प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच 27 और 28 अप्रैल को होने जा रही अनौपचारिक भेंट की खबरें सरगर्म हैं. चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने इस भेंट को दोनों देशों के ‘रिश्तों में आने वाला नया मोड़’ करार दिया है. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने बीजिंग में वांग यी से बातचीत की है और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण बीजिंग दौरे पर जा रही हैं- इन दोनों नेताओं के चीन दौरे से अप्रैल महीने के आखिर में होने जा रहे प्रधानमंत्री के चीन दौरे की जमीन तैयार होगी. जून महीने में शंघाई कोऑपरेशन आर्गनाइजेशन का सम्मेलन होगा. प्रधानमंत्री इस सम्मेलन में शिरकत करने के लिए एक बार फिर चीन जाएंगे.
चीन ने किए हैं ये वादे
चीन ने अपने पहले के आक्रामक रुख में बदलाव के संकेत दिए हैं. नई दिल्ली में चीन के राजदूत लूओ झाओहुई ने डोका ला मसले पर हुई तनातनी के वक्त भारत को धमकी दी थी लेकिन उन्होंने अब प्रधानमंत्री मोदी की चीनी राष्ट्रपति से होने जा रही भेंट के बारे में कहा है कि इससे द्विपक्षीय रिश्ते मजबूत होंगे और उनमें गर्माहट आयेगी. चीन ने कहा है कि वह सतलज और ब्रह्मपुत्र नदियों के आंकड़े भारत के साथ साझा करेगा और नाथू ला के रास्ते कैलाश-मानसरोवर की तीर्थयात्रा फिर से शुरु होगी. लेकिन चीन के पुराने रंग-ढंग को देखते हुए जान पड़ता है कि नदियों के आंकड़ों को साझा करने के क्रम में इस बात का जिक्र नहीं आयेगा कि ब्रह्मपुत्र का पानी शिनजियांग की ओर मोड़ा गया है. एक अहम बात यह भी है कि इंडो-तिब्बतन बार्डर पुलिस (आईटीबीपी) ने चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की घुसपैठ की बढ़ती कोशिशों के बारे में चेताया है. पीएलए ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर घुसपैठ की 17 दिनों में 21 कोशिशें की हैं.
मोदी और शी जिनपिंग की प्रस्तावित भेंट के बारे में किसी एजेंडे का एलान नहीं हुआ है. कयास लगाये जा रहे हैं कि दोनों नेताओं के बीच बातचीत के क्रम में डोका ला, वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति बहाली, चीन की वन बेल्ट वन रोड (बीआरआई) पहल, एनएसजी में भारत की सदस्यता, वाणिज्य और व्यापार तथा भारत में चीन के निवेश जैसे कई मसले उठेंगे. सीमारेखा के स्थायी निर्धारण के मामले में सहमति बनने के आसार कम हैं लेकिन बहुत संभव है कि चीन 2013 के बार्डर डिफेंस कोऑपरेशन एग्रीमेंट(बीडीसीए) को लेकर कोई नई रूपरेखा पेश करे.
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बार्डर डिफेंस कोऑपरेशन एग्रीमेंट (बीडीसीए) के लिए डेमोलिशन ऑपरेशन्स (निर्माण कार्य के क्रम में होनी वाली तोड़-फोड़) से जुड़ी सूचनाओं का लेन-देन जरूरी है. इसके अंतर्गत सड़क-निर्माण से जुड़ी सूचनाओं का लेन-देन भी शामिल है. लेकिन भारत ऐसा करता है तो चीन आपत्ति जताता है कि इलाका चीन के अधिकार-क्षेत्र में है. इसके उलट चीन की ओर से हवाई सीमा का उल्लंघन लगातार जारी रहता है और इसके बारे में चीन भारत को कोई खबर नहीं देता जबकि बीडीसीए के अंतर्गत ऐसा करना जरुरी है. चीन ने आसियान के देशों के साथ आपसी बरताव की एक संहिता तैयार की है और ऐसा ही कोड ऑफ कंडक्ट वह भारत के साथ भी अमल में लाना चाहता है लेकिन बीडीसीए से जुड़े अनुभवों को देखते हुए भारत को ऐसे कोड ऑफ कंडक्ट के बारे में बहुत फूंक-फूंक कर कदम रखने की जरुरत है.
