क्या फासीवादी शब्द आपके शब्दकोश का हिस्सा है? अगर ऐसा है तो आप बीजेपी की किताब एक मासूम व्यक्ति नहीं हैं. वास्तविकता में आप एक 'आतंकी' भी करार दिए जा सकते हैं.
सोमवार को चेन्नई से तुतिकोरिन जा रहे एक हवाई जहाज में गणित विषय में पोस्ट डॉक्टरेट की छात्रा लुई सोफिया ने तमिलनाडु बीजेपी अध्यक्ष के सामने बीजेपी विरोधी नारे लगाए. तमिलनाडु बीजेपी अध्यक्ष डॉ. तमिलसाई सुंदरराजन हैं. 28 वर्षीय सोफिया ने प्लेन में नारे लगाए ' फासीवादी बीजेपी सरकार मुर्दाबाद मुर्दाबाद'. सोफिया कैनडा से अपने घर तुतिकोरिन वापस आ रही थीं. फ्लाइट जैसे ही तुतिकोरिन हवाई अड्डे पर उतरी बीजेपी नेता सुंदरराजन ने सोफिया का सामान खुद ही खींचना शुरू कर दिया.
इसके बाद तुतिकोरिन एयरपोर्ट पर बीजेपी कार्यकर्ताओं ( जो सुंदरराजन का स्वागत करने के लिए पहुंचे थे ) और सोफिया के बीच कहासुनी शुरू हो गई. राज्य बीजेपी अध्यक्ष की एक औपचारिक शिकायत के बाद सोफिया गिरफ्तार कर ली गईं और उन्हें 15 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. भारतीय दंड संहिता की धारा 505 , 290 और तमिलनाडु पुलिस एक्ट के सेक्शन 75 के तहत सोफिया पर कार्रवाई हुई.
बाद सुंदरराजन ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि कोई भी मासूम लड़की किसी के खिलाफ फासीवादी शब्द का इस्तेमाल नहीं करेगी. मैंने उससे सवाल किया तो उसने जवाब दिया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत वो नारे लगा रही है और फासीवादी शब्द का इस्तेमाल कर रही है. मैंने सोचा कि मुझे एक आतंकी को इग्नोर नहीं करना चाहिए इसी वजह से मैंने शिकायत दर्ज कराई.
इससे हमारे दिमाग में यह सवाल उपजता है कि क्या सोफिया ने अपनी सीमा पार की ? या फिर सुंदरराजन में सहनशीलता की कमी है. उद्दंड और परेशान करने वाले यात्रियों के लिए डायरेक्टर जेनेरल ऑफ सिविल एवियेशन ( DGCA ) के नियमों के मुताबिक सोफिया ने जो किया वो अशांति पैदा करने वाला था जिसके लिए उसने शारीरिक भाव भंगिमाओं और मौखिक प्रताड़ना का इस्तेमाल किया. इसके मुताबिक इस घटना को एयरलाइंस को आंतरिक कमेटी बनाकर सॉल्व करना चाहिए था. इस कमेटी में डिस्ट्रिक्ट या सेशन कोर्ट के जज भी शामिल होते हैं. कमेटी इस बात का निर्णय ले सकती है कि उस यात्री को कितने दिनों के लिए प्रतिबंधित करना है.
तो किसी उद्दंड यात्री को क्या सजा दी जाए इस मामले पर कानून और प्रोसेस दोनों ही क्लियर हैं तो फिर तमिलनाडु पुलिस ने सोफिया को गिरफ्तार क्यों किया? क्या ऐसा इसलिए किया गया इसमें एक राजनीतिक रूप से वीआईपी व्यक्ति शामिल है?
