जब अपनी दो दिनों की चीन यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वुहान शहर में चहलकदमी करते हुए म्यूजियम तक पहुंचे, तो उनके स्वागत के लिए मुस्कुराते हुए चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग खड़े हुए थे. शी ने पीएम मोदी को एक अहम जानकारी दी. अब तक चीन के किसी भी राष्ट्रपति ने राजधानी बीजिंग के बाहर किसी राष्ट्राध्यक्ष का स्वागत नहीं किया था. सूत्रों के मुताबिक शी ने मोदी से कहा कि, 'मैंने आपके लिए ऐसा दो बार किया'.
अब ये बताने के लिए बॉडी लैंग्वेज का एक्सपर्ट होने की जरूरत नहीं है कि दोनों ही नेता एक-दूसरे के साथ बातचीत के दौरान बेहद सहज थे. दोनों नेताओं ने भारत और चीन के लिए अहम सभी मुद्दों पर चर्चा की. मिसाल के तौर पर मोदी और शी की बातचीत में चीन के वन रोड वन बेल्ट प्रोजेक्ट और इसमें भारत की भागीदारी पर भी चर्चा हुई. साथ ही दनं नेताओं ने न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप में भारत की सदस्यता पर भी बात की. और, दोनों नेताओं ने दोनों महान देशों के बीच सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रिश्ते को और भी मजबूत करने के तरीकों पर भी चर्चा की.
सूत्रों के मुताबिक जिनपिंग और मोदी के बीच जितने खुले और साफगोई वाले माहौल में बात हुई, वो कूटनीति में बिल्कुल ऐतिहासिक और नई थी. बातचीत के मसौदे को लेकर कूटनीतिक तबके में लगने वाली अटकलों से इतर, इसमें कोई दो राय नहीं कि मोदी अपने साथ निजी डिप्लोमेसी का ऐसा अचूक हथियार लेकर गए थे, जिसने भारत और चीन के रिश्तों मे हिचकिचाहट के इतिहास को बदल दिया.
साफ है कि मोदी और शी जिनपिंग के बीच निजी ताल्लुक मे ये सहजता रातों-रात नहीं हासिल हुई. इसके पीछे एक खास अतीत है. मोदी का चीन से परिचय कोई नया नहीं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के तौर पर वो एक प्रतिनिधिमंडल के साथ कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर गए थे. उनके साथ उस यात्रा पर जाने वाले मानते हैं कि पूरे दल में मोदी ही सबसे ज्यादा बारीकी से हर काम कर रहे थे. हर परंपरा और पूजा-पाठ की प्रक्रिया का पालन कर रहे थे. वो बड़ी बारीकी से भारत के चीन के साथ संबंध के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पहलुओं को समझ रहे थे. उस यात्रा ने मोदी पर चीन की अमिट छाप छोड़ी थी.
मोदी के जहन में चीन की वो छवि तब और मजबूत हुई, जब गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर वो दो बार चीन के दौरे पर गए. उन्होंने चीन के उद्योगों को राज्य मे निवेश करने का न्यौता दिया. वो चीन के विकास की तेज रफ्तार से काफी प्रभावित हुए थे. उनके चीन की सरकार के अहम अधिकारियों से बड़ी उपयोगी बातचीत हुई थी. हालांकि मुख्यमंत्री के तौर पर मोदी को चीन के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री से मिलने का मौका नहीं मिला था, लेकिन चीन के उद्योगों को गुजरात में निवेश का न्योता देने की वजह से मोदी का खास स्वागत किया गया था.
लेकिन, 2014 में मोदी के देश का प्रधानमंत्री बनने के बाद से दो ऐसी घटनाएं हुईं, जिन्होंने उनके और शी जिनपिंग के बीच गर्मजोशी बढ़ा दी. आम चुनाव में मोदी की जीत के फौरन बाद चीन के विदेश मंत्री वांग यी भारत के दौरे पर आए थे. इससे पहले राष्ट्रपति शी ने मोदी को फोन करके जीत की मुबारकबाद दी थी. सूत्र बताते हैं कि शी जिनपिंग और मोदी के बीच फोन पर वो पहली बातचीत बेहद दिलचस्प रही थी. शी ने मोदी के गृहनगर वडनगर के बारे में बात की और कहा कि उस इलाके का शी के अपने कस्बे शियान से ताल्लुक है. जब मोदी ने शी जिनपिंग को भारत आने का न्यौता दिया, तो कहा जाता है कि शी ने मोदी के गृह नगर जाने की इच्छा जताई थी. इसी बातचीत की बिनाह पर शी जिनपिंग के पहले भारत दौरे की योजना बनी थी. चीन के साथ रिश्तों को लेकर हमेशा से एक किस्म की हिचकिचाहट रही है. इसके बावजूद मोदी ने शी जिनपिंग की शानदार मेहमानवाजी की और शी से अपने अच्छे ताल्लुक का खुलकर प्रदर्शन किया.
