नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) आदेश जारी कर रहा है और आदेश संबंधी सिफारिशें कर रहा है. अदालत द्वारा दिलचस्प किस्म के नए-नए प्रतिबंध तय और लागू किए जा रहे हैं. जब प्रदूषण चरम पर होता है, तो यह अपने मिजाज और मानव स्वास्थ्य पर इसके बुरे असर, दोनों रूपों में नजर आता है. लिहाजा, राष्ट्रीय स्तर पर फोकस, न्यायिक प्राथमिकता, समय और पैसा सब कुछ इसमें झोंका जाता है. हालांकि, स्मॉग साफ होने के बाद हरित नीतियों को लेकर गतिविधियां नहीं के बराबर रह जाती हैं.
आनन-फानन भरे फैसले से औद्योगिक इकाइयों पर पड़ रही मार
इस मौसमी और आखिरी वक्त में गवर्नेंस दिखाने का प्रकोप अगर कोई एक सेक्टर झेल रहा है तो वह औद्योगिक क्षेत्र है. हाल में उत्तर पश्चिम दिल्ली के दो औद्योगिक क्षेत्रोंः नरेला और बवाना की 300 औद्योगिक इकाइयों को बंद कर दिया गया. इन इकाइयों को इसलिए बंद किया गया, क्योंकि इकाइयों ने पाइप नेचुरल गैस (पीएनजी) संबंधी बदलाव नहीं किया था.
दोनों औद्योगिक क्षेत्रों से जुड़ी ट्रेडर्स एसोसिएशंस के सदस्यों ने गुरुवार शाम दिल्ली के पर्यावरण मंत्री इमरान हुसैन से मुलाकात की.
फ़र्स्टपोस्ट की टीम ने इस मुलाकात का हिस्सा रहे कारोबारियों और प्रतिनिधियों से बात की. बवाना के कारोबारी राजीव गोयल ने बताया, 'दिल्ली पॉल्यूशन कंट्रोल कमीशन (डीपीसीसी) ने बीते 29 अक्टूबर को 291 औद्योगिक इकाइयों को सील कर दिया. इन इकाइयों ने पीएनजी में बदलाव को लेकर कमीशन की नोटिसों का जवाब नहीं दिया था.' उद्योग जगत के प्रतिनिधियों ने मंत्री के सामने जिन मुद्दों को उठाया, उनमें प्राइवेट कंपनियों द्वारा निरीक्षण और सुरक्षा संबंधी जांच के कारण पीएनजी कनेक्शन मिलने में देरी और बवाना इंफ्रा द्वारा कचरे को नहीं हटाने की समस्या आदि शामिल थे. बवाना इंफ्रा स्ट्रीट लाइट और नाली के रखरखाव आदि मामलों के जरिये नगर निकाय प्रबंधन और पुनर्विकास के लिए जिम्मेदार है.
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कचरे से बिजली तैयार करने वाले प्लांट में भी MCD का अड़ंगा
नरेला के ट्रेडर्स ने एक अहम मुद्दा उठाते हुए बताया कि एमसीडी ने कचरे से ऊर्जा तैयार करने वाले प्लांट रैमकी एनवायरो इंजीनियर्स को औद्योगिक कचरा इकट्ठा करने से रोक दिया था और हाल में पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण कमेटी के चेयरमैन भूरे लाल ने इसे हरी झंडी दी है. ऐसी परिस्थिति में गलियों में और सड़कों पर कचरे का ढेर इसलिए भी लग रहा है, क्योंकि दोनों क्षेत्रों में लैंडफिल्स को भी कचरा स्वीकार करने से मना कर दिया गया था. ट्रेडर्स ने बताया कि उनके अनुरोध पर मंत्री ने उद्योगों के लिए नए पीएनजी कनेक्शन पर 50,000-1,00,000 रुपए की सब्सिडी का वादा किया. दिल्ली फैक्ट्री ओनर्स फेडरेशन के प्रेसिडेंट प्रदीप मुल्तानी का कहना था कि नरेला और बवाना दोनों जगहों पर लघु, छोटी और मध्यम इकाइयां जिम्मेदार और अधिकृत औद्योगिक क्षेत्र हैं. साथ ही, ये नेचुरल गैस में अपनी इकाइयों को बदलने को पूरी तरह से इच्छुक हैं.
