देश की खराब और चरमराती स्वास्थ्य व्यवस्था को दुरुस्त करने की दिशा में अब आवाज बुलंद होने लगी है. हाल ही में देश की राजधानी दिल्ली और हरियाणा के गुरुग्राम में हुई दो घटनाओं ने निजी अस्पतालों और डॉक्टरों की मनमानी को बेनकाब कर दिया है.
पिछले दिनों दो ऐसी घटनाएं हुईं, जिसने देश को हिला कर रख दिया. सबसे पहले गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल में डेंगू के इलाज के लिए भारी-भरकम बिल वसूला गया और दूसरी घटना दिल्ली के शालीमार बाग स्थित मैक्स अस्पताल में हुई जहां एक जीवित बच्चे को मृत बता दिया गया.
गौरतलब है कि हाल के दिनों में निजी अस्पतालों की मनमानी से लोगों के विश्वास को काफी ठेस पहुंची है. मैक्स और फोर्टिस जैसे अस्पतालों पर से लोगों का विश्वास उठता जा रहा है. इसी को ध्यान में रखते हुए इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने अब मनमानी कर रहे कुछ निजी अस्पतालों पर सख्त रुख अख्तियार करने की बात कही है.
आईएमए ने एक सख्त गाइडलाइंस जारी की है, जो कि निजी अस्पतालों की मनमानी पर अंकुश लगा सकती है. आईएमए ने सोमवार को दिल्ली में एक 30 सूत्रीय दिशा-निर्देश जारी किया है. आईएमए ने इस दिशा-निर्देश के जरिए डॉक्टरों को आगाह किया है कि डॉक्टर्स अस्पताल प्रबंधन नहीं मरीजों के हितों को प्रमुखता दें.
इंडियन मेडिकल एसोसिशन के अध्यक्ष डॉ केके अग्रवाल ने कहा है कि आईएमए हर राज्य में मेडिकल रिड्रेसल आयोग का गठन करेगा, जो प्राइवेट अस्पतालों की गुणवत्ता और मरीज के इलाज के खर्च का निरीक्षण करेगा. आईएमए ने प्राइवेट अस्पतालों से खासकर प्राइवेट डॉक्टरों से अपील की है कि मरीज का इलाज करते समय उनके हितों का ख्याल सबसे पहले रखा जाए. डॉक्टर्स दवा लिखते समय मरीजों के हितों का ख्याल रखे न कि अस्पताल प्रबंधन के मुनाफे का.
हालांकि, आईएमए का यह दिशा-निर्देश नया नहीं है. पहले भी आईएमए इस तरह के दिशा-निर्देश देता रहा है. इस दिशा-निर्देश को कितने प्राइवेट अस्पताल मानेंगे यह कहना अभी मुश्किल है?
निश्चित तौर पर फोर्टिस और मैक्स जैसे अस्पतालों पर सरकार की सख्ती के बाद डॉक्टर्स भी भारी तनाव में हैं. एक तरह मरीजों का डॉक्टरों पर से विश्वास उठता जा रहा है तो दूसरी तरफ अच्छी पगार पाने वाले डॉक्टर्स इस घटना के बाद डर गए हैं.
खासकर गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल में एक सात साल की बच्ची की मौत और करीब 16 लाख वसूले जाने की घटना ने सिस्टम के निकम्मेपन को उजागर कर दिया है. इस घटना को मीडिया ने जिस प्रमुखता से पेश किया उसके बाद से इस मुद्दे ने सरकार का ध्यान अपनी ओर खींचा है.
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जानकारों का मानना है कि दिल्ली सरकार द्वारा शालीमार बाग स्थित मैक्स अस्पताल का लाइसेंस रद्द करना अपने आप में एक ऐतिहासिक कदम है. इस घटना ने साबित कर दिया है कि अगर सरकार लाइसेंस दे सकती है तो उसे रद्द भी कर सकती है. दिल्ली की इस घटना को आने वाले दिनों में दूसरे राज्यों के लिए भी एक नजीर के तौर पर पेश किया जाएगा.
मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) ने भी निजी अस्पतालों के खिलाफ ओवरचार्जिंग की शिकायत पर कार्रवाई की बात कही है. मैक्स और फोर्टिस अस्पतालों के खिलाफ जल्द ही कार्रवाई हो सकती है. हमारे सहयोगी न्यूज चैनल सीएनबीसी-आवाज के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की एथिक्स कमिटी के सदस्य विनय अग्रवाल ने कहा है कि अगले 10-15 दिनों के अंदर मैक्स और फोर्टिस पर रिपोर्ट आ जाएगी, जिसके बाद इनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.
