live
S M L

एक पुलिस वाले की गुहार: साहब हमें भीख मांगने दो!

सोचिए उस देश के आत्मविश्वास का क्या होगा जिसका एक कॉन्स्टेबल वर्दी में भीख मांगने की इजाजत मांग रहा हो

Updated On: May 11, 2018 08:38 AM IST

Nazim Naqvi

0
एक पुलिस वाले की गुहार: साहब हमें भीख मांगने दो!

वह सुरक्षा-प्रशासन की पहली इकाई है. वह पुलिस की वर्दी पहनता है. वह वर्दी जिसे पहनने की तमन्ना न जाने कितने युवाओं में रहती है. मध्यम-वर्ग और उससे नीचे के वर्गों में उसे रुसूखवाला समझा जाता है, जो सिपाही बन जाता है. फिर उसे ढेरों सामाजिक और असामाजिक कार्यों में चाहते ना चाहते, शरीक होना पड़ता है. लेकिन अब वही पुलिस वाला अपने साहब से फरियाद कर रहा है कि ‘साहब! हमें भीख मांगने की इजाजत दे दो’.

हैरत में डालने वाली यह इजाजत, यकीनन ध्यानाकर्षण के लिए इस्तेमाल किया गया एक हथकंडा है. और आजकल के सोशल मीडिया के जमाने में तो ये आग की तरह फैलेगा. पुलिसवाले की बेचारगी पर आंसू बहाए जाएंगे, पुलिस-विभाग और सरकार को कोसा जाएगा. दूसरी ओर पुलिस के आलाधिकारी चाहेंगे कि मामले का तुरंत निस्तारण हो जाए.

पूरी पुलिस-संस्था किस दौर से गुजर रही है?

देखने में तो जरूर यह छोटा मामला लगता है, लेकिन इसमें गहरे उतरिए तो आपको एक बड़ी लापरवाही का ज्वालामुखी सुलगता नजर आएगा. सामने से देखने पर मामला बस इतना है कि मुंबई पुलिस के एक कॉन्स्टेबल दन्यनेश्वर अहीरराव ने पिछले दो महीने से पगार ना मिलने पर ‘वर्दी पहनकर भीख मांगने’ की मंजूरी मांगी है. लेकिन पूरी पुलिस-संस्था किस दौर से गुजर रही है इस पर से नकाब उठाती है यह फ़रियाद.

यह भी पढ़ें: राहुल गांधी के पीएम वाले बयान पर बवाल मचाने से पहले तर्क भी तो देखिए

अहीरराव ने अपने विभाग के आलाधिकारियों, पुलिस कमिश्नर और मुख्यमंत्री फडणवीस से फ़रियाद की है कि अपनी बीमार पत्नी की देखभाल और घरेलू खर्च निकालने के लिए उसके सामने भीख मांगने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है. जाहिर है कि किसी भी नौकरीपेशा व्यक्ति के लिए महीने की तनख्वाह ही सब कुछ होती है. एक-एक दिन का हिसाब वेतन मिलने की तारिख के इर्द-गिर्द घूमता है. घर की जरूरतें, बच्चों की पढ़ाई, बुजुर्ग माता-पिता की दवाएं और किस्तें, सबकुछ बटुए की सेहत पर आश्रित है.

हर राज्य में हर साल हजारों पुलिस सिपाहियों की भर्ती के लिए आवेदन निकलते हैं. जिनमें लाखों-लाखों नौजवान आवेदन करते हैं. देश की आतंरिक सुरक्षा-व्यवस्था में इन सिपाहियों और कॉन्स्टेबलों का महत्व रीढ़ की हड्डी जैसा है. लेकिन उनकी अपनी हालत चिंताजनक स्तर तक पहुंच चुकी है. पूरी पुलिस-व्यवस्था का ढांचा इतना जर्जर हो चुका है कि इसे संभाल पाना एक तरह से नामुमकिन हो गया है.

इस पूरी व्यवस्था में तुरंत सुधार की जरूरत है, लेकिन हम फिर भी इसके नट-बोल्ट ठीक करने या कुछ जुगाड़ करके बस इतना ही कर पा रहे हैं कि यह चलती-फिरती नजर आए. रोगी ठीक नहीं हो सकता हम जानते हैं लेकिन हमारे नीति-निर्माता तो इसी बात से ही खुश हैं कि कम से कम रोगी को मरने नहीं दिया जा रहा है.

सिर्फ पुलिस-प्रशासन की बात ही क्यों की जाए, पिछले एक दशक में हमारी सारी संस्थाएं, चाहे वह न्यायपालिका हो, विधायिका हो, प्रशासनिक सेवा हो, सुरक्षा एजेंसियां हों, प्रवर्तन निदेशालय हो, चुनाव-आयोग हो, इन सबका क्षय हुआ है और लगातार हो रहा है लेकिन इस लेख का फोकस अगर पुलिस-संस्था पर केंद्रित है तो इसलिए कि इसके सबसे छोटे ओहदे के एक कर्मी ने भीख मांगने की इजाजत मांगी है.

जो लोग विदेशों की पुलिस व्यवस्था को देखकर लौटते हैं, उन सबका सवाल यही होता है कि हम अपनी पुलिस को ऐसा क्यों नहीं बना सकते? लेकिन इस सवाल का जवाब इतना आसान भी नहीं है. मिसाल के तौर पर इंग्लैंड की पुलिस का ही जायजा ले लीजिए. वह इंग्लैंड जिसके तहत करीब 2 सौ वर्ष हम गुलाम रहे और आजादी के बाद ज्यादातर उन्हीं व्यवस्थाओं की नक़ल करके आगे बढे.