उन्होंने बताया, 'पीएनजी में बदलाव से संबंधित सब्सिडी की प्रक्रिया को भी तेज किया जाना चाहिए. हम इस मुद्दे को लेकर कई बार दिल्ली सरकार को चिट्ठी लिख चुके हैं.' मुल्तानी ने इस सिलसिले में इमरान हुसैन को लिखी गई चिट्ठी की कॉपी भी पत्रकारों को दिखाई.
ट्रेडर्स पीएनजी के लिए उस वक्त से सब्सिडी की मांग कर रहे हैं, जब इस साल के शुरू में डीजल से इस (पीएनजी) सिस्टम में बदलाव करना जरूरी कर दिया गया था.
पीएनजी मिनिमम चार्ज से उद्योग पर बढ़ता है बोझ
बवाना में ट्रेडर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट प्रकाश चंद ने बताया कि पीएनजी का न्यूनतम शुल्क उद्योग पर बोझ बढ़ाता है और हमें बिजली के लिए भी न्यूनतम शुल्क का भुगतान करना पड़ता है और इस वजह से उत्पादन लागत काफी हद तक बढ़ जाती है.
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इंद्रप्रस्थ गैस लिमिटेड (आईजीएल) के पास प्रशासनिक लागत की रिकवरी के लिए बिल में न्यूनतम शुल्क लगाने का अधिकार है. मौजूदा नियमों के मुताबिक, अगर हर पखवाड़े के बिलिंग साइकल में खपत 4 एससीएम से कम है, तो उपभोक्ता को 4 एससीएम वैल्यू के बराबर न्यूनतम शुल्क का भुगतान करना पड़ता है. चंद का कहना था कि अनधिकृत क्षेत्रों में लोग अवशिष्ट औद्योगिक तेल और केरोसिन मिला हुआ फर्नेस ऑयल जला रहे हैं, लेकिन पुलिस उन्हें इसलिए नहीं पकड़ती है, क्योंकि इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है. उन्होंने कहा कि आईजीएल की पहली प्राथमिकता बवाना प्रगति पावर को पीएनजी की सप्लाई करना है. उसके बाद घरेलू कनेक्शनों को सप्लाई देने और आखिर में ओद्योगिक इकाइयों की आपूर्ति का नंबर आता है. बवाना प्रगति पावर बिजली पैदा करती है. ट्रेडर्स यह भी पूछ रहे हैं कि क्या इन दोनों क्षेत्रों में सघन आबादी वाले रिहायइशी इलाकों में पीएनजी में कन्वर्जन हुआ है या पर्यावरण के अनुकूल चलन की जिम्मेदारी सिर्फ उनकी बिरादरी की है?
एनजीओ-जनसेवा प्रयास के हर्ष खन्ना ने बताया, 'अवैध कॉलोनियों में जहां एक रूम का रास्ता दूसरे से होकर जाता है, वैसे मकान पीएनजी कनेक्शन के लिए उपयुक्त नहीं माने जाते हैं. साथ ही, इसके लिए एग्जॉस्ट और अन्य चीजों की भी जरूरत होती है. इसके अलावा, लोगों को इसके विभिन्न फायदों के बारे में भी जानकारी दिए जाने की आवश्यकता है.' इस एनजीओ ने पश्चिमी दिल्ली के पटेल नगर में कैंपस स्थापित किया और कई घरों में पीएनजी लगाने के लिए ढांचागत बदलाव का भी सुझाव पेश कर चुकी है.
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सरकार को फैसले लेने में होता है काफी विलंब
उद्योगों के लिए पर्यावरण के ज्यादा से ज्यादा अनुकूल ईंधन का नियम लागू करने में राज्य और केंद्र सरकार को स्मॉग के तीन सीजन लग गए. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवयारमेंट (सीएसई) में वायु प्रदूषण और स्वच्छ परिवहन कार्यक्रम की प्रमुख अनुमिता रॉयचौधरी ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया कि इस साल जून में दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में प्रदूषण के सभी प्रमुख स्रोतों के लिए व्यापक एक्शन प्लान की खातिर दीर्घकालिक रणनीति तैयार की गई थी. उन्होंने कहा, 'इसे अंतिम रूप देने और इसके नोटिफिकेशन में थोड़ी देरी हुई.' उनका यह भी कहना था कि इस रणनीति के कुछ हिस्सों को लागू भी किया जा चुका है.
