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फेक न्यूज पर नकेल कसेगी सरकार: गृह मंत्रालय, इंटेल, राज्य पुलिस में बनेंगी स्पेशल यूनिट्स

गृह मंत्रालय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अफवाहों से पैदा होने वाले खतरों के निदान के लिए संस्थागत व्यवस्था पर जोर दे रहा है

Updated On: Jun 05, 2018 02:25 PM IST

Yatish Yadav

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फेक न्यूज पर नकेल कसेगी सरकार: गृह मंत्रालय, इंटेल, राज्य पुलिस में बनेंगी स्पेशल यूनिट्स

भारत में इन दिनों फेक न्यूज यानी फर्जी/झूठी खबरें लोगों की जिंदगी और कानून व्यवस्था के लिए एक बड़ा खतरा बन गई हैं. ज्यादातर मामलों में फेक न्यूज का मकसद अलग-अलग धर्मों, जातियों और समुदायों के बीच नफरत फैलाना होता है. फेक न्यूज के जरिए समाज में मतभेद पैदा करने के लिए असामाजिक तत्व आजकल सबसे ज्यादा सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं. ज्यादातर लोग सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रही किसी खबर पर आंखें मूंदकर यकीन कर लेते हैं. जिसके चलते कोई फेक न्यूज देखते ही देखते जंगल की आग की तरह हर ओर फैल जाती है. ऐसे लोगों की तादाद बहुत कम है जो सोशल मीडिया पर छाई किसी खबर को जांचने-परखने की जहमत उठाते हैं.

वॉट्सऐप और फेसबुक जैसे सोशल मैसेजिंग टूल्स झूठी खबरें और नफरत भरे संदेश फैलाने वालों के पसंदीदा हथियार बन चुके हैं. सोशल मीडिया से फैली किसी फेक न्यूज या जहरीले संदेश के नतीजे के तौर पर बेकसूर लोगों की मॉब लिंचिंग (भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या) जैसी जघन्य और शर्मनाक घटनाएं सामने आ रही हैं. लिहाजा फेक न्यूज के बढ़ते खतरे को देखते हुए केंद्र सरकार सतर्क हो गई है. गृह मंत्रालय ने खुफिया विभाग (इंटेलिजेंस ब्यूरो) और राज्य पुलिस बलों से सोशल मीडिया पर वायरल होने वाली झूठी खबरों, गलत सूचनाओं और नफरत फैलाने वाले संदेशों पर नजर रखने और उनपर नकेल कसने को कहा है. गृह मंत्रालय ने इस काम के लिए स्पेशल यूनिट्स बनाने के निर्देश दिए हैं. शीर्ष सूत्रों के मुताबिक, फेक न्यूज के खिलाफ यह पहल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की है. दरअसल हाल ही में पीएम मोदी ने असामाजिक तत्वों द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करके घृणा, दुर्भावना और तनाव फैलाए जाने की घटनाओं पर चिंता जताई थी.

मौजूदा हालात में, देश की सुरक्षा एजेंसियों के लिए वॉट्सऐप समेत सभी एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग सेवाओं पर खबरों के रूप में फैलाए जाने वाले झूठे और जहरीले संदेशों पर निगरानी रखना और उनकी प्रामाणिकता परखना मुश्किल है. हाल ही में दक्षिण भारत के 4 राज्य सोशल मीडिया पर वायरल हुई झूठी खबरों और उसके दर्दनाक नतीजों के गवाह बने.

वॉट्सऐप पर फेक न्यूज के सहारे फैलाई जा रही हिंसा

तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में सोशल मीडिया पर अफवाह फैली कि बच्चा चोरों का एक गैंग इलाके में सक्रिय है, जो जगह-जगह छोटे-छोटे बच्चों को अगवा कर रहा है. देखते ही देखते यह फेक न्यूज दक्षिण भारत में वायरल हो गई. जिसके बाद हैदराबाद के चंद्रयानगुट्टा इलाके में भीड़ ने बच्चा चोरी के शक में एक शख्स की पीट-पीटकर हत्या कर दी. मारा गया शख्स रमजान के मौके पर सड़कों पर भीख मांग रहा था. यही नहीं बच्चा चोरी के शक में निजामाबाद और बीबीनगर में भी भीड़ ने कुछ बेकसूर लोगों पर हिंसक हमले किए.

