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'लव जेहाद': यूपी में वेटरों के ऊपर निर्भर हैं हिंदू संगठन

कोर्ट परिसर में शादी करने पहुंचे प्रेमी जोड़े की कथित रूप से हिंदू युवा वाहिनी के कार्यकर्ताओं ने जमकर पिटाई की

Updated On: Jan 15, 2018 04:41 PM IST

FP Staff

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'लव जेहाद': यूपी में वेटरों के ऊपर निर्भर हैं हिंदू संगठन

पिछले कुछ समय में 'लव-जेहाद' के आरोप काफी बढ़े हैं. इनमें से ज्यादातर मामले उन राज्यों में सामने आएं हैं, जहां-जहां बीजेपी की सरकार है. 'लव-जेहाद' के नाम पर हिंदू संगठनों की गुंडागर्दी भी बढ़ती जा रही है. ये कानून अपने हाथ में ले लेते हैं और पुलिस-प्रशासन की परवाह किए बिना, फैसला भी खुद ही कर देते हैं.

हाल ही में उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में हिंदू युवा वाहिनी के कार्यकर्ताओं की गुंडागर्दी सामने आई. मिली जानकारी के अनुसार, कोर्ट परिसर में शादी करने पहुंचे प्रेमी जोड़े की कथित रूप से हिंदू युवा वाहिनी के कार्यकर्ताओं ने जमकर पिटाई की. इन कार्यकर्ताओं का कहना था कि ये 'लव-जेहाद' का मामला है. इस पूरे घटनाक्रम के दौरान कोर्ट में मौजूद पुलिस मूकदर्शक बनी रही.

'लव-जेहाद' रोकने के लिए पिछले एक साल में कई हिंदू संगठनों द्वारा हिंसा के मामले सामने आएं हैं. लेकिन इस सब के बीच एक सवाल ये भी उठता है कि आखिर इन संगठनों को ये सब जानकारी मिलती कहां से है. आपको ये जानकर हैरानी होगी कि इन संगठनों को सूचना और कोई नहीं बल्कि रेस्तरां में काम करने वाले वेटर देते हैं.

जासूस के रूप में काम कर रहे हैं वेटर

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रेस्तरां में काम करने वाले लोग हिंदू संगठनों के जासूस के रूप में काम कर रहे हैं. शामली, मुजफ्फरनगर और बागपत के वीएचपी संयोजक विवेक प्रेमी ने कहा कि हम पश्चिमी यूपी में 'लव जेहाद' रोकने में काफी कामयाब रहे हैं. किसी भी मुस्लिम लड़के और हिंदू लड़की के बीच संभावित रिश्ते की खबर हमें सबसे पहले मिलती है. यहां तक की पुलिस को भी इसकी जानकारी नहीं होती. उन्हें (पुलिस) भी नहीं पता कि हमें जानकारी कहां से मिलती है.

उन्होंने आगे कहा कि पश्चिमी यूपी में रेस्तरां में काम करने वाले वेटर, कैशियर, सफाईकर्मी आदि हमारे नेटवर्क में हैं और हमें इन्हीं से 'लव-जेहाद' से जुड़े मामलों की जानकारियां मिलती है. पिछले 15 दिनों में हमने शामली में 'लव-जेहाद' के चार मामले पकड़े हैं. इनमें से दो हमने रेस्तरां में पकड़े हैं.

प्रेमी ने कहा कि हमने पहले रेस्तरां के मालिकों से इस बारे में बात करने की सोची. लेकिन फिर हमें लगा कि वो हमारी मदद नहीं करेंगे, क्योंकि वो अपनी जगह पर हंगामा पसंद नहीं करेंगे. इसलिए हमने कर्मचारियों की ओर रुख किया. कुछ लोग डर रहे थे कि अगर उनके मालिकों को पता चल गया, तो उनकी नौकरी जा सकती है. ऐसे में हमने उन्हें सुनिश्चित किया कि उनकी पहचान उजागर नहीं की जाएगी. ये उसी तरह है, जैसे पत्रकारों के सूत्र होते हैं.

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