सीपीईसी में भारत को चाहता है लेकिन एनएसजी पर मुकर जाता है चीन
चीन चाहता है कि भारत, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) में शामिल हो जाये लेकिन दूसरी तरफ भारत जब एनएसजी का सदस्य बनना चाहता है तो चीन इसमें मदद नहीं करता. पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ एक तरह से छद्म-युद्ध चला रखा है और चीन को पाकिस्तान के इस रुख से भी ऐतराज नहीं है. हालांकि इस बात के आसार नहीं हैं तो भी अगर मान लें कि सीपीईसी में भागीदारी को लेकर भारत अपनी रजामंदी जताता है और इसके एवज में चीन एनएसजी में भारत की सदस्यता की दावेदारी को अपना समर्थन देता है- तो भी ऐसे लेन-देन पर रजामंदी कायम होना नामुमकिन है. इसकी वजह ये है कि सीपीईसी परियोजना पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर में भारत की संप्रभुता का खुलेआम उल्लंघन करती है.
भारत में इस तरह के ख्यालात जाहिर किए जा रहे हैं कि चीन में शी जिनपिंग को लंबे समय तक राष्ट्रपति बने रहना है, उन्होंने एक तरह से ताउम्र राष्ट्रपति बने रहने के इंतजाम कर लिए हैं सो चीनी राष्ट्रपति के विकास के एजेंडे को देखते हुए भारत को चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना (बीआरआई) का हिस्सा बन जाना चाहिए जिसमें सीपीईसी में भागीदार होना भी शामिल है. तर्क दिया जाता है कि भारत के पड़ोसी मुल्क तो चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना का हिस्सा बन ही रहे हैं सो अगर भारत बीआरआई का हिस्सेदार बनता है तो चीन मजबूरन इस मुल्क की अनदेखी नहीं कर पायेगा. लेकिन इस किस्म का सीधा-साफ वादा करना रणनीतिक रुप से कच्चापन कहलाएगा क्योंकि चीन अपनी तरफ से भारत की क्षेत्रीय तथा भूरणनीतिक चिन्ताओं पर कोई वादा करने से इनकार करता रहा है. एक बात यह भी है कि चीन अपनी रणनीतिक तैयारियों के बरक्स वाणिज्य-व्यापार से जुड़ी चिन्ताओं को खास तवज्जो नहीं देता, ताइवान और जापान से उसके रिश्ते इसी की मिसाल हैं.
नेपाल की ओर देख रहा है चीन
बहुत संभव है कि मोदी के साथ बातचीत में शी जिनपिंग चीन-नेपाल-भारत के बीच प्रस्तावित आर्थिक गलियारे (सीएनआइईसी) का मसला उठायें. नेपाल और चीन के बीच हाल ही में चीन के बीआरआई पर एमओयू (मेमोरंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग) पर दस्तखत हुए. एमओयू पर दस्तखत होने के बाद ही चीन ने सीएनआइईसी का प्रस्ताव भारत के सामने रखा. सीएनआइईसी में परिवहन/यातायात संबंधी सहयोग करना शामिल है. चीन की सरकारी मीडिया ने कहा है कि भारत को दक्षिण एशिया में समृद्धि लाने के लिए सीएनआइईसी में सहयोग करना चाहिए.