क्या सुंदरराजन इस मामले को दूसरे तरीके से भी हैंडल कर सकती थीं? निश्चित रूप से हां. ऐसा माना जाता है कि विरोध को सहने के लिए नेताओं की खाल दूसरों से थोड़ी ज्यादा मोटी होती है. यानी उनमें अपनी आलोचना झेलने का स्तर दूसरों से ज्यादा होता है. अगर मात्र एक नारा आपके सम्मान को ठेस पहुंचा सकता है तो फिर ये परेशानी विरोध दर्ज कराने वाले की नहीं बल्कि उस नेता की है. फिर आप को लोगों के बीच ये संदेश भी भिजवा देना चाहिए कि बीजेपी सरकार अपने खिलाफ एक भी शब्द नहीं बर्दाश्त करेगी.
बीते अप्रैल महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेन्नई आगमन पर उनका विरोध काले झंडे दिखाकर किया गया था. गो बैक पीएम मोदी के नारे लगे थे और सोशल मीडिया पर भी ये ट्रेंड किया था. क्या नरेंद्र मोदी ने वैसी प्रतिक्रिया दी जैसी सुंदरराजन ने दी है?
सुंदरराजन की ये प्रतिक्रिया पीएम मोदी के उस भाषण की भावना के खिलाफ है जो उन्होंने दिया था. उन्होंने कहा था- सरकार की आलोचना होनी चाहिए क्योंकि ये लोकतंत्र का मजबूत बनाता है. सुंदरराजन का व्यवहार बीते सप्ताह सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ के वक्तव्य के भी खिलाफ है जिसमें उन्होंने कहा था कि असहमति लोकतंत्र की सेफ्टी वॉल्व है अगर लोकतंत्र पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश हुई तो प्रेशर कुकर में ब्लास्ट हो जाएगा.
लेकिन अगर और ध्यान से देखा जाए तो आपको एक पैटर्न दिखाई देगा. सुंदरराजन के साथी और केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पोन राधाकृष्णन ने कई अवसरों पर नक्सल, आतंकवादी और मुस्लिम अतिवादियों की तमिलनाडु में मौजूदगी का जिक्र किया है. तकरीबन वैसी ही सोच यहां पर सुंदरराजन ने दिखाई है. जब वो अपने खिलाफ नारा लगाने वाले आतंकी करार देते हैं. सोफिया एक रिसर्च स्कॉलर हैं. बहुत आश्चर्य की बात नहीं है कि उन्हें शहरी नक्सलवादी करार दे दिया जाए.
वास्तविकता में इसकी शुरुआत की जा चुकी है. सुंदरराजन ने सोफिया के तुतिकोरिन के स्टरलाइट प्लांट के खिलाफ लिखने की बात की है. अप्रत्यक्ष रूप से उन्होंने इस बात का इशारा भी कर दिया है कि सोफिया एंटी-इशटैब्लिशमेंट लिखती हैं. इसी साल मई महीने में 13 स्थानीय निवासियों को पुलिस वालों ने गोली मार दी थी. लोग प्लांट को बंद करने को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे.
लेकिन एक बात जो सुंदरराजन समझ नहीं पाए कि सोफिया का विरोध व्यक्तिवादी नहीं था और उसमें कोई गाली गलौज भी नहीं थी. वो सिर्फ एक राजनीतिक पार्ट के खिलाफ उद्गार था. खुद से अलग राय रखने वाले को जेल भेजा जाना लोकतंत्र का तरीका तो बिल्कुल नहीं हो सकता.
क्या बीजेपी नेता की इस हरकरत से बीजेपी को राज्य में झटका लगेगा? अगर सोशल मीडिया कोई पैमाना है तो ये सच है कि लोगों ने ये माना कि सुंदरराजन ने जरूरत से ज्यादा प्रतिक्रिया दी. घटना के कुछ ही समय बाद सोशल मीडिया पर बहुत सारे हैशटैग घूमने लगे जिसमें सुंदरराजन की आलोचना की जा रही थी. एक पार्टी जो तमिलनाडु में कमल खिलाना चाहती है उसके लिए भले ही छोटा सही लेकिन एक झटका तो है.
( फ़र्स्टपोस्ट पर टी एस सुधीर की स्टोरी से इनपुट्स के साथ )
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