सरकारी योजनाओं की जमीनी पड़ताल और उसकी आम जनता तक पहुंच के दावे की हकीकत जानने हम पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में एक दलित बहुल इलाके में पहुंचे थे. जाटोवाला के नाम से मशहूर इस इलाके के एक घर में हमारी बैठकी जमी थी.
शाम के 5 बजे का वक्त रहा होगा. वहां मौजूद दलित समुदाय के लोग सरकार के दलित विरोधी रवैये पर खुलकर अपनी बात रख रहे थे. तभी घर के एक हिस्से में बनी रसोई से आ रही कुकर के सीटी की आवाज ने हमारी बातचीत को बीच में ही रोक दिया. मैंने यूं ही पूछ लिया- ‘लगता है खाना बन रहा है?’ जवाब आया- ‘हां, गैस पर कुछ चढ़ा रखा है.’ मैंने पूछा- ‘आप लोग गैस सिलेंडर का इस्तेमाल कब से कर रहे हैं?’ घर के मुखिया छतर सिंह बोले- ‘ज्यादा वक्त नहीं हुआ है. कुछ महीने पहले ही मोदी सरकार की उज्ज्वला योजना में गैस चूल्हा और सिलेंडर मिला है. तब से हम इसका इस्तेमाल कर रहे हैं.’
छतर सिंह सरकार की कई मुद्दों पर मुखालफत करते हैं लेकिन उज्ज्वला योजना पर बात आते ही ये मानने से गुरेज नहीं करते हैं कि इस योजना से लोगों को फायदा पहुंचा है. अब तक शाम के वक्त जिन घरों से लकड़ी के चूल्हे का धुंआ उठता दिखाई देता था, वहां से अब बर्तनों के खड़कने की आवाज तो आती है, धुंआ नहीं दिखता.
किस लेवल तक पहुंचा है उज्जवला योजना का फायदा?
हालांकि सवाल ये है कि क्या हर जगह के हालात बदले हैं? मोदी सरकार की उज्ज्वला योजना का फायदा किस स्तर तक पहुंचा है? क्या ग्राउंड लेवल पर पहुंचने के बाद सरकारी योजनाओं में जो गड़बड़ियां देखने में आती हैं, उससे ये योजना अछूती है? क्या उज्ज्वला योजना के लाभान्वित इस योजना से खुश हैं? क्या सरकार की ये महत्वाकांक्षी योजना जमीनी स्तर पर बदलाव लेकर आई है? इन सारे सवालों के साथ हमने पश्चिमी यूपी के कई इलाकों का दौरा किया और इसके जरिए योजना की जमीनी पड़ताल से नतीजे निकालने की कोशिश की.
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सहारनपुर में शब्बीरपुर गांव के दलितों के बीच इस योजना के जरिए गैस सिलेंडर बांटे गए हैं. शब्बीरपुर वही गांव है, जहां पिछले साल दलितों और ठाकुरों के बीच जातीय दंगे हुए थे, जिसमें कई दलितों के घर आग लगा दी गई थी. शब्बीरपुर के दलित पुलिस प्रशासन से लेकर सरकार के रवैये से नाराज दिखते हैं. लेकिन इस नाराजगी के बाद भी ये स्वीकार करते हैं कि यहां सरकारी योजना वाले गैस सिलेंडर बांटे गए हैं. दलित समुदाय से आने वाले सुदेश कुमार कहते हैं कि उज्ज्वला योजना के तहत गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों को एलपीजी कनेक्शन मिला है. हालांकि वो ये भी जोड़ते हैं कि इसका फायदा हर गरीब तक नहीं पहुंचा है. तकरीबन इसी तरह का जवाब कई इलाकों से मिलता है.
5 करोड़ गरीब घरों में कनेक्शन उपलब्ध करवाने की बनी थी योजना
1 मई 2016 को उत्तर प्रदेश के बलिया से प्रधानमंत्री मोदी ने प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना की शुरुआत की थी. इस योजना में गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले परिवारों को एलपीजी कनेक्शन उपलब्ध करवाने का लक्ष्य रखा गया. मोदी सरकार ने महिलाओं और बच्चों को लकड़ी के चूल्हे से निकलने वाले जहरीले धुएं से बचाने के लिए इस योजना को प्रभावी तौर पर लागू किया. 2016 के बाद अगले 3 साल तक के लिए इस योजना का खाका तैयार किया गया था. 2019 के आखिर तक इस योजना के अंतर्गत 5 करोड़ गरीब परिवारों में एलपीजी कनेक्शन उपलब्ध करवाने की योजना बनी. गरीब रेखा के नीचे गुजर बसर करने वालों के जीवन स्तर को उठाने की सरकार की ये बड़ी योजना है. स्वच्छता अभियान के तहत घर-घर में शौचालय का निर्माण और हर गांव तक बिजली की पहुंच जैसी महत्वाकांक्षी योजनाओं के साथ उज्ज्वला योजना के जरिए एक बड़े वंचित वर्ग तक सुविधाएं पहुंचाने की सरकारी पहल है. जमीनी स्तर पर इसकी कामयाबी के निशान भी दिखते हैं.
