यूपी में अवैध बूचड़खानों को बंद करने के सीएम योगी आदित्यनाथ के फैसले के बाद मीट खाने की आदत पर बहस शुरू हो गई है. इसी दिशा में इलाहाबाद कोर्ट की तरफ से उल्लेखनीय टिप्पणी आई है.
इलाहाबाद हाइकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान कहा है कि खाने-पीने की आदतें और पसंद-नापसंद व्यक्ति के मौलिक अधिकार से जुड़ी हुई हैं और उन पर सरकार रोक नहीं लगा सकती.
जस्टिस ए पी शाही और संजय हरकौली की बेंच ने खेरी के एक मीट व्यापारी की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि संविधान का 21वां अनुच्छेद लोगों को जीवन के अधिकार के तहत खाने-पीने की स्वतंत्रता देता है, इसलिए उस पर रोक लगाना सही नहीं है.
सीएम योगी के शपथग्रहण के अगले दिन ही प्रदेश के सभी अवैध बूचड़खानों के खिलाफ कार्रवाई शुरू हो गई थी. अवैध बूचड़खानों के खिलाफ कार्रवाई का असर मटन- चिकेन की दुकानों पर भी पड़ा था. जिसके बाद एक मीट व्यापारी ने अपनी मीट की दुकान के लाइसेंस को रिन्युअल के लिए अपील किया था.
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'खाद्य आपूर्ति के लिए राज्य बाध्य'
बेंच ने विवाद का हल निकालने के लिए सरकार की उच्चस्तरीय समिति से 10 अप्रैल को इस मुद्दे पर बैठक का निर्देशन करने को कहा है और 13 अप्रैल को समिति के विचार-विमर्श के निष्कर्ष के बारे में जानकारी देने को कहा है.
बेंच ने कहा, ‘जो खान-पान स्वास्थ्य के हिसाब से सही है, उसे गलत विकल्प नहीं माना जा सकता. इसलिए स्वस्थ खाद्य पदार्थों की आपूर्ति की आवश्यकता को बनाए रखने के लिए राज्य ऐसे प्रावधान लाने के लिए बाध्य है.’
इसी मामले से संबंधित एक और याचिका की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद कोर्ट ने सरकार को बूचड़खानों और मीट दुकानों को लाइसेंस देने और पुराने लाइसेंसों को रिन्यू करने पर विचार करने का निर्देश दिया है.
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इस याचिका के जवाब में राज्य सरकार ने कहा है कि उसका इरादा मीट के उपभोग पर पूरी तरह से रोक लगाने का नहीं है, वो बस इन बूचड़खानों और मीट व्यापारियों को सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के दिशा-निर्देशों के तहत चलना सुनिश्चित करना चाहती है.
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