अनौपचारिक शिखर सम्मेलन द्विपक्षीय संबंधों के मानक और आदर्श बनते जा रहे हैं. सोमवार को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात भी काफी हद तक आदर्श ही रही. दरअसल राष्ट्रपति पुतिन के बुलावे पर प्रधानमंत्री मोदी अनौपचारिक शिखर सम्मेलन में शिरकत करने रूस पहुंचे थे. दोनों नेताओं की मुलाकात काला सागर के तटीय शहर सोची में हुई.
हाल ही में वुहान में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से हुई मुलाकात के बाद प्रधानमंत्री मोदी का यह दूसरा अनौपचारिक शिखर सम्मेलन था. जबकि रूसी राष्ट्रपति पुतिन इससे पहले जर्मनी, फ्रांस और जापान के राष्ट्राध्यक्षों के साथ ऐसे शिखर सम्मेलन कर चुके हैं. दिलचस्प बात यह है कि मोदी इसी साल जून महीने में होने वाले एससीओ शिखर सम्मेलन में पुतिन से मिलेंगे, इसके बाद दक्षिण अफ्रीका में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन और अर्जेंटीना में होने वाले जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान भी दोनों नेताओं की मुलाकात तय है.
यही नहीं पुतिन इसी साल अक्टूबर महीने में होने वाले सालाना भारत-रूस शिखर सम्मेलन में शिरकत करने भारत भी आएंगे.
दुनिया के कई हिस्सों में इस समय अशांति का दौर चल रहा है. अंतरराष्ट्रीय विवादों के चलते कई क्षेत्रों में तनाव फैला हुआ है. इस अंतरराष्ट्रीय अशांति और तनाव की मुख्य वजहों में कोरियाई प्रायद्वीप में मची हलचल, दक्षिण चीन सागर में चीन का सैन्यीकरण और अमेरिका-चीन के बीच छिड़ी आर्थिक जंग के अलावा ईरान के साथ परमाणु समझौते से अमेरिका का पीछे हटना हैं. लिहाजा ऐसे में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच सोची में हुई ताजा मुलाकात और निकट भविष्य में होनी वाली मुलाकातें काफी मायने रखती हैं.
मोदी के सोची दौरे की पृष्ठभूमि में तीन अहम बातें थी: पहली, अमेरिका ने हाल ही में भारत को चेताया था कि रूस से बड़े पैमाने पर सामरिक साजो-सामान और व्यापारिक वस्तुओं की खरीद के चलते अमेरिकी की तरफ से भारत पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है. भारत को प्रतिबंध की यह चेतावनी अगस्त 2017 में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा हस्ताक्षरित और जनवरी 2018 में दूसरी बार लागू किए गए कानून 'काउंटरिंग अमेरिकाज़ एडवरसरीज थ्रू सेंक्शन एक्ट' (CAATSA) के तहत दी गई थी.
दूसरी, चीन के साथ छेड़ी गई ट्रेड वार (व्यापारिक लड़ाई) में अमेरिका का रुख नर्म नजर आ रहा है. अमेरिका ने अपने देश में आयात होने वाली चीनी वस्तुओं पर प्रस्तावित नई टैक्स दरों को फिलहाल लागू करने से टाल दिया. और; तीसरा, यूरोपीय संघों के असंतोष के बावजूद अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ईरान पर साल 2015 से पहले वाले प्रतिबंधों को फिर से लागू करने के लिए तैयार बैठे हैं.
सभी जानते हैं कि अमेरिका-चीन के बीच ट्रेड वार से वैश्विक अर्थव्यवस्था में गिरावट आएगी, जिससे दोनों देश प्रभावित होंगे. वहीं अमेरिकी ब्लॉगर्स के मुताबिक, अमेरिका-चीन के बीच ट्रेड वार से ट्रंप के अपने व्यावसायिक उद्यमों पर भी खासा बुरा असर पड़ेगा. वहीं अगर ईरान पर साल 2015 से पहले वाले प्रतिबंध फिर से लगाए जाते हैं तो उससे भारत की चाहबहार बंदरगाह विकास परियोजना प्रभावित होगी. उधर CAATSA के तहत अमेरिका की भारत को चेतावनी एस-400 ट्रायंफ सिस्टम्स की खरीद को लेकर है.
