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मुंबई 26/11 : 'आंखों के सामने मैंने मौत देखी, चाय की वजह से बची जान'

बिहार से रोजगार के लिए आए अविनाश 10 साल बाद भी उसी जगह पर अखबार बेच रहे हैं. लेकिन उन्हें इस बात अहसास है कि मौत उनको करीब से छूकर गई है

Updated On: Nov 25, 2018 09:07 PM IST

FP Staff

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मुंबई 26/11 : 'आंखों के सामने मैंने मौत देखी, चाय की वजह से बची जान'

26 नवंबर 2008 की रात पूरा मुंबई शहर दहल गया था. इसके साथ ही देश की सुरक्षा व्यवस्था तार तार हो गई थी. देश के सबसे बड़े आतंकी हमले में 164 लोगों की मौत हो गई थी. मुंबई की सड़कें बेगुनाह लोगों के खून से लाल हो गई थी. उस खूनी रात को एक शख्स ने मौत के साथ साथ बेकसूरों का खून बहाने वाले अजमल कसाब को बेहद नज़दीक से देखा था.

10 साल बाद आज भी उस हमले को याद कर वो सिहर उठते हैं. उस खौफनाक रात को याद कर वो कहते हैं कि अगर दोस्त के चाय पीने की गुजारिश को टाला नहीं होता, तो अगले दिन अखबार में छपे मरने वाली की लिस्ट में उनका भी नाम होता.

ये कहानी बिहार के अविनाश की है, जिन्होंने मुंबई के 26/11 हमले को बेहद करीब से देखा था. अविनाश पिछले 30 बरस से मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनल के बाहर अखबार बेच रहे हैं. मुंबई के साथ उनकी कई खट्टी-मीठी यादें जुड़ी हुई हैं. लेकिन 26 नवंबर 2008 की वो काली रात उनके लिए किसी भयानक सपने से कम नहीं है.

अविनाश बताते हैं, 'हर रोज की तरह उस रात भी मैं अपना काम खत्म कर सारे अखबार और पत्रिकाएं समेटकर स्टेशन के भीतर गया था. रात के करीब साढ़े नौ बजे का वक्त था. स्टेशन के स्टॉल पर अखबार और किताबों का सारा हिसाब-किताब देकर लौट रहा था. तभी मेरे दोस्त ने चाय पीने का आग्रह किया. एक पल लगा कि रूक जाऊं, लेकिन न जाने क्यों मन नहीं किया और मैं धीरे-धीरे एक प्लेटफॉर्म से दूसरे प्लेटफॉर्म होते हुए बाहर की तरफ जाने लगा.'

avinash paper

अविनाश अपनी बात कहते हुए कुछ देर के लिए ठहर जाते हैं. फिर कहते है, 'मैं स्टेशन के बाहर आया, तभी मुझे चीख-पुकार सुनाई दी. मुझे कुछ पलों के लिए समझ में ही नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा है. अचानक लोग भागने लगे और फायरिंग की आवाजें आने लगी. मैं भी सैकड़ों लोगों के साथ स्टेशन के बाहर खड़ा हो गया. लोग मेरे सामने मारे जा रहे थे. अचानक कसाब बिल्कुल मेरे नजदीक से निकला. पलभर के लिए लगा कि शायद अब मौत के मुंह में जाने से मुझे कोई रोक नहीं सकता है, लेकिन अचानक कसाब वहां से निकल गया.'

बिहार से रोजगार के लिए आए अविनाश 10 साल बाद भी उसी जगह पर अखबार बेच रहे हैं. कभी उनके जेहन में अपने घर लौटने का ख्याल नहीं आया. लेकिन उन्हें इस बात अहसास है कि मौत उनको करीब से छूकर गई है.

अविनाश मानते है कि अगर उस दिन वह चाय पीने के लिए रूक जाते, तो कसाब की गोली से उनकी जिंदगी भी खत्म हो जाती. इस हादसे में अविनाश ने अपने उस दोस्त को गवां दिया, जिसने उन्हें चाय पीने के लिए रुकने को कहा था. कसाब को फायरिंग करते हुए देख उसके दोस्त ने अपने घर पर फोन किया था और स्टेशन पर हुए हमले की जानकारी दे रहा था. उसे ऐसा करते हुए देख कसाब ने देख लिया और कुछ गोलियों की आवाज सुनाई दी और वो आवाज हमेशा के लिए खामोश हो गई.

(न्यूज18 हिंदी से साभार)

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