देश के कुछ सबसे पिछड़े राज्यों में शुमार यूपी, मध्य प्रदेश, राजस्थान और ओडिशा वगैरह विकास की दौड़ में भले पिछड़ रहे हों मगर देश की आधी आबादी के यौन उत्पीड़न के लिए टेक्नोलॉजी के दुरुपयोग में बाजी मार रहे हैं. औरतों के यौन उत्पीड़न के वीडियो बनाकर उन्हें ब्लैकमेल करने और सोशल मीडिया पर डाल कर उन्हें कथित शर्मिंदा करने के ऐसे मामले यूपी, ओडिशा, मध्य प्रदेश और राजस्थान के साथ ही साथ मुंबई और दिल्ली में भी बढ़ रहे हैं. सोशल मीडिया के जरिए महिलाओं को ट्रोल करने, ब्लैकमेल करने, उनका फायदा उठाने, उन्हें ठगने-लूटने, उन्हें पटाकर यौन शोषण करने आदि जैसी तमाम वारदातें नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के ताजा आंकड़ों में भी शामिल हैं.
इन राज्यों में महिलाओं के यौन उत्पीड़न को स्मार्टफोन में कैद करके उसे सोशल मीडिया पर वायरल करने में ओडिशा जैसे पिछड़े राज्य के लगभग अनपढ़ लोग भी बंदर के हाथ में उस्तरे की कहावत चरितार्थ कर रहे हैं. यह वीडियो उन लड़कियों अथवा औरतों के हैं जो अपने रिश्ते के बाहर किसी मर्द के साथ दिखाई पड़ती हैं और स्वघोषित अलंबरदार उन्हें घेर कर उनके कपड़े फाड़ते और यौन उत्पीड़न करते हैं. ऐसी घिनौनी और आपराधिक हरकतों से ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर तक अछूती नहीं है.
जंगल के कानून जैसी इस हरकत से ओडिशा ही नहीं बल्कि पूरे देश की उन मासूम लड़कियों की बेइज्जती हो रही है जो अपने प्राकृतिक परिवेश में स्वच्छंदता से जीती आई हैं. ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर, बारीपाड़ा और बाड़गढ़ में भी बड़ी तदाद में ऐसी घटना हुई हैं. साल 2016 में ओडिशा औरतों पर लैंगिक अपराधों के मामले में देश में तीसरे नंबर पर पाया गया.
पिछड़े राज्यों में बढ़ रहे हैं महिलाओं के खिलाफ अपराध
नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो ने औरतों को निर्वस्त्र करने की गरज से उन पर आपराधिक बल प्रयोग से संबंधित आंकड़े 2014 में अलग से गिनने शुरू किए तो देश में 6412 ऐसे मामले पकड़ में आए. इनमें सबसे अधिक 18 फीसदी मामले अकेले ओडिशा में घटित हुए और 2016 में इनकी संख्या बढ़कर 22 प्रतिशत हो गई. इसे आपराधिक कार्रवाई ही दरअसल 2013 में भारतीय दंड संहिता की धारा 354 बी के तहत घोषित किया गया. ऐसा 2012 में निर्भया बलात्कार कांड पर मचे हो-हल्ले के बाद 2013 में किए गए संशोधन के बाद संभव हो पाया. यह संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध है. इसमें तीन से सात साल तक सजा हो सकती है.
देशभर में महिलाओं के प्रति अपराध के आंकड़ों में और भी चिंताजनक तथ्य यह भी मिला कि दलितों के उत्पीड़न के जितने मामले दर्ज होते हैं उनमें से ज्यादातर दलित औरतों अथवा लड़कियों की इज्जत पर हमले से संबंधित ही है. देशभर में दर्ज ऐसे तमाम मामलों में से एक-चौथाई अकेले यूपी में ही हुए. उसके बाद बिहार और फिर राजस्थान में सबसे अधिक संख्या में दलित महिलाएं बेइज्जत हुई हैं.
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देशभर में दलित उत्पीड़न के ऐसे 40,801 मामले साल 2016 में सामने आए जो 2015 के मुकाबले 2131 अधिक थे. इसी तरह महानगरों में दर्ज ऐसे मामलों की संख्या में भी सबसे ज्यादा लखनऊ फिर पटना और उसके बाद जयपुर में हुए हैं. गौरतलब है कि ओडिशा में भी आदिवासी औरतों का यौन उत्पीड़न कमोबेश दलितों जैसा ही हो रहा है. पिछले साल वहां 11 साल की आदिवासी बच्ची के बलात्कार से उसके मां बनने की त्रासदी पूरे देश को स्तब्ध कर ही चुकी है.
