दो हजार के नकली नोट, नया नोट जारी होने के कुछ दिनों के बाद से ही पकड़े जाने लगे थे. नकली नोटों की पहली खेप पिछले साल नवंबर में गुजरात में पकड़ी गई थी.
अब खबरें आ रही हैं कि देश के अलग-अलग हिस्सों से दो हजार के नए नोटों की नकल की खेप पकड़ी गई है. हमें बताया गया था कि नोटबंदी का फैसला, ऐसे नकली नोटों के खात्मे के लिए ही किया गया था. मगर ये दावा गलत साबित हुआ.
नोटबंदी हिंसा रोकने में कारगर नहीं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के अलग-अलग इलाकों में हिंसा के लिए नकली नोटों को भी जिम्मेदार बताया था. उन्होंने कहा था कि नोटबंदी का फैसला आतंकवाद और हिंसा को रोकने में मददगार साबित होगा.
नोटबंदी का फैसला सर्दियों में लागू किया गया. ठंड के दिनों में कश्मीर में सुरक्षा बलों के खिलाफ आतंकवादी घटनाओं में गिरावट आती है. लेकिन अब जबकि बर्फ पिघल रही है, घाटी में हिंसक वारदातें बढ़ती जा रही हैं. ऐसा हर साल होता है. नोटबंदी के चलते आतंकवाद की कमर टूटने के जो दावे किए गए थे, वो अब गलत साबित हो रहे हैं.
पिछले दिनों आतंकवादी घटनाओं में एक मेजर समेत चार जवान शहीद हो गए. नोटबंदी की वजह से आतंकवादी घटनाओं में कोई गिरावट नहीं आई है. सेना के लिए ये एक झटका है, क्योंकि सेना को बताया गया था कि नोटबंदी से आतंकवादी कमजोर होंगे. सेना पर उनके हमले कम होंगे. मगर ऐसा नहीं हुआ.
सेनाध्यक्ष का बयान बढ़ा रहा केंद्र की मुश्किलें
बढ़ती हिंसा से नाराज सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत ने बयान दिया है कि स्थानीय लोग, आतंकवादियों की मदद कर रहे हैं. वो आतंकियों के खिलाफ सेना के ऑपरेशन में बाधा डाल रहे हैं और उन्हें भागने में मदद कर रहे हैं. चिंता की बात ये है कि सेनाध्यक्ष ने कहा है कि जो भारतीय नागरिक, पाकिस्तान और इस्लामिक स्टेट का झंडा लहराएंगे, वो देशद्रोही माने जाएंगे और सेना उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करेगी.
अगर सेनाध्यक्ष और उनके सैनिक किस नागरिक को वो करता देखेंगे, जिसे वो अपराध मानते हैं, तो, उन्हें इसकी जानकारी जम्मू-कश्मीर पुलिस को देनी चाहिए. नारेबाजी करने वालों और झंडे लहराने वालों के खिलाफ कार्रवाई का संवैधानिक अधिकार नहीं है.
अपने बयान से सेनाध्यक्ष जनरल रावत ने उस राज पर से भी पर्दा उठा दिया है, जो शायद देश के बहुत से नागरिक नहीं जानते थे. वो ये कि कश्मीरी हमारी सेना को कितना नापसंद करते हैं, नफरत करते हैं.
जनरल रावत ने कहा कि, 'जब हम आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई कर रहे होते हैं, तो स्थानीय लोग उनकी मदद करते हैं. इससे सेना के ऑपरेशन में बाधा पहुंचती है'.
केंद्र सरकार के लिए ये बेहद फिक्र की बात होनी चाहिए क्योंकि केंद्र में सरकार चला रही बीजेपी, जम्मू-कश्मीर सरकार में भी साझीदार है. ये यकीन करना अलग है कि सीमा पार से लोग कश्मीर में हिंसा फैलाने के लिए भेजे जा रहे हैं. वहीं ये अलग बात है कि कश्मीर का पूरा अवाम ही आपके खिलाफ है. अब ये सही है या गलत, मगर जनरल रावत यही बात खुले तौर पर मान रहे हैं.
उन्होंने कहा, 'हमारी कोशिश होती है कि जनता के हितों का ध्यान रखते हुए कार्रवाई करें, मगर स्थानीय लोग अक्सर हमारे काम में बाधा डालते हैं और आतंकियों को भागने में मदद करते हैं...यही वजह है कि हमारे ज्यादा जवान शहीद हो रहे हैं'.
बीजेपी-कांग्रेस कुछ अलग नही हैं
अब बीजेपी और कांग्रेस, सेनाध्यक्ष के बयान पर लड़ रहे हैं. हालांकि, हमने पिछले तीस सालों में देखा है कि इस मुद्दे पर दोनों ही पार्टियों में बहुत ज्यादा फर्क नहीं है.
कश्मीर में हिंसा के ताजा दौर में कुछ भी नया नहीं. वो इसलिए भी कि केंद्र सरकार हो या भारत के दूसरे हिस्सों के लोग, किसी का रवैया कश्मीर को लेकर जरा भी नहीं बदला है.
इसी हफ्ते एक कश्मीरी युवक को दिल्ली में बम धमाके के आरोप से बरी कर दिया गया. क्योंकि घटना वाले दिन वो वारदात की जगह पर नहीं, अपने कॉलेज में था. ये बम धमाका 2005 में हुआ था. तब केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी, न कि नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार.
हमें समझना होगा कि कश्मीर में हिंसा का समाधान नोटबंदी से नहीं हो सकता. इसकी जड़ें बहुत गहरी हैं.
सेनाध्यक्ष मामले को समझ रहे हैं?
अफसोस की बात है कि नए सेनाध्यक्ष ये बात नहीं समझते हैं. उन्होंने कश्मीरियों के बारे में अपने बयान में कहा था, 'हम उन लोगों को मारना नहीं चाहते. हम उन्हें मुख्य धारा में लाना चाहते हैं. लेकिन वो आतंकवाद के रास्ते पर ही चलना चाहते हैं, तो, हम उन्हें निशाना बनाएंगे, उनसे और सख्ती से निपटेंगे'.
सवाल ये है कि सेनाध्यक्ष और कैसी सख्ती कश्मीरियों के साथ करेंगे? ऐसा क्या करेंगे जो हम पहले नहीं कर चुके हैं? हम भीड़ को भगाने के लिए पहले ही पैलेट गन इस्तेमाल कर चुके हैं. जिससे सैकड़ों लोग अंधे हो गए. हम बिना सोचे समझे उन पर केस कर रहे हैं. हम पूरे कश्मीरी अवाम को अपराधी समझते हैं.
नोटबंदी से और जिन भी मोर्चों पर हम कामयाबी के दावे करें, मगर आतंकवाद को कमजोर करने में ये पूरी तरह नाकाम रही है. हमें ये बात मान लेनी चाहिए. और हमें ऐसे समाधान तलाशने की कोशिश करनी चाहिए, जो आतंकवाद को करेंसी की समस्या न समझें. और जिसमें हम बाहरी ताकतों के दखल के साथ-साथ अंदरूनी नाखुशी को भी समझें और उसे दूर करने की कोशिश करें.
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