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दुष्कर्म के आरोपी अदालत से बरी तो हो जाते हैं, जनता से माफी नहीं मिलती

बिहार की राजनीति में यह प्राकृतिक न्याय बिना अपवाद के सब पर लागू हुआ है. जिस किसी नेता का नाम सेक्स स्कैंडल में आया है, उसकी राजनीतिक लुटिया अनिवार्य रूप से डूब गई है.

Updated On: Aug 11, 2018 09:11 AM IST

Arun Ashesh

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दुष्कर्म के आरोपी अदालत से बरी तो हो जाते हैं, जनता से माफी नहीं मिलती

बिहार की राजनीति में यह प्राकृतिक न्याय बिना अपवाद के सब पर लागू हुआ है. जिस किसी नेता का नाम सेक्स स्कैंडल में आया है, उसकी राजनीतिक लुटिया अनिवार्य रूप से डूब गई है. ताज्जुब की बात है कि भ्रष्टाचार जैसे गंभीर आरोपों को झेल रहे नेता आराम से सांसद-विधायक का चुनाव जीत जाते हैं. सबसे बड़े आर्थिक भ्रष्टाचार चारा घोटाले के सभी आरोपी चुनाव जीतते रहे हैं. यहां तक कि सजा मिलने के बाद भी राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के जनाधार में कोई कमी नहीं आई है. बल्कि आज की तारीख में भी वो अकेले में सबसे बड़े जनाधार वाले नेता माने जाते हैं.

आरोप लगने के बाद डॉ. आरके राणा और डॉ. जगदीश शर्मा जैसे लोग लोकसभा के लिए चुने गए. दोनों के पुत्र भी विधानसभा का चुनाव जीते. लालू प्रसाद का तो पूरा परिवार ही किसी न किसी सदन में है. उनके छोटे पुत्र तेजस्वी यादव को राज्य में अगले सीएम के तौर पर पेश किया जा रहा है. बिहार में एक मेधा घोटाला भी हुआ था.

उस समय के साइंस एंड टेक्नालाॅजी मंत्री ब्रजबिहारी प्रसाद पर आरोप लगे थे. प्रसाद की हत्या हो गई. उनकी धर्मपत्नी रमा देवी इस समय बीजेपी की सांसद हैं. एक-दो नहीं, इस तरह के दर्जनों उदाहरण हैं. अलकतरा घोटाला की भी खूब चर्चा हुई थी. इसके आरोपी को राजनीतिक तौर पर फलने-फूलने से नहीं रोक पाया गया. तत्कालीन पथ निर्माण मंत्री इलियास हुसैन इस घोटाला के मुख्य आरोपी थे. बाद के दिनों में वो अदालत से बाइज्जत बरी हो गए. अभी राजद के विधायक हैं. इलियास की बेटी इन दिनों जदयू में आ गई हैं. यानी भ्रष्टाचार के आरोपियों या उनकी संतानों को जनता आसानी से सदन में भेज देती है. राजनीतिक दलों को भी उनसे परहेज नहीं होता है. लेकिन, ऐसी ही उदारता यौन अपराध से जुड़े मामलों में नहीं बरती जाती है.

बॉबी कांड के आरोपी नहीं पनप सके

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सेक्स स्कैंडल के लिहाज से देखें तो बिहार में सबसे बड़ा था बाॅबी कांड. सीबीआइ जांच में इस कांड की पूरी तरह लीपापोती हो गई. फिर भी जिस किसी का नाम इस कांड से जुड़ा, उनका राजनीतिक जीवन तबाह हो गया. बड़े शिकार बने पंडित राधानंदन झा. वह विधानसभा अध्यक्ष थे. अगर यह कांड नहीं हुआ होता तो 1982 के मध्य में वो राज्य के सीएम बन सकते थे. सीएम नहीं बने. विधानसभा की अध्यक्षता गई. 1985 के विधानसभा चुनाव में बेटिकट हो गए.

झा के राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर उनके जिस पुत्र रघुवर झा का नाम सामने आ रहा था, बाॅबी कांड ने उनकी संभावनाओं को पूरी तरह खत्म कर दिया. अपेक्षाकृत लो प्रोफाइल में रहने वाले उनके दूसरे पुत्र हरखू झा को एवजी तौर पर कांग्रेस का टिकट मिला.

हरखू सिर्फ 1985 का विधानसभा चुनाव जीत पाए. वह इंदिराजी की हत्या से उत्पन्न सहानुभूति लहर का दौर था. हरखू झा विधानसभा का दूसरा चुनाव नहीं जीत पाए. मिथिलांचल में राधानंदन झा के समर्थक उस समय भी कह रहे थे कि उन्हें बाॅबी कांड में राजनीतिक साजिश के तहत फंसाया गया. फिर भी समर्थकों की यह इच्छा उनके या उनके परिवार को राजनीतिक प्रतिष्ठा नहीं दिला पाई. यह अलग बात है कि अपने ज्ञान के बल पर राधानंदन झा हमेशा राज्य की राजनीति में अपरिहार्य बने रहे. लेकिन उस कांड के बाद किसी सदन में उनकी वापसी संभव नहीं हो पाई.