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पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर के एक छोटे से गांव सोनटा की रहने वाली सुरेनदरी देवी को कुछ महीने पहले ही इस योजना के जरिए एलपीजी गैस कनेक्शन मिला है. वो कहती हैं कि मई की चिलचिलाती गर्मी में अब लकड़ी के चूल्हे के आग और धुंए में खपना नहीं पड़ता. बारिश में चूल्हा गीला हो जाने पर खाना बनाना दुश्वार हो जाता था. अब इस झंझट से भी मुक्ति मिल गई है. गैस चूल्हे ने उनकी जिंदगी आसान कर दी है.
इसी गांव की रहने वाली कविता कहती हैं कि पहले खाना बनाने में कम से कम दो घंटे लगते थे. अब घंटेभर में ही काम निबट जाता है. बचे हुए टाइम में वो घर के बाकी काम कर लेती हैं. कभी बच्चों को पढ़ा लिया. कभी घर की साफ-सफाई कर ली. कभी कपड़े धो लिए. गांव की इन महिलाओं की जिंदगी में बदलाव देखा जा सकता है. अजय की नई-नई शादी हुई है. वो कहते हैं कि शादी के कुछ दिनों बाद ही उन्हें इस योजना के तहत गैस चूल्हा मिला. नई दुल्हन के लिए ये सबसे बड़ा तोहफा है. अब देर सवेर घर में किसी मेहमान के आने पर चाय बनाने के लिए सोचना नहीं पड़ता. बदलाव की ऐसी कई कहानियां हैं. बदलाव की इन्हीं कहानियों ने योजना को विस्तार दिया है.
कामयाबी देखकर बढ़ाई गई लाभान्वितों की संख्या
उज्ज्वला योजना के लागू होने से पहले यानी अप्रैल 2016 तक विभिन्न राज्य सरकारों की योजना के अंतर्गत 1.6 करोड़ एलपीजी कनेक्शन गरीबी रेखा के नीचे के परिवारों को दिया जा चुका था. मई 2016 में उज्ज्वला योजना के अंतर्गत 3 साल के भीतर 5 करोड़ गैस कनेक्शन बांटने की महत्वाकांक्षी योजना बनी.
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योजना ट्रैक पर है इसे समझने के लिए कुछ आंकड़े काफी हैं. 5 करोड़ परिवारों तक पहुंचने वाली योजना का 70 फीसदी टारगेट योजना के लिए प्रस्तावित कुल टाइम के दो तिहाई वक्त में ही पूरा कर लिया गया. 2016-17 में कुल मिलाकर जितने नए एलपीजी कनेक्शन दिए गए, उसमें 60 फीसदी नए कनेक्शन उज्ज्वला योजना के तहत थे. कामयाबी के इन्हीं आंकड़ों के बाद सरकार ने योजना की अवधि एक साल के लिए और बढ़ाकर इसके अंतर्गत तीन करोड़ और परिवारों को जोड़ने का लक्ष्य रख दिया.
सोशियो इकोनॉमिक कास्ट सेंसस डाटा के जरिए गरीब परिवारों की पहचान की गई. इस योजना के लिए सरकार ने शुरुआती तौर 8 हजार करोड़ रुपए का आवंटन किया था. लेकिन फरवरी में इस योजना का विस्तार करते हुए सरकार ने 5 करोड़ के बजाए 8 करोड़ परिवारों तक इसे पहुंचाने का लक्ष्य रखा और योजना में 4800 करोड़ रुपए और डाले गए. सरकार का लक्ष्य मार्च 2020 तक 8 करोड़ परिवारों तक एलपीजी गैस कनेक्शन पहुंचाने का है.
(पार्ट-2 में जानिए इस योजना को लेकर जमीनी स्तर पर कैसी समस्याएं सामने आ रही हैं )
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