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चीनी की सरकारी मीडिया ने वांग यी के हवाले से लिखा है कि, 'भारत, चीन और नेपाल स्वाभाविक रुप से दोस्त और सहयोगी हैं.' उम्मीद है नेपाल, भारत और चीन के बीच एक पुल का काम करेगा और इन दोनों देशों से नेपाल को फायदा पहुंचेगा. नेपाल की केपी ओली सरकार इस बात को लेकर बड़े उत्साह में है कि अब देश प्रस्तावित मल्डी मोडल ट्राइलेटरल परियोजना (सीएनआइईसी) का मुख्य केंद्र बनने जा रहा है और कुछ इसी तर्ज पर अफगानिस्तान भी चाहता था कि वह यूरेशिया तथा दक्षिण एशिया के बीच के हब के रुप में विकसित हो लेकिन चीन की सरपरस्ती में पाकिस्तान ने इसकी मंजूरी ना दी. बहरहाल, सीएनआइईसी की जांच-परख कहीं ज्यादा गहराई से करने की जरुरत है.
भारत के पूर्वोत्तर इलाकों पर है चीन की नजर
काठमांडु और कोलकाता के बीच एक रेललाइन बनाने का प्रस्ताव है. इस रेल लाइन का विस्तार बांग्लादेश के ढाका तक होगा. ओली के हाल के भारत दौरे पर इसके बारे में चर्चा हुई और रेललाइन की यह परियोजना चीन-दक्षिण एशिया रेल-कनेक्टिविटी की योजना के तालमेल में है क्योंकि बीजिंग-ल्हासा-काठमांडू होकर रेललाइन बननी है. इसके अतिरिक्त बांग्लादेश-चीन-नेपाल इनशिएटिव से भी चीन जुड़ सकता है, खासकर थिम्फू और डोका ला के आपस में सड़क और रेल-मार्ग से जुड़ जाने के बाद. सो, इलाके में परिवहन-व्यवस्था एक तरह से तैयार हो रही है या फिर आने वाले कुछ वक्तों में तैयार हो जायेगी.
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साफ जाहिर है कि चीन सीएनआइईसी को सीपीइसी की तर्ज पर विकसित करना चाहता है और उसका इरादा चीनी कंपनियों, कामगारों, निवेश तथा स्पेशल इकॉनॉमिक जोन से पूरे इलाके को उसी तरह पाट देने का है जैसा कि फिलहाल उसने पाकिस्तान के साथ किया है. चीन ऐसा भारत के पूर्वोत्तर के इलाके में करना चाहता है और इस नाते वह भारत में जापान के निवेश को टेढ़ी नजर से देखता है. भारत को निश्चित ही ऐसा नहीं होने देना चाहिए क्योंकि ज्यादा आशंका इसी बात की है कि नेपाल चीन के चंगुल में आ जाएगा और चीन-पाकिस्तान तराई वाले इलाके पर अपनी नजर गड़ायेंगे और इसके नतीजे क्या हो सकते हैं इसके बारे में पहले ही बहुत कुछ लिखा जा चुका है. मजेदार बात यह भी है कि चीन खुद को जासूसी की घटनाओं के चपेटे में बता रहा है जबकि वह खुद भारत के खिलाफ ऐसी कारस्तानियां अंजाम देता आया है.
भारत अगर बीआरआई का हिस्सा बनता है तो चीन के साथ चला आ रहा भारत का व्यापार-असंतुलन और भी कई गुणा ज्यादा बढ़ेगा. साथ ही यह भी देखना होगा संबंधों को नये सिरे से लिखने के अपने उत्साह में हम कहीं यह ना भूल जायें कि चीन ज्यादा ताकतवर है और उसके इरादे रातों-रात बदल भी सकते हैं, वह लगातार आक्रामक तेवर अपनाता रहा है तथा भारत को धोखा देने का उसका इतिहास रहा है. बीआरआई का हिस्सा बनते हुए भारत को इस बात पर नजर रखनी होगी कि शी जिनपिंग चीन के नवनिर्माण के अपने स्वप्न को बड़ी तेजी से विस्तार दे रहे हैं और ऐसा करते हुए चीन ने युद्ध की धमकी दी है. चीन अभी एक इंच भी जमीन छोड़ने को तैयार नहीं है और जाहिर है इसमें भारत का वह सारा इलाका भी शामिल है जिस पर चीन अपनी अवैध दावेदारी जताता रहा है.
(लेखक भारतीय सेना के रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल हैं)
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