यौन-उत्पीड़न का वीडियो सोशल मीडिया पर डालने में ओडिशा अव्वल
आज से पांच साल पहले निर्भया कांड पर उबले गुस्से के बावजूद राजधानी दिल्ली में 2016 में बलात्कार के 1996 मामले और औरतों के खिलाफ अपराध के कुल 13803 मामले दर्ज हुए जबकि देश भर में बलात्कार के कुल 38947 मामले सामने आए. इन सिहराने वाले आंकड़ों से केजरीवाल और मोदी सरकार के महिला सुरक्षा के तमाम चुनावी वायदों का खोखलापन उजागर हो रहा है. महिलाओं पर अपराध के देश भर में दर्ज मामलों में यूपी ने 14.5 फीसदी दर्ज करके अव्वल नंबर पाया है जबकि बलात्कार के कुल मामलों में मध्यप्रदेश अव्वल और यूपी दूसरे नंबर पर है. लेकिन औरतों के यौन उत्पीड़न का वीडियो सोशल मीडिया पर डालने में ओडिशा ने सबको पीछे छोड़ दिया.
ओडिशा विधानसभा में पेश आंकड़ों के अनुसार भारतीय दंड संहिता की धारा 354 बी के सहारे ऐसे उत्पीड़न की शिकार बनी 93 महिलाओं ने 2016 में शिकायत दर्ज कराई है. उसके पिछले साल ऐसे 40 मामलों में शिकायत की गई थीं. लड़कियों और औरतों को अपने किसी पुरुष साथी के साथ देखकर उन पर लांछन लगाने अथवा उनके कपड़े फाड़ने और उनके यौन उत्पीड़न या बलात्कार की वजह ओडिशा ही नहीं बल्कि देश के तमाम गांवों और कस्बों में में अभी तक मर्दवादी-सामंतवादी मानसिकता कायम है. इसीलिए ऐसा कोई भी मौका कथित अलंबरदार हाथ से नहीं जाने देते. ऊपर से उनके हाथों में सस्ते स्मार्टफोन आ गए हैं जिनके प्रयोग से जुड़ी मर्यादा का उन्हें कतई भान नहीं है इसलिए वे उनका दुरुपयोग अपनी आपराधिक हरकत का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डालने के लिए कर रहे हैं.
डिजिटल इंडिया के मुहिम का कहीं उल्टा असर न हो
इससे साफ है कि स्मार्टफोन को सस्ता करके इंटरनेट यानी डिजिटल इंडिया का लाभ गांव-कस्बों तक पहुंचाने की मुहिम का उलटा नतीजा भी सामने आ रहा है. दिल्ली में निर्भया और मुंबई में महालक्ष्मी के शक्ति मिल बलात्कार कांड जैसी जघन्यतम वारदातों के अपराधियों को पकड़ने के लिए पुलिस ने जब दविश दी तो दोनों के ही मुल्जिम इंटरनेट पर पोर्नोग्राफी देखते पकड़े गए थे. इससे समाज के हरेक तबके के हाथों में इंटरनेट का बेरोकटोक प्रयोग कहीं-कहीं अफीम और समाज के लिए बेहद घातक भी साबित हो रहा है. ऐसे में समाजशास्त्रियों की यह चेतावनी मौजूं ही जान पड़ती है कि यदि देश के गांव-कस्बों तक इंटरनेट पहुंचाना है तो उस पर पोर्नोग्राफी की बेरोकटोक उपलब्धता और ऐसी सामग्री अपलोड करने पर कड़ा अंकुश लगाना होगा.
यह खतरा सिर्फ गांव-कस्बों ही नहीं बल्कि शहरों और दफ्तरों में मौजूद इंटरनेट कनेक्शनों पर भी बराबर मंडराता पाया गया है. सरकारी से लेकर निजी कंपनियों तक के दफ्तरों पर अनेक कर्मचारियों के इंटरनेट लगे कंप्यूटरों पर बेहिसाब अश्लील सामग्री पकड़ी गई है. इसे रोकने को अब तमाम दफ्तरों में पोर्नोग्राफी देखने या डाउनलोड करने से रोकने वाला सॉफ्टवेयर भी प्रयोग किया जा रहा है. बाकी को जानें भी दें तो देश के विधायी सदनों के सदस्य तक अपने स्मार्टफोन पर इंटरनेट के जरिए अश्लील सामग्री सरेआम देखते पाए गए हैं.
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इंडियन कंप्यूटर इमरजेंसी रेस्पांस टीम के अनुसार 2017 में जनवरी से जून महीने के बीच ही साइबर अपराध के कुल 27,482 मामले देशभर में सामने आ चुके. इस लिहाज से सालभर में यह आंकड़ा 50,000 की संख्या पार कर जाएगा. इनमें करीब आधे मामले में ऑनलाइन महिला उत्पीड़न के होने का अनुमान है. अफसोस यह है कि इनमें से 74 फीसदी मामले में कोई सजा नहीं हो पाई. इस लिहाज से सोंचे तो इंटरनेट जहां कामकाज, कारोबार, आपसी संपर्क को आसान बना रहा है वहीं तमाम पिछड़े तबकों, खासकर महिलाओं के लिए नुकसानदेह भी साबित हो रहा है.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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