देश का इनकम टैक्स डिपार्टमेंट एक तरफ आम करदाताओं के लिए रोज नए नियम बना रहा है. देश में किसानों की हालत बद से बदतर है. देश में किसान आत्महत्या कर रहे हैं. वहीं निजी क्षेत्रों की कंपनियों पर सरकार और इनकम टैक्स डिपार्टमेंट मेहरबान है.
इंडियास्पेंड की रिपोर्ट नेशनल टैक्स डाटा के अनुसार वित्त वर्ष 2015-16 में मोदी सरकार ने 15 हजार 80 मुनाफा कमाने वाली कंपनियों से किसी प्रकार का भी टैक्स नहीं लिया है. सरकार ने ऐसा कदम कर चुकाने वालों को प्रोत्साहित करने के नाम पर किया.
मुनाफे में कंपनी पर आईटी रिटर्न से छूट
इन कंपनियों ने मुनाफा तो कमाया पर सरकार की ‘टैक्स इंसेंटिव पॉलिसी’ का फायदा उठा कर किसी प्रकार का टैक्स नहीं चुकाया. इतना ही नहीं सरकार ने निजी कंपनियों को 2 लाख 25 हजार 229 करोड़ रुपए का टैक्स छूट भी दिया. देश में 10 लाख ऐसी कंपनियां हैं जिन्होंने आज तक इनकम टैक्स रिटर्न नहीं भरा है. केंद्र में मोदी सरकार के आए तीन साल से भी ज्यादा समय बीत गए हैं पर इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने इन विसंगतियों को अभी तक दूर नहीं किया है.
राष्ट्रीय टैक्स डेटा पर एक रिसर्च वेबसाइट इंडियास्पेंड के विश्लेषण के बाद इस तरह की विसंगतियां निकल कर सामने आई है.
साल 2014-15 में 52 हजार 911 कंपनियों ने मुनाफा कमाया, लेकिन किसी भी कंपनियों ने टैक्स का भुगतान नहीं किया. इसके साथ साल 2015-16 में बड़ी कंपनियों ने छोटी कंपनियों से भी कम टैक्स चुकाया.
इस तरह की विसंगतियों से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने 1980 में एमएटी (मिनिमम अल्टरनेट टैक्स) की शुरूआत की थी. जिसमें कंपनियों के लिए टैक्स में कुछ छूट का प्रवाधान रखा गया था. लेकिन, आयकर विभाग के द्वारा दिए गए इस छूट में गड़बड़झाला नजर आ रहा है.
एक तरफ सरकार का कहना है कि 2016-17 वित्त वर्ष में इनकम टैक्स भरने वालों की संख्या में 250 फीसदी तक बढ़ोतरी हुई. खासकर कॉर्पोरेट सेक्टर में 15 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई.
इफेक्टिव टैक्स का गड़बड़झाला
साथ ही आयकर विभाग ने टैक्स चोरी के घेरे में आए लोगों से 419 करोड़ रुपए सरेंडर करवाए. जिससे सरकार को कम से कम 130 करोड़ रुपए टैक्स मिला. इफेक्टिव टैक्स रेट वास्तव में मुनाफे पर कंपनियों द्वारा चुकाया गया टैक्स है.
हालांकि, साल 2012-13 और साल 2015-16 के बीच इफेक्टिव टैक्स में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन कई तरह की कंपनियों के लिए छूट बनी हुई है, विशेष रुप से बड़ी कंपनियों के लिए.
उदाहरण के लिए, कॉर्पोरेट के लिए 34.47 फीसदी की कानूनी टैक्स रेट है, जो उन्हें मुनाफे पर भुगतान करना होगा. साल 2015-16 में इफेक्टिव टैक्स की दर 28.24 फीसदी थी और वर्ष 2014-15 में 24.67 फीसदी.
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एक करोड़ रुपए तक का लाभ कमाने वाली एक कंपनी के लिए प्रभावी कर दर वर्ष 2015-16 में 30.26 फीसदी थी, जबकि 500 करोड़ रुपए से अधिक लाभ कमाने वाली कंपनी के लिए कॉर्पोरेट टैक्स की दर 25.90 फीसदी थी.
इसका मतलब यह हुआ कि कम मुनाफा कमाने वाली कंपनियां ज्यादा लाभ बनाने वाली बड़ी कंपनियों से प्रतिस्पर्धा कर रही है. हालांकि, इन सालों में इफेक्टिव टैक्स रेट में अंतर कम हो रहा है.
