सेंट्रल दिल्ली में गर्म दुपहरी में माथे से पसीना पोंछते हुए सुनील कहते हैं, '67 सीटें लेकर जीता है केजरीवाल, उसकी मांगें हम सबकी मांगें हैं.' सुनील वाल्मीकि समाज से ताल्लुक रखते हैं. 2001 की जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि वाल्मीकि समाज दूसरी सबसे बड़ी जाति है. इनकी आबादी पांच लाख 221 है. आबादी का 80 फीसदी से अधिक सफाई और हाथ से कचरा साफ करने का काम करता है.
सुनील कहते हैं कि अगर प्रधानमंत्री का जोर स्वच्छता पर है तो फिर भारत को स्वच्छ बनाने वाली केंद्र सरकार की प्राथमिकता में हम क्यों नहीं हैं? दिल्ली नगर निगम पर पिछले 15 सालों से भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है और सेंट्रल दिल्ली के मिंटो रोड पर एमसीडी के चमकीले मुख्यालय पर 16 मार्च से से लेकर कुछ दिन पहले तक सफाई कर्मचारी धरने पर बैठे थे. स्वतंत्र मजदूर संयुक्त मोर्चा के बैनर तले 22 यूनियन इस विरोध-प्रदर्शन में शामिल हुए थे.
विरोध-प्रदर्शन की अगुवाई करने वाले और संगठन में अहम ओहदा संभाल रहे रामराज ने फ़र्स्टपोस्ट से कहा कि दिल्ली में 80 फीसदी सफाई कर्मचारी वाल्मीकि समुदाय से हैं. ये सब चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी हैं, जो पर्यावरण संरक्षण सेवाएं (डीईएमएस) और लोक निर्माण विभाग में काम करते हैं.
उन्होंने खुलासा किया कि सफाई कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं दिया जाता है और एक दशक से अधिक समय से काम कर रहे 10 से 15 हजार कर्मचारियों को अब तक नियमित नहीं किया गया है.
दिल्ली को राज्य का दर्जा देने की केजरीवाल की मांग के समर्थन में रविवार को अलग-अलग क्षेत्रों से बसों में भरकर प्रदर्शनकारी मंडी हाउस पहुंचे थे. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडु, कर्नाटक के मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी और केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने राज निवास जाकर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मिलने की अनुमति मांगी थी. लेकिन उन्हें ये अनुमति नहीं मिली.
दिल्ली सफाई कर्मचारी आयोग (दिल्ली सफाई कर्मचारी आयोग कानून, 2006 के अंतर्गत साल 2006 में वैधानिक संस्था के तौर पर गठित) के अध्यक्ष संत लाल चावरिया ने फ़र्स्टपोस्ट से कहा कि 11 जुलाई, 2016 के हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद समय पर वेतन नहीं दिया जाता है. आदेश में कहा गया था कि दिल्ली के तीनों नगर निगम अपने सफाई कर्मचारियों को हर महीने की 10 तारीख या उससे पहले वेतन दें. आदेश के मुताबिक महीने का 11वां दिन छुट्टी का है तो अनुपालन रिपोर्ट महीने के 12वें दिन प्रस्तुत की जाए.
दुर्भाग्य से, कोर्ट की नजरों से वास्तविकता ओझल हो गई है. संत लाल कहते हैं कि वेतन मिलने में तीन महीने तक की देरी होती है. उन्होंने बताया कि करीब 20 हजार सफाई कर्मचारियों को नियमित करने का मामला लंबित है. चरणबद्ध तरीके से कर्मचारियों को स्थायी करने के लिए दो साल चुने गए हैं. जिन लोगों को एक अप्रैल 1994 से 31 मार्च 1996 के बीच काम पर रखा गया था, उन्हें 2010 में नियमित किया गया और 2003 से बकाया भुगतान किया गया.