देश के वरिष्ठ पत्रकार और रक्षा मामले के जानकार कमर आगा भी दिल्ली स्थित साकेत मैक्स अस्पताल में हुई अपने साथ एक घटना का जिक्र करते हुए सहम जाते हैं. कमर आगा फर्स्टपोस्ट हिंदी से बात करते हुए कहते हैं, ‘देखिए मेरा एक्सिडेंट साकेत स्थित मैक्स अस्पताल के सामने ही कुछ महीने पहले हुआ था. क्योंकि मेरी पत्नी कैंसर से पीड़ित हैं और उसी दिन उनका मैक्स अस्पताल में मेजर ऑपरेशन हो रहा था. मुझे लोगों ने मैक्स अस्पताल में पहुंचा दिया. मैं भी भर्ती हो गया. मैं दर्द से कराह रहा था. तीन घंटे तक हड्डी का कोई भी डॉक्टर मुझे देखने नहीं आया. मैंने बताया कि मुझे काफी दर्द हो रहा है मुझे पेन किलर इंजेक्शन लगाओ. फिर उन्होंने मुझे इंजेक्शन लगाया. तीन घंटे के बाद एक यंग सा लड़का, जो जींस पहने था मेरे पास आया. उस लड़के ने दो एक्सरे कराए और मुझको कहा कि आपकी पैर की हड्डी टूट गई है आपका सुबह ऑपरेशन होगा. आप फौरन भर्ती हो जाइए.’
कमर आगा आगे कहते हैं, ‘क्योंकि हड्डी के एक डॉक्टर मेरे जानकार थे मैंने उनसे राय ली. वे मेरे करीबी डॉक्टर हैं, उन्होंने कहा कि आप मेरे पास आ जाइए. इसके बाद मैंने मैक्स अस्पताल से कहा कि मुझे यहां पर ऑपरेशन नहीं कराना है. मैं अपना ऑपरेशन कहीं और कराउंगा. मुझे आप लोग जल्दी डिस्चार्ज करे दें. वे लोग डिस्चार्ज नहीं करना चाह रहे थे. डिस्चार्ज करने में सुबह से शाम हो गई. बड़ी मुश्किल से शाम चार-पांच बजे मुझे डिस्चार्ज किया गया. 18 घंटे रखे और 25 हजार का बिल दे दिया. मुझे सिर्फ तीन इंजेक्शन दिया गया और एक-दो टेबलेट उन लोगों ने खिलाया होगा और कुछ खून की जांच भी कराई. दवा कब आई और कब गायब हो गई मुझे पता नहीं, हां दवाओं का पैकेट हमने देखा जरूर था. मेरी बहन जो मेरे साथ थी उसको अस्पताल का एक शख्स 10 लाख रुपए जमा कराने को कह रहा था. यह तो लूट है. कुछ न कुछ इन अस्पतालों पर कार्रवाई होनी ही चाहिए.’
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अब सवाल यह है कि कमर आगा जैसे लोगों के साथ इस तरह की घटनाएं घट सकती है तो आम लोगों का क्या कहना? सरकार को कहीं न कहीं एक ऐसे सख्त कदम उठाने की जरूरत है, जिसमें सस्ती दवाओं को लेकर एक दवा एक कीमत और एक नीति लागू की जाए. कोई भी मेडिकल स्टोर या निजी अस्पताल एमआरपी से ज्यादा दाम में दवाई न बेचे. इमरजेंसी सेवाओं के लिए सरकार अपनी जिम्मेदारी तय करे और अगर मरीज मेडिकल रिपोर्ट प्राप्त करने की बात करता है तो 72 घंटों के भीतर उसे रिपोर्ट मिल जाए.
हालांकि, यह सारी बात आईएमए की गाइडलाइंस में पहले ही है. इसके बावजूद फोर्टिस और मैक्स जैसे अस्पताल मरीजों से मनमानी कीमत पर पैसा वसूल रहे हैं. अगर दिल्ली सरकार ने किसी भी तरह की कार्रवाई की है तो उसको सपोर्ट करना चाहिए न कि लॉबिंग कर उसको कमजोर किया जाए.
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