'ग़ालिब' छुटी शराब पर अब भी कभी-कभी
पीता हूं रोज़-ए-अब्र ओ शब-ए-माहताब में
सावन के मौसम में घटाएं अपने शबाब पर हों, रिमझिम बारिश की बूंदे तन से लेकर मन को भिगो रही हो और हवा में मिट्टी से उठती सोंधी महक घुली हो, तो मूड बन ही जाता है. गालिब ने शायद ऐसे ही किसी कमजोर वक्त के लिए ये शेर पढ़ा था. मुद्दतें बीत गई लेकिन उनके पढ़े शेर पर यकीं अब तक बना हुआ है और इसी यकीं पर कभी कभार हो ही जाता है.
वैसे भी सबका कलेजा नीतीश कुमार जैसा पत्थरदिल नहीं होता कि एक बार कमिटमेंट कर ली तो कर ली. कुछ हमारे आपके जैसे लोग न्याय व्यवस्था में भी है, तभी तो अब तक इंसाफ से उम्मीद बंधी हुई है.
तो बात इतनी सी है कि आखिर मय मयखानो और पैमानों की सुनवाई में आखिरकार सुप्रीमकोर्ट का दिल पिघल ही गया. पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा बेदर्द सा फैसला सुनाया था. लाखों करोड़ों लोगों के दिल बैठ गए थे. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि अब से हाइवे के आस-पास नो शराब. कोर्ट ने हाइवे के 500 मीटर के दायरे में शराब बेचने पर रोक लगा दी थी. मंगलवार को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने ये रोक उठा ली. कोर्ट ने कहा कि शहरों से गुजरने वाले हाइवे पर ये रोक नहीं होगी. यानी शहरों से गुजरने वाले हाइवे पर शराब के ठेके फिर से गुलजार होंगे.
सुप्रीम कोर्ट के इस एतिहासिक राहत वाले फैसले का मर्म सब नहीं समझ सकते. जो इस रास्ते पर चले ही नहीं वो भटकने का लुत्फ क्या जाने. ऐसे ही किसी मौके के लिए शायद जाहिद ने ये शेर पढ़ा था कि—
लुत्फ़-ए-मय तुझ से क्या कहूँ ज़ाहिद
हाए कम-बख़्त तू ने पी ही नहीं
कोई मामूली बात नहीं है साहब गालिब से लेकर जौक और जाहिद तक से जिंदगी के सबक सीखने की बात है. शायद इसी की खातिर सुप्रीम कोर्ट को पिघलना ही पड़ा. सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ शराब बेचने के फैसले पर छूट नहीं दी है. जिंदगी की उलझनों से निकलने की छूट दी है... गमों और दुश्वारियों से निपटने की छूट दी है... हंसी और खुशी में मचलने की छूट दी है.
एक शहर से कोई हाइवे गुजर जाए तो इसमें लोगों का क्या दोष. हाइवे बनाने से पहले शहर के लोगों से पूछा था कि भइया पीने वाले यहां से 500 मीटर दूर जाकर बसें. लोगों ने अपना आशियाना इसलिए तो नहीं बनाया था कि एक दिन उसके आसपास हाइवे बनेगा और सुप्रीम कोर्ट हाइवे के नाम पर उन्हें जिंदगी के लुत्फ से महरुम कर देगी. गोकि इतनी नफरत से आखिर किसका भला होता. वो भी उनसे जो दो घूंट के लिए हर तरह के नफरत भुला बैठें.
पिला दे ओक से साक़ी जो हम से नफ़रत है
पियाला गर नहीं देता न दे शराब तो दे
उस पर सुप्रीम कोर्ट ने हाइवे के 500 मीटर के दायरे में शराब बेचने पर बैन तो लगा दिया था. लेकिन ये भूल गई कि मंदिर मस्जिद के बैर से भी ऊपर मधुशाला पर प्रतिबंध के इतना संजीदा फैसले का असर क्या होगा. असर ये हुआ कि रातोंरात शहरों से हाइवे गायब होने लगी. कल तक जिसे हाइवे के नाम से जाना जा रहा था. वो एक दिन में डिस्ट्रिक रोड में बदल गई. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी शराब की दुकानें वहीं की वहीं रही हाइवे के नाम बदल गए. ये है मय मयखाने और पैमाने की ताकत.
ऐ 'ज़ौक़' देख दुख़्तर-ए-रज़ को न मुंह लगा
छुटती नहीं है मुंह से ये काफ़र लगी हुई
मुंह की लगी हुई कहां छूटती है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यहां मयखानों का माहौल गमगीन था. कारोबारियों को करोड़ों का घाटा हो रहा था. सरकार के खजाने की आमद घट गई थी. सरकार को हाइवे बनाने के लिए पैसे चाहिए. खजाने में पैसे आम जनता की जेब से ही आती है. बड़ा हिस्सा शराब बिक्री से आता है. और सुप्रीम कोर्ट ने उसी पर रोक लगा दी.
अच्छा हुआ कि वक्त रहते सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला वापस ले लिया. अब शहरों में हाइवे के किनारे बने मयखानों में जगमग होंगे. जाम के प्याले झलकेंगे. फिर से जिंदगी अपनी रौ में होगी. फिर से गम गलत करने के बहाने होंगे. फिर से हंसी-खुशी में दावतें होंगी और फिर से छलकेंगे जज्बात. और आखिर में..
कुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गई
आओ कहीं शराब पिएं रात हो गई
पुणे जिले के भीमा कोरेगांव में इसी साल हुई हिंसा की गवाह रही 19 साल की दलीत लड़की का शव एक कुएं से बरामद किया गया.
केट मिडलटन और प्रिंस विलियमसन की यह तीसरी संतान महारानी एलिजाबेथ का छठा प्रपौत्र है और शाही गद्दी का पांचवां उम्मीदवार भी
पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनावों के लिए नए सिरे से नामांकन दाखिल करने के मुद्दे पर बीरभूम जिले के सूरी में आज हिंसा भड़क गई जिसमें एक शख्स की मौत हो गई और कुछ अन्य घायल हो गए.
उपचार प्रक्रिया के मुताबिक मरीज का पैर सुन्न कर दिया गया था इसलिए उसको इसका एहसास तक नहीं हुआ