जिन्हें एक अप्रैल 1996 और 31 मार्च 1998 के बीच काम पर रखा गया उन्हें 2012 में नियमित किया गया और 2004 से बकाया रकम मिली. संत लाल के मुताबिक इसके अलावा जो सफाई कर्मचारी एमसीडी के लिए काम करते हैं उन्हें टर्मिनल पेंमेंट लाभ या कैशलेस मेडिकल कार्ड नहीं मिला.
कैशलेस मेडिकल कार्ड से इन्हें बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं आसानी से मिल सकती हैं क्योंकि ये लोग लंबे समय तक गंदगी और दुर्गंध के बीच काम करते हैं. उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी सरकार ने सफाई कर्मचारियों के मुद्दों को अपने घोषणापत्र में शामिल किया और वाल्मीकि समुदाय से आने वाली राखी बिड़लान को डिप्टी स्पीकर बनाया और 2019 के लोक सभा चुनाव के लिए टिकट भी दिया है.
वाल्मीकि समाज एक्शन कमेटी और दिल्ली सफाई कर्मचारी एक्शन कमेटी के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष विरेंदर सिंह चूड़ीयाना ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया कि स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने तीनों नगर निगमों को कर्मचारियों को नियमित करने का आदेश पारित करने के लिए अप्रैल में चिट्ठी लिखी थी लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई. उनका कहना है कि सफाई कर्मचारी आयोग के पास कोर्ट के आदेश के अनुपालन के संबंध में एमसीडी के तीनों विभागों से सवाल पूछने का अधिकार है. उनके मुताबिक केंद्र सरकार की ओर से एससी/एसटी एक्ट को कमजोर करने की कोशिशों ने आग में घी का काम किया है.
इसमें एक मामला फंड रिलीज करने से भी जुड़ा है जिसे लेकर दिल्ली सरकार सवालों के घेरे में है. वाल्मीकि समाज से आने वाले राहुल बिड़ला ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका लगाई थी. उनका दावा था कि 2003 से एमसीडी कर्मचारियों को वेतन और पिछला बकाया नहीं मिल रहा है और इसलिए वो सड़कों से कचरा साफ नहीं कर रहे हैं. राहुल बिड़ला ने एमसीडी कर्मचारियों की चल रही हड़ताल में सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप की गुहार लगाई थी, लेकिन शीर्ष अदालत ने इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया. शीर्ष अदालत ने कहा था कि वो दिल्ली हाईकोर्ट का काम नहीं कर सकता.
राहुल ने लंबित फंड मंजूरी के तरीकों के बारे में विस्तार से बताया. उन्होंने कहा कि एमसीडी फंड के लिए दिल्ली सरकार पर निर्भर है और दिल्ली सरकार केंद्र पर. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और जस्टिस सी. हरिशंकर की खंडपीठ ने कहा कि उसके 16 अप्रैल के निर्देश पर कोई स्टे नहीं है.
16 अप्रैल के आदेश में कोर्ट ने चौथे दिल्ली फाइनेंस कमीशन (डीएफसी) की सिफारिशों के मुताबिक दिल्ली सरकार को एक महीने के अंदर रकम का भुगतान करने और इस आदेश का पालन करने को कहा था.
खंडपीठ का आदेश था, 'अहंकार मत कीजिए और ये मत कहिए कि चूंकि भारत सरकार पैसे नहीं दे रही है इसलिए आप भी नगर निगमों को बकाया भुगतान नहीं करेंगे.'
दिल्ली सरकार को एक नवंबर, 2017 से 31 मार्च 2018 तक की रकम का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था. कोर्ट ने कहा था कि सरकार (दिल्ली सरकार) अपने अधिकारों और विवादों के पूर्वाग्रहों के बिना दो नगर निगमों को पैसे ट्रांसफर कर सकती है.
कहानी का दूसरा पक्ष रखते हुए और केजरीवाल के प्रति समर्थन दोहराते हुए बिड़ला कहते हैं, 'आम आदमी पार्टी सरकार चौथे दिल्ली फाइनेंस कमीशन की सिफारिशों को इसलिए लागू नहीं कर पाई कि वो टैक्स नहीं बढ़ाना चाहती थी और न ही शिक्षा और स्वास्थ्य के ईद-गिर्द अपनी समाजवादी योजनाओं में खलल डालना चाहती थी.'
