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अगला बैड लोन बन सकता है LAP

फिस्कल ईयर 2014 से तीन गुना ज्यादा बढ़ सकती है डेलिक्वेंसी रेट

Updated On: Jun 01, 2018 05:26 PM IST

Pratima Sharma Pratima Sharma
सीनियर न्यूज एडिटर, फ़र्स्टपोस्ट हिंदी

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बैंकों, नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों और हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों का लोन एगेंस्ट प्रॉपर्टी (LAP) पोर्टफोलियो आने वाले दिनों में बैड लोन बन सकता है. इंडिया रेटिंग एवं रिसर्च लिमिटेड की एक स्टडी में इसका खुलासा हुआ है.

LAP में डेलिक्वेंसी रेट्स अगली दो से चार तिमाहियों में बढ़कर 5 पर्सेंट तक जा सकता है. इस हिसाब से फिस्कल ईयर 2014 के मुकाबले इसमें तीन गुना इजाफा हो जाएगा. डेलिक्वेंसी रेट के मायने लोन के उस हिस्से से है, जिसके पेमेंट में 90 दिनों से ज्यादा देर हो चुकी है.

प्रॉपर्टी की कीमतें घटने से ग्राहक गिरवी जमीन या घर छुड़ाने के लिए लोन चुका नहीं रहे हैं. रेटिंग एजेंसी के डायरेक्टर और को-हेड फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशंस प्रकाश अग्रवाल ने कहा, 'अगली चार तिमाहियों में एलएपी डेलिक्वेंसी बढ़कर 5 पर्सेंट हो जाएगी. फिस्कल ईयर 2016 में यह 3 पर्सेंट और जून में 3.5 पर्सेंट थी.'

उन्होंने कहा, 'खासतौर पर मेट्रो और बड़े शहरों में प्रॉपर्टी की कीमतें स्थिर हो गई हैं. मीडियम और लार्ज LAP के ये अहम स्रोत थे. दूसरी तरफ जोखिम से बचने के लिए बैंक भी रीफाइनेंसिंग से बच रहे हैं. ऐसे में आने वाले दिनों में इस पर दबाव बढ़ना तय है.'

रेटिंग एजेंसी के अनुमान के मुताबिक करीब 2.5 लाख करोड़ रुपये के लोन प्रॉपर्टी के बदले दिए गए हैं. हालांकि ज्यादातर बैंकों ने अपने इस पोर्टफोलियो का खुलासा नहीं किया है. स्टडी के लिए सिर्फ 17 एचएफसी और एनबीएफसी के 1.1 लाख करोड़ रुपए का पोर्टफोलियो ही उपलब्ध हो पाया.

स्टडी के लिए उपलब्ध सभी कंपनियों के बहीखाते के अध्ययन के बाद यह पता चला कि पिछले दो साल से लगातार डेलिक्वेंसी रेट बढ़ रही है.

नए लोन की डेलिक्वेंसी रेट पुराने लोन से कम है. रिपोर्ट के मुताबिक, 'LAP मार्केट बेहद नाजुक दौर में है। इसकी यील्ड घट रही है और क्रेडिट कॉस्ट बढ़ रहा है.'

रेटिंग एजेंसी का मानना है कि बैंकों और दूसरी जमी-जमाई कंपनियों से टक्कर मिलने के कारण एनबीफसी जोखिम से समझौता कर रही हैं. ज्यादातर मामलों में प्रॉपर्टी का वैल्यूएशन थर्ड पार्टी वैल्युअर से कराई गई है. इनका कोई तय मानक नहीं होता है.

इंडस्ट्रियल, कमर्शियल, फ्रीहोल्ड लैंड और खाली पड़ी रिहाइशी प्रॉपर्टी जैसे नॉन रेजिडेंशियल प्रॉपर्टी को बैंक आसानी से गिरवी रखने लगे हैं. कुछ कंपनियों के लिए यह अनुपात 30 पर्सेंट तक पहुंच गया है.

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