अगले साल होने वाले विधानसभा के आम चुनाव की तैयारी जुटी भारतीय जनता पार्टी एवं कांग्रेस के लिए राज्य में होने वाले विधानसभा के तीन उपचुनाव गले की फांस बन गए हैं. मध्यप्रदेश कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के संभावित उम्मीदवार ज्योतिरादित्य सिंधिया का भविष्य दो उपचुनावों पर आकर टिक गया है.
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए भी उपचुनाव बिन बुलाई मुसीबत की तरह लग रहे हैं. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया दोनों ही अपने-अपने ढंग से अगले साल होने वाले आम चुनाव की तैयारियां कर रहे थे.
कांग्रेस के तीन विधायकों के असमय निधन ने कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दोनों को ही अपनी रणनीति बदलने के लिए मजबूर कर दिया है. जिन तीन विधायकों का हाल ही में निधन हुआ है वे प्रेम सिंह (चित्रकूट) महेंद्र सिंह कालूखेड़ा (मुंगावली) और राम सिंह यादव (कोलारस हैं). ये तीनों सीटें कांग्रेस के कब्जे वाली सीटें हैं. चित्रकूट मध्यप्रदेश के सतना जिले में आता है. यहां मतदाना 9 नवबंर को होना है. चुनाव के नतीजे 12 नवंबर को आएंगे.
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चित्रकूट में प्रतिपक्ष के नेता अजय सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है. अजय सिंह के पिता स्वर्गीय अर्जुन सिंह का इस क्षेत्र से गहरा लगावा था. यह क्षेत्र उत्तरप्रदेश की सीमा से लगा हुआ है. कांग्रेस ने इस क्षेत्र से राज परिवार के सदस्य नीलांशू चतुर्वेदी को उम्मीदवार बनाया है.
भारतीय जनता पार्टी ने शंकरदयाल दयाल त्रिपाठी को उम्मीदवार बनाया है. क्षेत्र में पैंतालीस प्रतिशत से अधिक मतदाता ब्राह्मण वर्ग से हैं. दोनों ही पार्टियों के उम्मीदवार ब्राह्मण वर्ग से होने के कारण अन्य वर्ग के मतदाता निर्णायक भूमिका में आ गए हैं. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लगातार तीन दिन इस क्षेत्र में चुनाव प्रचार किया.
उत्तरप्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के अलावा पार्टी के अन्य बड़े नेताओं ने भी यहां प्रचार किया. चित्रकूट के जरिए कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दोनों ही अपनी राजनीतिक स्थिति का आकलन करने में लग गए हैं. अगले आम चुनाव के संभावित मुद्दों का संकेत भी मिल रहा है. अगले आम चुनाव के लिहाज से उपचुनाव के नतीजे महत्वपूर्ण इसलिए हो गए हैं क्योंकि इससे बघेलखंड के मतदाताओं का रुझान स्पष्ट होगा.
बघेलखंड की राजनीति ठाकुर और ब्राहण के ईद-गिर्द घूमती है. इसका लाभ बहुजन समाज पार्टी उठाती है. इस उपचुनाव में दलित वोटों का रुझान भी स्पष्ट होगा. बसपा की ताकत भी सामने आएगी.
सिंधिया का गढ़ भेदने में जुटी सरकार
लगभग तीन माह पूर्व भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भोपाल आए थे. उन्होंने अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए 200 सीटों का लक्ष्य निर्धारित किया है. राज्य में विधानसभा की कुल 230 सीट हैं. वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के विधायकों की संख्या 165 है. कांग्रेस विधायकों की संख्या 54 है.
भारतीय जनता पार्टी ने 200 सीटों का लक्ष्य पाने के लिए व्यापक स्तर पर तैयारियां शुरू कर दी हैं. बूथ स्तर पर प्रादेशिक नेताओं को लगाया है. मंत्रियों को अपने क्षेत्र के अलावा आसपास के क्षेत्रों को जिताने की जिम्मेदारी भी दी गई है. विधानसभा क्षेत्र का समाजिक-आर्थिक डाटा भी तैयार किया गया है.
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने दौरे भी विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर ही तय कर रहे हैं. अगले साल होने वाले चुनाव के कारण ही राज्य में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सहयोगी सगंठनों की गतिविधियां भी तेज हो गई हैं.