चौथे दिल्ली फाइनेंस कमीशन की रिपोर्ट दिल्ली कैबिनेट में रखी गई थी और इसे लेकर एक हलफनामा भी जारी किया गया था. वहीं, संत लाल सवा लाख एमसीडी कर्मचारियों की ओर से 27 जनवरी, 2016 से आठ फरवरी, 2016 के बीच किए गए प्रदर्शन को याद करते हैं. वो कहते हैं, '13 दिन की हड़ताल के दौरान मैं स्वतंत्र मजदूर मोर्चा का अध्यक्ष था. मैंने एमसीडी के भीतर 35 करोड़ का घोटाला उजगार किया था. इसमें 20 करोड़ रुपए की वो रकम भी शामिल है जो कॉन्ट्रैक्टर्स को दी गई. साथ ही एमसीडी अधिकारियों की फर्जी पेंशन के नाम पर 15 करोड़ रुपए की गड़बड़ी की गई. आम आदमी पार्टी सरकार ने बार-बार खातों की पारदर्शिता पर जोर दिया. अगर कोई ये स्वीकार करता है कि एमसीडी के पास पैसा नहीं है तो उसे पिछले कुछ सालों में एमसीडी के खर्चों की जांच भी करनी चाहिए.'
अरविंद केजरीवाल की ओर से कर्मचारियों को नियमित करने का मुद्दा दिल्ली विधान सभा में उठाए जाने से यह पक्ष और मजबूत होता है कि चूक दिल्ली सरकार की तरफ से नहीं बल्कि केंद्र सरकार की ओर से हुई है.
मुख्यमंत्री ने अपने भाषण में कहा था कि ये लोग 20 साल से काम कर रहे हैं और अब तक इन्हें स्थायी कर्मचारी बनाकर नियमित नहीं किया गया है. मुख्यमंत्री ने कहा कि कर्मचारियों के बच्चे बड़े हो गए हैं और अगर समय पर और पर्याप्त वेतन नहीं मिलता है तो उन्हें अपने बच्चों को कॉलेज में पढ़ाने और उनकी शादी करने जैसी जिम्मेदारी निभाने में मुश्किल आएगी.
उन्होंने आरोप लगाया था कि बीजेपी हमेशा से दलित विरोधी रही है और अगर एमसीडी की जिम्मेदारी आम आदमी पार्टी के पास होती तो स्थितियां जल्द बेहतर हो जाती.
जब ये कर्मचारी उमस भरे रविवार को बसों में भरकर दिल्ली को राज्य का दर्जा दिलाने की अरविंद केजरीवाल की मांग के समर्थन में सेंट्रल दिल्ली आए तो उनके चेहरे पर निराशा स्पष्ट थी.
सफाई कर्मचारियों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध एक अन्य सामाजिक संगठन निगम मजदूर सर्व कल्याण मोर्चा के सतीश कारोटिया कहते हैं कि अस्थायी कर्मचारी को 12 से 13 हजार रुपए दिए जाते हैं और इसमें से कर्मचारी भविष्य निधि के लिए 1,672 रुपए काट लिए जाते हैं.
वाल्मीकि समुदाय से आने वाले कारोटिया के मुताबिक उन्हें अक्सर सफाई कर्मचारियों के फोन आते हैं, जिसमें वो आत्महत्या की बात करते हैं क्योंकि उनके पास इज्जत के साथ अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए पर्याप्त पैसे नहीं हैं खासकर तब जब वेतन तीन-चार महीने की देरी से मिलता है और राशन दुकान वाले उधार देने से मना कर देते हैं.
अपने हाथों से शहर की सफाई करने वाले लोग भूखे सो रहे हैं और केजरीवाल को उनका समर्थन सालों से कांग्रेस और बीजेपी की अनदेखी का नतीजा है.
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