स्थानीय पुलिस का दावा है कि, भीड़ को उकसाने के लिए असामाजिक तत्वों ने सोशल मीडिया पर सीरिया और श्रीलंका की पुरानी तस्वीरों को प्रसारित किया था. तेलंगाना के कई गांवों में भी वॉट्पसऐप के जरिए अफवाहें और दहशत फैलाई गईं. इस मामले में पिछले महीने दो नाबालिग लड़कों को गिरफ्तार किया गया था. पुलिस का कहना है कि, आरोपी लड़कों ने महबूबनगर में तीन बेकसूर लोगों को बच्चा चोर बताते हुए तस्वीरों के साथ कुछ वॉयस मैसेज प्रसारित किए थे, जिससे न सिर्फ उन तीनों लोगों की जिंदगी खतरे में पड़ गई थी बल्कि इलाके में जबरदस्त दहशत और तनाव का माहौल भी बन गया था.

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इन मामलों को रोकने में टेक्नोलॉजी कर रही है कितनी मदद?

ऐसे मामलों में सुरक्षा एजेंसियों का काम होता है कि वे जंगल की आग की तरह फैलाने वाले संदेशों के बारे में जनता को जागरूक करें और उन्हें सच्ची और झूठी खबरों के फर्क को समझाने में मदद करें. लेकिन हालिया घटनाओं से पता चलता है कि, मैसेजिंग जैसी महान और एडवांस टेक्नोलॉजी कितनी आसानी से खतरनाक और विघटनकारी बन सकती है. क्या तकनीकी रूप से यह संभव है कि आपत्तिजनक संदेशों, उनके स्रोत और उन्हें फैलाने वालों को तुरंत खोजा जा सके?

हैदराबाद पुलिस के आईटी सेल के प्रमुख श्रीनाथ रेड्डी और उनकी टीम ने सोशल मीडिया के जरिए समाज में नफरत फैलाने की कोशिश करने वाले कई अभियानों को नाकाम किया है. श्रीनाथ रेड्डी का कहना है कि, उनकी टीम ने वॉट्सऐप और अन्य मैसेजिंग सेवाओं के जरिए फेक न्यूज और भड़काऊ सामग्री फैलाने वाले लोगों की पहचान करने के लिए कुछ तंत्र विकसित किए हैं. रेड्डी ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया कि वह 'बैकट्रैक' मैथड का उपयोग करके हिंसा भड़काने के इरादे से फेक न्यूज फैलाने वाले वॉट्सऐप और फेसबुक ग्रुप्स के एडमिनिस्ट्रेटर की पहचान करते हैं. हालांकि, रेड्डी ने स्वीकार किया है कि फेक न्यूज, झूठे संदेशों और जहरीली सामग्री को सोशल मीडिया पर फैलने से रोकने की मुहिम में वॉट्सऐप एक बड़ी चुनौती बन गया है.

श्रीनाथ रेड्डी के मुताबिक, 'यह बेहद मेहनत वाला और थकाऊ काम है, जिसे हम कमांड सेंटर की निगरानी टीम और फील्ड अफसरों के बीच पूर्ण समन्वय के जरिए करते हैं. मुख्य रूप से किसी वॉट्सऐप या फेसबुक ग्रुप का एडमिन ही कंटेन्ट (सामग्री) को जेनरेट करने (उत्पन्न करने) और फॉरवर्ड करने (अग्रेषित करने) के लिए ज़िम्मेदार होता है. बैकट्रैकिंग के माध्यम से हम एडमिन की लोकेशन का पता लगाने का प्रयास करते हैं. इसके बाद ही हम आगे की कार्रवाई करते हैं. हाल ही में बच्चा चोरी और झपटमारी की अफवाहों के बाद हुए हिंसक हमलों के मामले में हमने बैकट्रैकिंग की विधि के जरिए बड़ी कामयाबी पाई थी. हमारी मुख्य चुनौती वॉट्सऐप है क्योंकि इस पर नजर नहीं रखी जा सकती है. लेकिन बैकट्रैक मैथड के जरिए हम एडमिन और रिसीवर पर नजर रख सकते हैं. जिससे वक्त रहते हालात पर काबू पाया जा सकता है.'