हर राज्य में हर साल हजारों पुलिस सिपाहियों की भर्ती के लिए आवेदन निकलते हैं. जिनमें लाखों-लाखों नौजवान आवेदन करते हैं

हर राज्य में हर साल हजारों पुलिस सिपाहियों की भर्ती के लिए आवेदन निकलते हैं. जिनमें लाखों-लाखों नौजवान आवेदन करते हैं

पुलिस हमारी आंतरिक सुरक्षा की देखभाल इमानदारी से कर पाएगी?

ग्रेट-ब्रिटेन की कुल आबादी लगभग 65-66 मिलियन है जो अपनी पुलिस पर लगभग 16.35 बिलियन पौंड (यानी हमारी मुद्रा में करीब 142,574 करोड़) खर्च करता है. जबकि हमारे सवा सौ करोड़ के देश में हम, लगभग 90,662,96 करोड़ खर्च करते हैं. एक आंकड़े के मुताबिक भारत में पुलिस पर प्रतिदिन केवल एक रूपये 94 पैसे खर्च किए जाते हैं. यह वह रकम है कि आप इसमें एक चाय भी नहीं पी सकते.

पुलिस-संस्था पर खर्च का यह आंकड़ा अगर यह है, तो आप कैसे उम्मीद करते हैं कि वह हमारी आंतरिक सुरक्षा की देखभाल ईमानदारी से कर पाएगी? पुलिस-सुधार की पुरजोर वकालत करने वाले और ‘फाल्टलाइन्स’ के संपादक डॉ. अजय साहनी अपने एक नवीनतम लेख में पंजाब के सबसे मशहूर और खालिस्तान-आंदोलन की कमर तोड़ने वाले पुलिस महानिदेशक केपीएस गिल को उद्धृत करते हैं -

‘हमारी वर्तमान समस्याएं हमारी वर्तमान विफलताओं का नतीजा नहीं हैं. यह हमारी पुलिस की अक्षमता और हमारे अतीत के राजनीतिक नेतृत्व की नासमझी में निहित हैं जो अनुमानित परिवर्तनों की सुध नहीं ले पाए और जाहिर है कि जो अपेक्षित कार्यवाही होनी चाहिए थी वह भी नहीं हुई. आदिम जमाने की पुलिस कार्य-पद्धतियों के प्रतिबिम्ब को दोष-सिद्ध के हमारे कमजोर आंकड़ों में देखा जा सकता है. नतीजतन कानून के लिए सम्मान में भी इसी अनुपात में कमी आई है. यही इस बीमारी का सार है.’

एक कॉन्स्टेबल वर्दी में भीख मांगने की इजाजत मांग रहा है

पुलिस संस्था हमारे देश का एक महत्वपूर्ण अंग है और कोई भी देश अपने आपको कैसे स्वस्थ कह सकता है जब उसका कोई भी अंग लाचार हो गया हो. हमारे संविधान ने जो दो सबसे महत्वपूर्ण वादे अपने नागरिक से किए हैं उसमें एक है ‘निष्पक्षता’ और दूसरा ‘सुरक्षा’. सुरक्षा हर नागरिक का मौलिक अधिकार है. सरहदों पर तो हमने इस सुरक्षा पर कभी आंच नहीं आने दी, लेकिन हमारी आंतरिक सुरक्षा का जो हाल है उससे हर देशवासी रोज जूझ रहा है.

यह भी पढ़ें: जिन्ना की तस्वीर पर AMU को फैसला लेना चाहिए, सरकार या उपद्रवियों को नहीं

सोचिए उस देश के आत्मविश्वास का क्या होगा जिसका एक कॉन्स्टेबल वर्दी में भीख मांगने की इजाजत मांग रहा हो, क्योंकि ना तो वह अपनी वर्दी उतारना चाहता है (जो उसे बड़े पापड़ बेलकर मिली है) और ना ही अपनी और अपने परिवार की भूख मिटाने का कोई जुगाड़ उसके पास है. दूसरी तरफ दशकों से पुलिस-सुधार की मांगें ठंडे-बस्ते में पड़ी है. देश की सुरक्षा-व्यवस्था की नब्ज़ हर नई अपराधिक घटना के साथ डूबती जा रही है और उसी चरमराई हुई व्यवस्था में बैसाखियां लगाकर हम उसे दौड़ा रहे हैं.

अभी हाल ही में कठुआ-कांड में एक पुलिसकर्मी की अपराध में भागीदारी के जो किस्से हैं वह अब चौंकते नहीं हैं. चोर-सिपाही के रिश्ते अब बेचैनी नहीं पैदा करते. हमें तो तब हैरत होती है जब कोई ईमानदार पुलिस वाला हमें मिल जाता है.

जाहिर है कि इस तरफ ध्यान कौन देगा क्योंकि एक चुनाव के बाद दूसरे चुनाव की तैयारी शुरू हो जाती है और वही मुद्दे सबसे अहम हो जाते हैं जो वोट ला सकें.

0

अन्य बड़ी खबरें

वीडियो
KUMBH: IT's MORE THAN A MELA

क्रिकेट स्कोर्स और भी

Firstpost Hindi