समय के सुधारों का जिक्र खूब करते हैं. वर्तमान सरकार अपने कश्मीर और कश्मीरियों को लेकर अपने रवैये को कैसे और कितना बदलेगी, ये उसे खुद ही तय करना होगा.
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