मैसेजिंग ऐप्स बने जानलेवा

प्रधानमंत्री के आदेश में यह भी सुझाव दिया गया है कि, फेक न्यूज पर नकेल कसने के लिए राज्यों द्वारा बनाई जाने वाली विशेष यूनिट्स की रहनुमाई खुफिया एजेंसियां और गृह मंत्रालय करे. साथ ही इन विशेष यूनिट्स को स्थानीय और क्षेत्रीय भाषाओं में इस्तेमाल होने वाली शब्दावली (टर्मिनोलॉजी) और गुप्त कोड की शिक्षा भी दी जाए, ताकि भड़काऊ संदेशों और जहरीली सामग्री को जल्द से जल्द पहचानकर उसे फैलने से रोका जा सके.

प्रधानमंत्री मोदी ने शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों से कहा है कि 'सोशल मीडिया पर भड़काऊ संदेश फैलाने के लिए असमाजिक तत्व विभिन्न भाषाओं और शब्दावली का उपयोग करते हैं. लिहाजा उन शब्दावली और गुप्त कोडों के अध्ययन और जांच के लिए खास ग्रुप्स और विशेष यूनिट्स बनाई जाएं.'

हैदराबाद पुलिस के आईटी सेल के प्रमुख श्रीनाथ रेड्डी का कहना है कि, उन्होंने 'हॉक आई' नाम का एक ऐप विकसित किया है, जिसका उपयोग गलत सूचनाओं और अफवाहों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए किया जा रहा है. रेड्डी ने आगे बताया कि, तेलंगाना में कम से कम 15 लाख मोबाइल उपयोगकर्ता 'हॉक आई' ऐप को सब्सक्राइब कर चुके हैं. इस ऐप के जरिए लोगों को सोशल मीडिया पर किसी भी तरह की आपत्तिजनक सामग्री की शिकायत करने में मदद मिलती है. वहीं पुलिस भी इस ऐप का इस्तेमाल कर रही है और समय-समय पर सूचनाएं भेजकर लोगों को जागरूक कर रही है.

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श्रीनाथ रेड्डी के मुताबिक, 'हमारे पास सोशल मीडिया कमांड और कंट्रोल सेंटर है. जो 24x7 (सातों दिन 24 घंटे) काम करता है. हमने 17-18 लाख सब्सक्राइबर्स का डेटाबेस विकसित किया है. जब भी कंट्रोल रूम की पकड़ में कोई भड़काऊ संदेश आता है, तो अफवाहों के प्रभाव को बेअसर करने के लिए हम तेलुगु, अंग्रेजी, हिंदी, उर्दू और तमिल समेत विभिन्न भाषाओं में काउंटर संदेश भेजते हैं. हम राज्य के विभिन्न हिस्सों में जागरूकता शिविर भी आयोजित कर रहे हैं.'

गृह मंत्रालय भी कर रहा है कोशिशें

दूसरी तरफ, गृह मंत्रालय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अफवाहों से पैदा होने वाले खतरों के निदान के लिए संस्थागत व्यवस्था पर जोर दे रहा है. मंत्रालय ने वर्चुअल वर्ल्ड (सोशल मीडिया और इंटरनेट) में आपराधिक गतिविधियों से निबटने के लिए राज्य और जिला स्तर पर सेल बनाए जाने की सलाह दी है. गृह मंत्रालय की 2017-18 की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्चुअल वर्ल्ड में आपराधिक गतिविधियों में इजाफा हुआ है. साल 2016 में साइबर क्राइम से जुड़े 12,317 मामले दर्ज किए गए थे, जबकि साल 2015 में यह संख्या 11,592 थी.