पापरी बोस कांड कांड

यह राज्य में कांग्रेस शासन के पतनकाल का कांड है. 1989 में भगवत झा आजाद सीएम थे. इस कांड के आरोपी प्रवीण सिंह उनके करीबी थे. आरोप यह लगा कि प्रवीण सिंह ने एक डॉक्टर की बेटी पापरी बोस को अगवा कर लिया. अगले दिन जबरन शादी कर ली. पापरी बोस को गोड्डा के जिस इंजीनियर के घर में छिपाकर रखा गया था, वह तत्कालीन सीएम आजाद का करीबी था.

कांड में आजाद के एक करीबी रिश्तेदार का भी नाम जुड़ा था. बहुत विवाद हुआ. प्रवीण उसे समय भागलपुर जिला एनएसयूआई के अध्यक्ष थे. संगठन के प्रदेश अध्यक्ष प्रेमचंद्र मिश्रा ने उन्हें पद से हटा दिया. महीनेभर तक उस कांड की चर्चा रही. पापरी लौटी तो उसके परिजन भागलपुर से सदा के लिए चले गए. लंबा मुकदमा चला. प्रवीण बरी हो गए. लेकिन, जनता की अदालत में वो आजतक बरी नहीं हो पाए.

2005 में कांग्रेस ने उन्हें भागलपुर से उम्मीदवार बनाया. चुनाव हार गए. तब से कांग्रेस टिकट के लिए संघर्ष कर रहे हैं. एनएसयूआई के एक प्रदेश अध्यक्ष प्रो अम्बुज किशोर झा तेज-तर्रार नेता माने जाते थे. 1985 तक उनकी छवि साफ-सुथरी थी. उस साल कांग्रेस ने टिकट दिया था. हारे तो फिर उबर नहीं पाए. अम्बुज पर बालक यौन उत्पीड़न का आरोप लगता था. अदालत में आरोप कभी प्रमाणित नहीं हुआ. फिर भी अम्बुज का सदन प्रवेश नहीं हो पाया.

बरी होने के बावजूद घर बैठ गए साधु

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2001 की घटना है शिल्पी गौतम कांड. राजधानी पटना में प्रेमी-प्रेमिका शिल्पी और गौतम रहस्यमय ढंग से मृत पाए गए. आरोप लगा कि शिल्पी के साथ बुरा सलूक हुआ था. गौतम ने विरोध किया. दोनों की हत्या कर दी गई. आरोप तत्कालीन विधान परिषद सदस्य अनिरुद्ध प्रसाद उर्फ साधु यादव सहित अन्य लोगों पर लगा.

सीबीआइ जांच में साधु पर आरोप प्रमाणित नहीं हो पाया. 2005 तक राज्य में राजद की सरकार थी. असर के लिहाज से साधु का यह चरम काल था. 2004 में साधु की लोकसभा में इंट्री भी हो गई. यह उनका संसद का पहला और आखिरी कार्यकाल था. साधु ने 2009 और 2014 में भी लोकसभा जाने की कोशिश की. कामयाब नहीं हो पाए. यहां तक कि विधानसभा का चुनाव भी हार गए.

कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष ब्रजेश पांडेय का नाम एक सेक्स स्कैंडल में आया तो उन्हें पद छोड़ना पड़ा. यह मामला थोड़ा दूसरे किस्म का है. कांग्रेस के पूर्व मंत्री की बेटी पटना के एक कारोबारी से प्यार करती थी. कारोबारी शादी से मुकर रहा था. उसने प्राथमिकी दर्ज कराई. ब्रजेश पांडेय का भी नाम आया. कुछ महीने बाद दोनों की शादी हो गई. सुलह-सफाई भी हो गई. कह सकते हैं कि विवाद सलट गया. इसके बावजूद ब्रजेश को कीमत चुकानी पड़ रही है. इसीके चलते कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष पद पर उनकी दावेदारी नहीं बन पा रही है. क्या पता, यह आरोप उन्हें आगे भी तंग करे.

Brajesh Kumar Pandey

(फोटो: फेसबुक से साभार)

राजद विधायक का भविष्य खतरे में

राजद के विधायक राजबल्लभ यादव भी दुष्कर्म के आरोप में जेल में बंद हैं. उनपर नाबालिग के साथ दुष्कर्म का आरोप है. पटना हाई कोर्ट से जमानत मिल गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने उसे रद कर दिया. आरोप नहीं लगता तो 2019 के चुनाव में राजबल्लभ नवादा से राजद के उम्मीदवार हो सकते थे. यह अब संभव नहीं है.

उनके अगली बार विधायक बनने पर भी संदेह है. फिलहाज मुजफफरपुर कांड की चर्चा हो रही है. खास बात यह है कि इसके मुख्य कर्ताधर्ता बताए जा रहे ब्रजेश कुमार पहले ही विधानसभा का तीन चुनाव हार चुके हैं. कांड में समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा और नगर विकास मंत्री सुरेश शर्मा का नाम लिया जा रहा है. दोनों किसी तरह की संलिप्तता से इंकार कर रहे हैं. हालांकि दबाव में मंजू वर्मा ने इस्तीफा दे दिया है. सीबीआइ जांच कर रही है. जांच के नतीजे कुछ भी आएं-दोनों अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर आश्वस्त नहीं हो सकते.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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