संघ की राष्ट्रीय बैठक के बाद बजरंग दल ने अपना राष्ट्रीय अधिवेशन भोपाल में किया. कांग्रेस में अकेले ज्योतिरादित्य सिंधिया ऐसे नेता हैं, जिनसे चुनौती मिलने का खतरा भाजपा महसूस करती है.
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सिंधिया की घेराबंदी के लिए आधा दर्जन से अधिक मंत्रियों को पार्टी ने सक्रिय किया है. इनमें राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री और बजरंग दल के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष जयभान सिंह पवैया प्रमुख हैं. पार्टी के संभागीय संगठन मंत्री जिले-जिले में जाकर कार्यकर्त्ताओं की नाराजगी दूर करने की कोशिश कर रहे हैं.
कांग्रेस के प्रभावशाली नेताओं को पार्टी में लाने की कवायद भी चल रही है. अचानक मुंगावली और कोलारस का उपचुनाव आ जाने के कारण भाजपा को अपनी रणनीति में थोड़ा बदलाव करना पड़ा है.
पार्टी नेताओं का सोच है कि मुंगावली और कोलारस में यदि कांग्रेस से हार जाती है तो सिंधिया को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित होने से रोका जा सकता है.
इसी सोच के चलते पार्टी ने कई दिग्गज नेताओं को चुनाव तक के लिए वहां तैनात कर दिया है. गृह मंत्री भूपेंद्र सिंह, जनसपंर्क मंत्री नरोत्तम मिश्रा लगातार दौरे कर माहौल भाजपा के पक्ष में करने की कोशिश कर रहे हैं.
साल भर भी नहीं रह पाएंगे विधायक
संभावना यह है कि राज्य में चुनाव की घोषणा अगले वर्ष सितंबर में हो जाएगी. नवबंर के दूसरे सप्ताह में नई सरकार का गठन हो जाएगा. इसी संभावना के चलते मुंगावली एवं कोलारस में भाजपा और कांग्रेस दोनों को ही अपना उम्मीदवार तय करना मुश्किल हो रहा है.
चुनाव लड़ने के इच्छुक नेताओं ने भी अपने पैर पीछे खींच लिए हैं. अनुमान यह लगाया जा रहा है कि दोनों स्थानों पर उपचुनाव जनवरी माह में हो सकते हैं. इस लिहाज से चुनाव जीतने वाले नेता को सिर्फ नौ माह का समय विधायक के तौर पर काम करने के लिए मिलेगा.
इन नौ माह में वो अपने क्षेत्र के लिए कुछ भी करने की स्थिति में नहीं होगा. आम चुनाव में जनता की नाराजगी का सामना भी करना पड़ सकता है. दोनों ही विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस उम्मीदवारों को चुनाव लड़वाना और जीताना ज्योतिरादित्य सिंधिया की जिम्मेदारी ही होगी.
भारतीय जनता पार्टी की ओर से चुनाव पूरी पार्टी लड़ेगी. मुकाबला सीधा सरकार में बैठी पार्टी से होने के कारण सिंधिया ने भी अपनी रणनीति में बदलाव किया है. उन्होंने राज्य के दौरे कम कर दिए हैं.
पूरा ध्यान इन दोनों विधानसभा क्षेत्रों पर केंद्रित कर दिया है. पार्टी के भीतर भी समन्वय बनाना शुरू कर दिया है. नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के बुलावे पर वे चित्रकूट उपचुनाव में भी प्रचार करने गए. दिग्विजय सिंह की नर्मदा यात्रा में भी हिस्सा लिया.
एक गोंड आदिवासी के घर रातभर रुके सीएम
ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ के चित्रकूट प्रचार में जाने कांग्रेस एकता का संदेश देने में सफल हो गई. कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं के चुनाव मैदान में कूदने के कारण भाजपा के लिए मुकाबला चुनौती भर हो गया.
इस चुनौती से निपटने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपना ध्यान आदिवासी वोटों पर केंद्रित कर दिया. उन्होंने एक गोंड आदिवासी के यहां रात बिताई. कांगे्रस आरोप लगा रही है कि मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए गांवों में नए ट्रांसफारमर लगाए जा रहे हैं. प्रतिपक्ष के नेता अजय सिंह ने ट्रांसफारमर से भरे ट्रक की फोटो के साथ शिकायत चुनाव आयोग को की है.
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