सीबीआई के 55 साल के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि पद पर रहते हुए एक डायरेक्टर को उसके पद से हटा दिया गया हो. आलोक वर्मा के सीबीआई के डायरेक्टर पद से हटते ही नए डायरेक्टर की खोज शुरू हो गई है. बता दें कि सीबीआई डायरेक्टर के लिए सेलेक्ट कमिटी ने चयन का काम शुरू कर दिया है. केंद्र सरकार ने 20 अधिकारियों की सूची शार्टलिस्ट कर ली है.
1983 बैच से लेकर 1985 बैच के आईपीएस अधिकारियों में अगले सीबीआई डायरेक्टर की खोज शुरू भी हो गई है. सीबीआई डायरेक्टर के लिए जिन नामों को प्रमुखता से लिया जा रहा है उनमें एनआईए के डीजी और असम-मेघालय कैडर के 1984 बैच के आईपीएस अधिकारी वाईसी मोदी, 1984 बैच के यूपी कैडर के आईपीएस अधिकारी और बीएसएफ के डीजी रजनीकांत मिश्रा, गुजरात के डीजीपी और 1983 बैच के आईपीएस अधिकारी शिवानंद झा और 1984 बैच के आईपीएस अधिकारी और सीआईएसएफ के डीजी राजेश रंजन का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है.
सेलेक्ट कमिटी ने सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा को पद से हटा दिया
बता दें कि बीते गुरुवार शाम आखिरकार सेलेक्ट कमिटी ने सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा को उनके पद से हटा ही दिया. सेलेक्ट कमिटी का यह फैसला वर्मा के खिलाफ 2-1 से लिया गया. सेलेक्ट कमिटी में शामिल पीएम मोदी और न्यायाधीश एके सिकरी ने जहां आलोक वर्मा को हटाने के फैसले का समर्थन किया तो वहीं नेता प्रतिपक्ष मिल्लिकार्जुन खड़गे ने इस फैसले पर अपनी असहमति जताई. सेलेक्ट कमिटी की बैठक में खड़गे ने कहा कि आलोक वर्मा को नहीं हटाया जाना चाहिए बल्कि, उनका कार्यकाल 77 दिन और बढ़ा देना चाहिए. खड़गे का तर्क था कि क्योंकि इस अवधि के दौरान उनको सरकार ने जबरन छुट्टी पर भेज दिया था इसलिए उनका अधिकार बनता है कि वह अपना कार्यकाल पूरा करें.
ऑडियो टेप में सीबीआई के अधिकारी को पैसा सौंपे जाने का जिक्र है
दूसरी तरफ सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा सीबीआई में बैठकर एक के बाद एक नोटिस निकाल रहे थे. सरकार में बैठे एक वरिष्ठ अधिकारी की इससे चिंता बढ़ने लगी थी. आखिरकार सीवीसी और रॉ के अधिकारी पीएमओ बुलाए गए. काफी देर मंथन के बाद सीवीसी के अधिकारी पीएमओ से चले गए. सूत्रों का कहना है कि सरकार ने एक ऑडियो टेप का हवाला देकर आलोक वर्मा पर शिकंजा कस दिया. कहा जा रहा है कि उस ऑडियो टेप में सीबीआई के नंबर वन अधिकारी को पैसा सौंपे जाने का जिक्र किया जा रहा है. जांच एजेंसियों का साफ कहना था कि जिस अधिकारी के बारे में पैसे की लेन-देन की बात चल रही है वह अधिकारी आलोक वर्मा ही हैं. केंद्र सरकार ने रॉ द्वारा इंटरसेप्ट उस ऑडियो टेप को आलोक वर्मा के लिए अपने अंतिम अस्त्र के तौर पर इस्तेमाल किया और उसी ऑडियो टेप ने वर्मा का काम तमाम कर दिया.
बस्सी को अंडमान से मंगलवार शाम को ही दिल्ली बुला लिया गया
सूत्र बताते हैं कि केंद्र सरकार नहीं चाहती थी कि रॉ के उस आडियो टेप के बारे में सेलेक्ट कमिटी में भी चर्चा की जाए. खासकर नेता प्रतिपक्ष को रॉ उस टेप के बारे में बताना नहीं चाहती थी. इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि अगर इस टेप की बात सार्वजनिक हो जाती तो सीबीआई जैसी संस्थाओं पर से लोगों को विश्वास उठ जाएगा. साथ ही सीबीआई की साख पर बहुत बड़ा धब्बा लगता लेकिन आखिरकार केंद्र सरकार को वह कदम उठाना ही पड़ा, जिसमें खुद सीबीआई की वर्षों तक बदनामी होती रहेगी. बता दें कि बुधवार को चार्ज लेते ही वर्मा ने अपने करीबी एक-एक अधिकारियों को दोबारा से सीबीआई में लाने के लिए ऑर्डर पर ऑर्डर निकालना शुरू कर दिया. सिर्फ इतना ही नहीं छुट्टी पर भेजे गए सीबीआई के स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना के केस की जांच करने वाले अधिकारी बस्सी को अंडमान से बीते मंगलवार शाम को ही दिल्ली बुला लिया गया.