मसलन, पेट कोक और फर्नेस ऑयल पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है, दिल्ली में भारत स्टेज (VI) फ्यूल पेश किया जा चुका है, ईंटों के भट्ठों को पर्यावरण के अनुकूल तकनीक को अपनाने के लिए कहा गया है और बदरपुर में मौजूद बेहद प्रदूषणकारी थर्मल पावर पावर प्लांट आखिरकार बंद होने की कगार पर है. भविष्य में भी इस तरह के नियमों का सिलसिला उद्योगों में पूरी तरह से कायम रह सकता है, लेकिन इसे लागू करने के लिए कई राज्य सरकारों के सहयोग का होना बेहद जरूरी है.
शिकागो यूनिवर्सिटी के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट की इसी साल यानी 2018 में पेश रिपोर्ट 'भारत की हवा साफ करने की दिशा में रोडमैप' में महत्वपूर्ण टिप्पणी की गई हैः 'केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने 2014 में ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले 17 श्रेणी के उद्योगों में कारखानों और इसके इकाइयों से निकलने वाले धुओं की लगातार निगरानी वाला सिस्टम लगाना जरूरी कर दिया था. सीईएमएस रियल टाइम एमिशन डेटा के साथ रेगुलेटर्स को सप्लाई कर सकता है.'
रिपोर्ट में कहा गया कि सीएमएस टेक्नोलॉजी की वैल्यू को ज्यादा से ज्यादा करने के लिए बड़े पैमाने पर क्षमता निर्माण के लिए प्रयास करने की जरूरत है. इससे सार्वजनिक खुलासा, मौद्रिक शुल्क और एमिशन ट्रेडिंग जैसे पॉलिसी विकल्पों का प्रभाव बढ़ाने में मदद मिल सकती है. दिलचस्प यह है कि केंद्र सरकार की राष्ट्रीय स्वच्छ हवा योजना में एमिशन इनवेंट्री को सार्वजनिक नहीं किया गया है. नरेला और बवाना में एक ही जगह पर इकट्ठा इकाइयों के उलट जो अन्य उद्योग दिल्ली-एनसीआर की सड़कों पर बिखरा पड़ा है, वह निर्माण क्षेत्र है. दिल्ली सरकार ने 1 से 10 नवंबर तक निर्माण संबंधी सभी तरह की गतिविधियों पर पाबंदी लगा दी है.
डीपीसीसी के मुताबिक, निर्माण और तोड़-फोड़ संबंधी गतिविधियों से निकली कचरा सामग्री को खुले में रख देना वायु प्रदूषण फैलाने में काफी अहम है. खास तौर पर पीएम 10 और पीएम 2.5 के कणों के मामले में इसका प्रमुख योगदान है.
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डीपीसीसी ने इस साल अप्रैल में निर्देश जारी कर पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट (पीडब्ल्यूडी) से कहा था कि कंस्ट्रक्शन और संबंधित स्थान पर तोड़-फोड़ से निकले कचरे को इस तरह से रखा जाए, ताकि यह कम से कम प्रदूषण फैला सके.
जानकारों का मानना है कि वैसे ठेकदारों पर पूरे साल जुर्माना लगाने की जरूरत है, जो अपने कच्चे माल को (विशेष तौर पर ढुलाई के दौरान) नहीं ढकते हैं और कचरे के निपटाने के लिए नियमों का पालन नहीं करते हैं, क्योंकि निर्माण संबंधी कचरा आसानी से नष्ट नहीं होता. ठोस कचरा प्रबंधन नियम 2016 में निर्माण और तोड़-फोड़ संबंधी कचरे की जटिलता को लेकर एक सेक्शन था और इसके बाद दिल्ली के शास्त्री पार्क में आईएलएंडएफएस के साथ पब्लिक-पार्टनरशिप आधार पर कचरा प्लांट भी स्थापित किया गया था. हालांकि, इसके आसपास कचरा निपटाने की एकीकृत प्रणाली तैयार करने में वक्त लग सकता है. कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि आखिरी वक्त में किए गए उपाय रोग को दबा सकते हैं, उसे ठीक नहीं कर सकते.
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