दरअसल भारत ने रूस के साथ पांच एस-400 ट्रायंफ सिस्टम्स को खरीदने के लिए 5.5 बिलियन डॉलर्स (39000 करोड़ रुपये) का सौदा किया है. जाहिर है रूस के साथ भारत का यह सामरिक सौदा अमेरिका को रास नहीं आ रहा है. रिपोर्ट्स हैं कि इस मामले में भारत ने अमेरिका से संपर्क भी किया था और उससे छूट मांगी थी. लेकिन भारत को अबतक अमेरिका की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है. हालांकि अमेरिकी रक्षा सचिव जिम मैटिस इस मामले में अमेरिकी कांग्रेस से भारत को तत्काल छूट देने की अपील जरूर कर चुके हैं.
जिम मैटिस ने अमेरिकी कांग्रेस से कहा कि, भारत की चिंताओं का समाधान न करने से भारत-अमेरिका के संबंधो पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है.
हालांकि, अमेरिका की मंजूरी और छूट न मिलने पर भारत ने बहुत सही तरीके से स्पष्ट कर दिया है कि उसकी रक्षा खरीद को अमेरिका द्वारा निर्धारित नहीं किया जा सकता है. दिलचस्प बात यह है कि कारा एबरक्रॉम्बी ने अपने कार्नेगीज साउथ एशिया प्रोगाम में लिखा है, 'अगर भारत को एक मजबूत, अच्छी तरह से सुसज्जित सेना और अमेरिकी सद्भावना के बीच चयन करने के लिए मजबूर होना पड़ा, तो भारत शायद पहले विकल्प का चयन करेगा'.
अपनी हवाई सीमाओं की रक्षा करने के लिए भारत को एस-400 की सख्त आवश्यकता है. भारत-रूस के बीच एस-400 के सौदे पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद सिस्टम की डिलीवरी हस्ताक्षर की तारीख से 54 महीने के भीतर शुरू होनी है. वहीं चीन पहले ही रूस से एस-400 सिस्टम पाने की प्रक्रिया में है.
रूस का पाकिस्तान की ओर झुकाव और तालिबान को समर्थन भारत के लिए चिंताजनक मुद्दे हैं. हालांकि रूस द्वारा पाकिस्तान को रक्षा उपकरणों की बिक्री पर अमेरिका निगाहें लगाए बैठा है. उसे रूस का यह कदम रास नहीं आ रहा है. ऐसे में रूस के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंधों की पृष्ठभूमि तैयार हो रही है. लेकिन रूस का पाकिस्तान के साथ रक्षा सहयोग समझौता (डिफेंस कोऑपरेशन एग्रीमेंट) और चीन से निकटता के बावजूद रूसी विदेश मंत्री को भारत को सीपीईसी में शामिल होने के लिए बुलाने को मजबूर होना पड़ा.
रूस ने इस्लामाबाद में दिसंबर 2017 में छह देशों के सम्मेलन के संयुक्त घोषणा पर भी हस्ताक्षर किए थे. उस संयुक्त घोषणा में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के संकल्प के तहत कश्मीर मुद्दे के समाधान की मांग की गई थी. ऐसे में कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय बनाने के लिए पाकिस्तानी प्रयासों को स्वीकार किया जा सकता है. रूस को शायद यह लग रहा है कि, भारत अपनी सभी रक्षा खरीदों के लिए अब अमेरिका को ही तरजीह दे रहा है.
ऐसे में इसे ऐतिहासिक रूप से भारत और रूस के मजबूत संबंधों में आई दरार ही माना जाएगा. रूस हमेशा से भारत का एक भरोसेमंद सहयोगी रहा है. बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के दौरान रूस ने भारत का पूरा साथ दिया था. उस समय रूस ने अमेरिका और ब्रिटिश नौसेना के खतरे के बावजूद भारत के साथ खड़े रहने में जरा भी हिचक नहीं दिखाई थी. यह एक ऐतिहासिक वास्तविकता है जिसे हम भुला नहीं सकते हैं.
अमेरिका-रूस और ब्रिटेन-रूस के बीच उभरती वैश्विक चुनौतियों, पश्चिम एशिया-अफगानिस्तान की तनावपूर्ण स्थिति और चीन-पाकिस्तान के गठजोड़ के चलते भारत-रूस के संबंधों को बढ़ावा देकर पहले जैसे मजबूत करने की आवश्यकता है. सोची शिखर सम्मेलन इसी उद्देश्य के तहत हुआ. सोची शिखर सम्मेलन के लिए से रवाना होने की पूर्व संध्या पर प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट करके कहा, 'मुझे विश्वास है कि राष्ट्रपति पुतिन के साथ वार्ता भारत और रूस के बीच विशेष और विशेषाधिकारपूर्ण सामरिक साझेदारी को और मजबूत करेगी'.