CJI रंजन गगोई ने आलोक वर्मा के पिटिशन पर फैसला दिया था
आलोक वर्मा की हर हरकत को लेकर सरकार की इंटेलिजेंस सतर्क और चौकस थी. वर्मा की हर गतिविधि और एक-एक एक्शन पर सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी की नजर थी. जानकार बताते हैं कि वर्मा की विदाई की पटकथा बीते बुधवार रात को सेलेक्ट कमेटी में तय हो गई थी, जब मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगई ने अपने जगह न्यायाधीश ए के सिकरी को सेलेक्ट कमिटी की बैठक में भेज दिया था. इसके पीछे का कारण है कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गगोई ने सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा के पिटिशन पर फैसला दिया था, इसलिए उन्होंने सेलेक्ट कमेटी की बैठक में अपने आपको अलग रखा. सीबीआई के नए निदेशक की बहाली में अब चीफ जस्टिस रंजन गगोई की भूमिका महत्वपूर्ण होने जा रही है क्योंकि वो निदेशक बहाली को लेकर होने वाले पैनल की बैठक में भाग लेंगे.
वर्मा का सीबीआई डायरेक्टर बनना भी कम आश्चर्य नहीं था
बता दें कि सेलेक्शन कमेटी में तीन सदस्य हैं जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे शामिल हैं.अगर बात करें सीबीआई में गुटबाजी शुरू होने की तो वह पिछले साल मार्च-अप्रैल महीने से ही शुरू हो गई थी. इसके पीछे जानकार तर्क देते हैं कि वर्मा का सीबीआई डायरेक्टर बनना भी कम आश्चर्य नहीं था. 1979 बैच का एक आईपीएस अधिकारी जो पहले कभी बिना सीबीआई में काम किए और अपने रिटायरमेंट से कुछ ही महीने पहले सीबीआई डायरेक्टर बन जाता है और उस बंगले से महीनों दूर रहता है जो सीबीआई डायरेक्टर का आधिकारिक बंगला है. सीबीआई डायरेक्टर बनने की पूरी कहानी इसी से साबित हो जाती है. इसके पीछे वह कहानी समझ में आ जाती है, जिस शर्त के साथ वह कुर्सी पर बैठे थे.
वर्मा उस लॉबी में फंस गए जिसका हर सरकार में विरोध करना ही काम है
आलोक वर्मा को करीब से जानने वाले एक पूर्व आईपीएस अधिकारी फर्स्टपोस्ट हिंदी से बात करते हुए कहते हैं, सीबीआई डायरेक्टर के कार्यकाल के आखिरी समय में उनके अंदर एक आईपीएस अधिकारी होने का भूत जाग गया. आलोक वर्मा उस लॉबी में फंस गए जिसका हर सरकार में सिर्फ विरोध करना ही काम है. वह हर सरकार में अपनी पूछ साबित करवाना चाहता है.
उस एक्टविस्ट को दो-तीन ऐसे नेताओं का भी साथ मिला जिसकी राजनीति ही मोदी विरोध पर थी. वर्मा उन लोगों के ट्रैप में फंस गए और बचीखुची प्रतिष्ठा भी गंवा बैठे. अब वह सुप्रीम कोर्ट भी नहीं जा सकते. उनको लॉलीपॉप दिया गया और वह महान बनने के चक्कर में अपनी फजीहत करा लिए. वर्मा ने भी बहकावे में आकर मोदी सरकार के खिलाफ मुहिम में सांकेतिक सपोर्ट कर आग में घी डालने का काम कर दिया. ऐसी भी खबर आ रही है कि वर्मा ने हिम्मत दिखाते हुए पीएम मोदी से भी राकेश अस्थाना के नाम पर सौदा करना चाहा.
राकेश अस्थाना और ए के शर्मा गुजरात कैडर के ही अधिकारी हैं
बता दें कि आलोक वर्मा ने गुजरात कैडर के ही एक आईपीएस अधिकारी ए के शर्मा को अपने पाले में कर बड़ा ही सेफ गेम खेलना शुरू कर दिया था. राकेश अस्थाना और ए के शर्मा गुजरात कैडर के ही अधिकारी हैं. दोनों को करीब से जानने वाले कहते हैं कि दोनों अधिकारियों ने हमेशा से ही सत्ता के नजदीक रहने के लिए एक-दूसरे का रास्ता रोकने का काम किया है. केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद दोनों में सीबीआई में पहले कौन आता है उसकी होड़ शुरू हो गई थी. हालांकि, आगे-पीछे दोनों अधिकारी सीबीआई में आ तो गए पर दोनों अपनी पुरानी आदतों से बाज नहीं आए. दोनों की अदावत जो गुजरात में थी वह दिल्ली में बरकरार रही.
कोई भी सत्तारुढ़ सरकार कभी भी अपनी पकड़ ढीली नहीं करना चाहती
दोनों अधिकारी ये भूल गए कि यह गुजरात नहीं देश की सत्ता है और सीबीआई जैसी उस संस्था में वह काम करते हैं जिसकी हर गतिविधि विपक्ष के निशाने पर रहती है. कोई भी सत्तारुढ़ सरकार कभी भी अपनी पकड़ ढीली नहीं करना चाहती है. कुल मिलाकर दो अधिकारियों की गुजरात से शुरू हुई रार पीएम मोदी को दिल्ली तक फजीहत करा गई. इस लड़ाई में अपने को वफादार साबित करने में दोनों अधिकारियों ने खुद अपना ही नुकसान कर लिया. सरकार की इतनी फजीहत के बाद नहीं लगता है कि दोनों अधिकारी अब सीबीआई में रह पाएंगे? ऐसे में चर्चा शुरू हो गई है कि वह कौन अधिकारी होगा, जो सीबीआई का अगला डायरेक्टर बनने जा रहा है.
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