साल 2015-16 में सभी क्षेत्रों में इफेक्टिव टैक्स की दरें बदली हैं. सबसे कम भुगतान करने वाले उद्योगों जैसे सीमेंट, चीनी और वित्तीय लीजिंग कंपनियों के लिए इफेक्टिव टैक्स रेट वर्ष 2014-15 में एकल अंकों में थे. जो कि अब काफी हद तक बढ़ गए हैं और लगभग 20 फीसदी तक पहुंच गए हैं. हालांकि, इन क्षेत्रों के लिए अन्य उद्योगों की तुलना में कम टैक्स लगाया जाना अभी भी जारी है.
इंडियास्पेंड वेबसाइट ने रिसर्च में पाया कि कई क्षेत्रों में विभिन्न उद्योगों टैक्स रेट में दिलचस्प विरोधाभास हैं जबकि ये एक ही सेक्टर के तहत आते हैं. जैसे 1- बैंकिंग कंपनियां 40.3 फीसदी रेट से टैक्स देते हैं जबकि शेयर ब्रोकर 25.1 फीसदी रेट से (दोनों फाइनेंसियल सर्विस हैं) टैक्स का भुगतान करते हैं. 2- कूरियर एजेंसियों ने 41.7 फीसदी रेट से टैक्स का भुगतान किया है. ट्रांसपोर्ट कंपनियों ने 26.4 फीसदी के रेट से टैक्स भुगतान किया है. 3- वन ठेकेदारों ने 37.6 फीसदी रेट से टैक्स का भुगतान किया है. खनन ठेकेदारों ने 28.2 फीसदी रेट से टैक्स का भुगतान किया है. 4- ड्रग्स और फार्मास्यूटिकल्स ने 24.2 फीसदी रेट से टैक्स का भुगतान किया और इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों ने 35.5 फीसदी की रेट से टैक्स भुगतान किया.
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने साल 2017-18 के अपने बजट भाषण में कहते हैं कि, ‘छूट से बाहर होने की योजना 01 अप्रैल 2017 से शुरू होगी.’
कॉर्पोरेट सेक्टर को भारी छूट क्यों?
साल 2015-16 में मोदी सरकार ने कॉरपोरेट सेक्टर को लगभग 76 हजार 857 करोड़ 7 लाख रुपए का टैक्स छूट प्रदान किया है.
सरकार ने साल 2015-16 में सीमा शुल्क में 69 हजार 259 करोड़ रुपए और उत्पाद शुल्क के लिए 79 हजार 183 करोड़ रुपए की छूट प्रदान की है.
सरकार के आंकड़े के मुताबिक 46 फीसदी भारतीय कंपनियों ने 2015-16 में कोई मुनाफा नहीं कमाया. साल 2015-16 में कम से कम 43 फीसदी भारतीय कंपनियां घाटे में रही हैं. 47.7 फीसदी कंपनियों ने 1 करोड़ रुपए तक का मुनाफा कमाया है. टैक्स डेटा के अनुसार, करीब 6 फीसदी भारतीय कंपनियों ने 1 करोड़ रुपए से अधिक मुनाफा दर्ज कराया है.
पटना कॉलेज के पूर्व प्राचार्य और देश के जाने-माने अर्थशास्त्री प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी कहते हैं, ‘देखिए इससे साफ हो रहा है कि सरकार पावरफूल लोगों को रहत दे रही है. जो पावरफूल लोग नहीं हैं उन पर टैक्स का अतिरिक्त बोझ दे रही है. टैक्स में ये रिग्रेशन है. ये टैक्स पॉलिसी रिग्रेसिव है. यह पावर से जुड़ा हुआ सवाल है. सत्ता का जो चरित्र है वह टैक्स पॉलिसी में और उससे भी ज्यादा टैक्स के इंप्लीमेंटेशन में दिख रहा है.'
एन के चौधरी आगे कहते हैं, ‘राष्ट्रीय टैक्स डेटा की रिपोर्ट से यह बात साबित हो रही है कि सरकार जो दावा है कि हम टैक्स का दायरा बढ़ा रहे हैं, उसका पोल खुल रहा है. सरकार को चाहिए कि टैक्स इंप्लीमेंटेशन को ठीक करे. भारत जैसे प्रजातांत्रिक देश के लिए यह ठीक नहीं है.’
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