अनौपचारिक शिखर सम्मेलन का कोई एजेंडा नहीं होता है. लेकिन जाहिर है कि दोनों नेताओं ने इस दौरान रणनीतिक स्तर पर क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर चर्चा की होगी, जिनमें ईरान परमाणु समझौते से अमेरिका पीछे हटना; अफगानिस्तान; आतंकवाद (पाकिस्तान?); पश्चिम एशिया; दक्षिण और उत्तर कोरिया का मुद्दा; INSTC; प्रशांत महासागर को लेकर चीन और भारत के बीच विवाद; एससीओ और ब्रिक्स शिखर सम्मेलन; रक्षा सहयोग; अर्थव्यवस्था और व्यापार जैसे मुद्दे शामिल होंगे. मोदी और पुतिन के अनौपचारिक शिखर सम्मेलन का लक्ष्य कई मुद्दों पर एकमत होकर उनके निस्तारण के लिए प्रतिबद्ध होना है. हालांकि इस मामले में नेताओं के लिए संयुक्त घोषणा या संयुक्त प्रेस ब्रीफिंग कोई मुद्दा नहीं है.
बैठक के दौरान राष्ट्रपति पुतिन ने कहा कि, रूस और भारत बहुपक्षीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों में कई मोर्चों पर एक-दूसरे का सहयोग कर रहे हैं. पुतिन ने दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग का भी उल्लेख किया और कहा, 'रूस और भारत के संबंधों को समझाने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि हम सभी जानते हैं कि उनकी जड़ें बहुत गहरी हैं. हालांकि, हाल के दिनों में हम रूस और भारत के संबंधों को और भी बल और अतिरिक्त गति देने में सक्षम हुए हैं'.
वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि, रूस ने भारत को एससीओ की स्थायी सदस्यता दिलाने में प्रमुख भूमिका निभाई और बहुत मदद की. मोदी ने यह भी कहा कि, भारत और रूस के बीच रणनीतिक साझेदारी अब एक ‘विशिष्ट विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी’ में बदल गई है जो एक ‘बहुत बड़ी उपलब्धि’है. मोदी के मुताबिक, 'हम INSTC और ब्रिक्स पर एक साथ काम कर रहे हैं'.
बैठक के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि उन्होंने राष्ट्रपति पुतिन के साथ 'बेहद फलदायी' चर्चाएं कीं. इसके अलावा उन्होंने सोची में अपने पहले अनौपचारिक शिखर सम्मेलन के दौरान भारत-रूस संबंधों के साथ-साथ अन्य वैश्विक विषयों की पूरी श्रृंखला की समीक्षा की.
ईरान के साथ परमाणु समझौते से अमेरिका के पीछे हटने से वैश्विक चिंताएं बढ़ गई हैं. पेरिस एकोर्ड से अमेरिका का पीछे हटना कई चीजों की ओर इशारा कर रहा है. ऐसा लगता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने ओबामा सरकार के हर कार्य और फैसले को पलटने का मन बना रखा है. लेकिन ईरान के साथ परमाणु समझौते से पीछे हटने से अमेरिका की प्रतिष्ठा को गंभीर नुकसान पहुंचा है. ट्रंप के इस फैसले से उनके यूरोपीय सहयोगी खासे असंतुष्ट हैं.
इधर जबकि पाकिस्तान और आतंक के निर्यात का उसका खेल जारी रहेगा, भारत, रूस और चीन को अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) की सफलता के लिए मिलकर काम करने की जरूरत है. यह परिवहन गलियारा चाहबहार बंदरगाह के विकास को अंतरराष्ट्रीय केंद्र के रूप में भी दर्शाता है. ऐसे में मोदी को रूस के साथ भारत के संबंधों को पुनः निर्मित करने की जरूरत है. लेकिन इस बात का खास ख्याल रखना होगा कि भारत के संबंध रूस के साथ-साथ अमेरिका से भी संतुलित रहें. अमेरिका और कई पश्चिमी देशों की रूस के प्रति नाराजगी के चलते पुतिन को भी अपनी रणनीति बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा है. पुतिन अब खुद रूस और भारत के संबंधों को पुनः निर्मित कर रहे हैं. शायद सोची शिखर सम्मेलन में भारत की यही उपलब्धि सबसे अहम रही है.
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