हाल ही में असम के पुलिस महानिदेशक (DGP) के पद से रिटायर हुए मुकेश सहाय का कहना है कि, नए युग के मैसेजिंग ऐप्स में सबसे बड़ी समस्या एन्क्रिप्शन है. नए मैसेजिंग ऐप्स व्यक्तिगत गोपनीयता को बढ़ाने में काफी सक्षम हैं. लेकिन समाज के भीतर एक ऐसा वर्ग है जो तकनीक की इस सुविधा का गलत फायदा उठा रहा है. वह लोग इसका इस्तेमाल समाज विरोधी और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के लिए कर रहे हैं. यहां तक कि म्यांमार बेस्ड विद्रोही समूह भी भारत के व्यापारियों को एक्सटॉर्शन कॉल करने के लिए व्हाट्सएप का उपयोग कर रहे हैं. यानी रंगदारी मांगने के लिए धमकी भरे फोन व्हाट्सएप के जरिए किए जा रहे हैं. लेकिन संचार के इन नए साधनों को इंटरसेप्ट कर पाना मुश्किल है.

मुकेश सहाय के मुताबिक, 'प्रौद्योगिकी (टेक्नोलॉजी) स्वभाव से तटस्थ होती है. एक वर्ग विशेष इसे अच्छे उद्देश्य के लिए ढंग से इस्तेमाल कर सकता है. हमने देखा है कि व्हाट्सएप और फेसबुक कुछ मामलों में बहुत सक्षम और उपयोगी साबित हुए हैं. लेकिन, मैं इस तथ्य से इनकार नहीं करूंगा कि कुछ लोग इसे समस्या और नफरत पैदा करने वाले एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं. इसके गलत उपयोग से निर्दोष लोगों की हत्या की जा रही है. चरमपंथी संगठन भी इसका उपयोग दूर-दराज के युवाओं को वरगलाने और पथ भ्रष्ट करने के लिए कर रहे हैं. हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि निजी गोपनीयता और राष्ट्रीय हितों का संतुलन न बिगड़े. हमें (कूट भाषाओं) एन्क्रिप्शन को तोड़ने के लिए प्रौद्योगिकी विकसित करने की जरूरत है. साथ ही जानकारियां पाने के लिए स्थानीय कानून के तहत सर्विस प्रोवाइडर्स (सेवा प्रदाताओं) तक पहुंच की भी आवश्यकता है. सरकार पहले से ही इस पहलू काम कर रही है. भड़काऊ सामग्री पर लगाम कसने के लिए असम में हमने वर्चुअल पेट्रोलिंग के लिए 'साइबर डोम' नाम का इंटीग्रेटेड स्ट्रक्चर विकसित किया है. हमारा मकसद सोशल मैसेजिंग प्लेटफॉर्म्स को ब्लॉक करना नहीं बल्कि उन्नत क्षमताओं के साथ उन्हें ठीक से नियंत्रित करना है.'

टेक्नोलॉजी और मैन पावर पर भरोसा

सोशल मीडिया पर अफवाहों के चलते मई 2017 में झारखंड से भी इसी तरह के हमलों की सूचनाएं मिली थीं. कुछ झूठे वॉट्सऐप मैसेजेस की वजह से लोग भड़क उठे हैं. जिसके बाद उग्र भीड़ ने कई बेकसूर स्थानीय लोगों को निशाना बनाया था और उनपर हिंसक हमले किए थे. इन घटनाओं ने राज्य में काफी उथल-पुथल पैदा कर दी थी. नतीजतन सोशल मीडिया पर वायरल होने वाली जानलेवा अफवाहों से निपटने के लिए झारखंड पुलिस भारी दबाव में आ गई थी.

एक वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी ने कहा कि, वे समुदाय के माध्यम से लोगों को शिक्षित करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, क्योंकि इन प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल न केवल अफवाह फैलाने के लिए होता है, बल्कि यौन हिंसा के वीडियो प्रसारित करने के लिए एक उपकरण के रूप में भी इनका उपयोग किया जाता है.

वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी के मुताबिक, ' इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए हमारा फोकस जिला स्तर पर टेक्नोलॉजी और मैन पावर पर है. हम अपने प्रशिक्षण कार्यक्रमों में पुलिसकर्मियों को शिक्षित कर रहे हैं, ताकि वे लोगों को ऐसे शक्तिशाली और सुविधाजनक प्लेटफ़ॉर्म के अच्छे उपयोग के बारे में बता सकें. हमें ग्रामीणों को सरल भाषा में समझाने की जरूरत है. हमें लोगों को बताना होगा कि लगातार तरक्की करती तकनीक की मदद से परमाणु बम भी बनाया जा सकता है और बिजली भी. यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम इस शक्तिशाली तकनीक का उपयोग कैसे करते हैं.'

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यौन हिंसा के वीडियो के प्रसार के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एक समिति का गठन किया गया था. उस समिति का अध्यक्ष इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तत्कालीन अतिरिक्त सचिव डॉ. अजय कुमार को बनाया गया था. इस समिति ने कोर्ट को कुछ सुझाव दिए थे. जिसमें कहा गया था कि, रेप, गैंगरेप और चाइल्ड पोर्नोग्राफी का चित्रण करने वाले वीडियोज को सर्कुलेशन से रोका जाए. पैनल ने इस मामले में भारतीय और विदेशी विशेषज्ञों की मदद ली थी, ताकि खतरे से निपटा जा सके. यहां तक कि वॉट्सऐप के प्रतिनिधियों ने समिति के समक्ष एक प्रजेंटेशन भी दिया था. समिति का सुझाव था कि, वॉट्सऐप को अपनी रिपोर्टिंग प्रक्रिया में और सुधार करना चाहिए. ऐसा इसलिए ताकि किसी सामग्री की रिपोर्टिंग आसान हो सके. हालांकि सामग्री और उस समय फोन पर उपलब्ध मेटाडेटा की अखंडता को बनाए और बचाए रखने का सुझाव भी दिया गया था.

हालांकि, फोटो डीएनए को कंप्यूट करने, मोबाइल हैंडसेट के स्तर पर वॉट्सऐप क्लाइंट पर वीडियोहैश करने और फिर CP/RGR हैशेज डेटाबेस के साथ मैचिंग के लिए सेंट्रल वॉट्सऐप सर्वर पर ट्रांसमिट करने का सुझाव समिति द्वारा रद्द कर दिया गया था. समिति ने एक और प्रस्ताव पर चर्चा की थी कि, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर हिंसक वीडियो के मुक्त प्रवाह से निबटने के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) या गृह मंत्रालय के भीतर एक सेल बनाया जाना चाहिए. पैनल का मानना था कि भारत को एक केंद्रीय रिपोर्टिंग तंत्र की आवश्यकता है, जो भारत का हॉटलाइन पोर्टल हो सकता है, जैसा कि अमेरिका जैसे अन्य देशों में विकसित किया गया है.

जेन कूम और ब्रायन एक्टन द्वारा स्थापित वॉट्सऐप इंक ने 15 मई 2018 को एक बयान जारी करते हुए भड़काऊ संदेश और सूचनाएं फैलाने वाले लोगों को चेतावनी दी थी. वॉट्सऐप इंक के उस बयान में कहा गया था कि: 'जब हमें वॉट्सऐप या फेसबुक पर स्पैम या अपमानजनक सामग्री के तौर पर अवांछित संदेशों को भेजने वाले किसी शख्स की रिपोर्ट प्राप्त होती है, तब हम जानकारी साझा करते हैं. हम उस पर कार्रवाई कर सकते हैं और दोनों सेवाओं में उसे ब्लॉक भी कर सकते हैं. हम आपको समस्याग्रस्त सामग्री की रिपोर्ट करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं. कृपया ध्यान रखें कि हमारे पास आम तौर पर हमारे लिए उपलब्ध संदेशों की सामग्री नहीं होती है. लिहाजा आपके संदेशों की सुरक्षा और गोपनीयता सुनिश्चित करने में सहायता के लिए आप उस समस्याग्रस्त सामग्री का एक स्क्रीनशॉट ले सकते हैं और उपलब्ध जानकारी के साथ इसे कानून व्यवस्था से जुड़े किसी भी संस्थान के साथ साझा कर सकते हैं.'

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