लेकिन, इस मिलनसारी पर चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के एलओसी पर स्थित चुमार गांव में बार-बार घुसपैठ का साया मंडराता रहा. शी जिनपिंग जब 2014 में अहमदाबाद में थे, तब मोदी ने सीधे शी जिनपिंग से ये बातचीत में ये मुद्दा उठाया था. मोदी ने ये जानने की कोशिश की थी कि क्या चीन की सेना और राजनीतिक नेतृत्व में तालमेल नहीं है क्या?' मोदी ने शी से कहा कि चीन और भारत के नेताओं के हाई प्रोफाइल दौरों के दौरान चीन की सेना घुसपैठ की ऐसी हरकतें अक्सर करती है. शी जिनपिंग ने मोदी से वादा किया कि वो इस मामले को खुद देखेंगे. चीन लौटने पर शी जिनपिंग ने इस मसले को मोदी की तसल्ली के लिए बड़ी सख्ती से निपटाया. इस तरह से मोदी और जिनपिंग ने एक-दूसरे में भरोसे को मजबूती दी.
हालांकि चीन के साथ रिश्तों में तब बहुत तनाव आ गया, जब चीन ने पाकिस्तान के जैश-ए-मुहम्मद को संयुक्त राष्ट्र संघ में आतंकी संगठन घोषित करने में रोड़ा अटकाया. चीन ने न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप में भारत की एंट्री को भी वीटो कर दिया. इसके बाद 2017 में डोकलाम में मोदी ने चीन की सेना को सीधी चुनौती देने का फैसला किया. इस कदम से भारत ने ये संदेश दिया कि भारत को धमकाया-डराया और दबाया नहीं जा सकता. डोकलाम विवाद के दौरान भारत अपने स्टैंड पर अडिग रहा, लेकिन उसने बयानबाजी से परहेज किया. जबकि चीन का विदेश मंत्रालय और सरकारी मीडिया लगातार उकसावे वाली बयानबाजी करते रहे थे.
डोकलाम विवाद खत्म होने के एक दिन बाद ही भारत ने ऐलान किया कि वो सितंबर में चीन के श्यामेन में होने वाली ब्रिक्स समिट में मोदी शामिल होंगे. वहां पर शी जिनपिंग से बातचीत के बाद मोदी जब भारत लौटे, तो ये माहौल बना कि अब भारत और चीन के रिश्ते नए संतुलन के दौर में पहुंचने वाले हैं. जब चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने शी जिनपिंग को फिर से राष्ट्रपति चुनकर दो कार्यकाल की पाबंदी हटाई थी, तो शी जिनपिंग माओत्से तुंग के बाद चीन के सबसे ताकतवर नेता बन गए. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने शी के पूर्ववर्ती राष्ट्रपति हू जिनताओ के करीबी रहे दो जनरलों को भी उनके पद से हटा दिया. इसके बाद चीन की सेना पर शी जिनपिंग का पूरा नियंत्रण हो गया है.
ये सिर्फ इत्तेफाक नहीं था कि सराकर ने चीन को लेकर तल्ख बयानबाजी पर रोक लगाई और तिब्बत के नेता दलाई लामा को लेकर चीन की संवेदनाओं का भी खयाल रखा. साफ है कि सरकार ने दलाई लामा के नाम पर चीन को भड़काने से होने वाले नुकसान को देखते हुए व्यवहारिक कदम उठाया. ठीक इसी दौरान बैक चैनल डिप्लोमेसी के जरिए दोनों नेताओं के बीच बेहद कामयाब अनौपचारिक शिखर वार्ता की भूमिका तैयार हुई. इसकी वजह से दोनों देशों के रिश्तों में नये दौर की शुरुआत हुई. पीएम मोदी के दौरे से ठीक पहले विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और उनकी टीम ने इस दौरे की जमीन तैयार करने में अहम रोल निभाया.
मोदी की निजी संबंध पर आधारित कूटनीति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले ऐसे कूटनीतिक संबंधों के हिसाब से बिल्कुल सही है. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान विंस्टन चर्चिल भी इस तरह निजी संबंध पर आधारित कूटनीति के बड़े समर्थक थे. वो अपनी पर्सनल डिप्लोमेसी और अजेय आत्मविश्वास की बुनियाद पर कूटनीति संबंध बनाते थे. मशहूर विद्वानों एलन पी डॉबसन और स्टीव मार्श ने अपने रिसर्च पेपर-चर्चिल एंड एंग्लो अमेरिकन स्पेशल रिलेशनशिप में इसको बखूबी बयां किया है. चर्चिल की निजी डिप्लोमेसी का प्रमुख मकसद अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डिलानो रूजवेल्ट को अपने साथ लाना था. चर्चिल ने कहा था कि, 'किसी भी प्रेयसी ने अपने आशिक के बर्ताव को इतनी बारीकी से नहीं समझा होगा, जितना मैंने प्रेसीडेंट रूजवेल्ट के बर्ताव को समझा है'. लेकिन अब मोदी का काम और चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है, क्योंकि अब दुनिया बहुध्रुवीय होती जा रही है, और, दुनिया के हर कोने में अपनी तरह के अलग ही ताकतवर नेता उभर रहे हैं.
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