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पैन से जुड़ेगा आधार: क्या इससे हर मुश्किल होगी आसान

सरकार ने ब्लैकमनी पर लगाम की कोशिशें तो की हैं लेकिन जीएसटी के लूपहोल से ज्यादा फायदा नहीं होगा

Updated On: Jun 13, 2017 12:36 PM IST

S Murlidharan

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पैन से जुड़ेगा आधार: क्या इससे हर मुश्किल होगी आसान

तो आखिर फैसला हो गया ! 1 जुलाई 2017 से आधार को परमानेंट अकाउंट नंबर (पैन) से जोड़ने के शासनादेश को लागू करने की राह साफ हो गई. आधार और पैन को जोड़ने की कवायद फाइनेंस एक्ट 2017 के तहत हुई है.  इस पर सुप्रीम कोर्ट ने भी अपनी मुहर लगा दी है.

फाइनेंस एक्ट की इस कवायद के पीछे वित्तमंत्री का तर्क था कि अगर आधार-नंबर को पैन से नहीं जोड़ा जाता है तो कालेधन पर लगाम लगाने में मुश्किल आएगी. एक से ज्यादा फर्जी पैन बनवाकर इनकम टैक्स अधिकारियों को धोखा देंगे और पेनाल्टी से बच जाएंगे.

आधार बायोमीट्रिक खूबियों से लैस है, लिहाजा ऐसे लोगों के लिए गड़बड़ी करना मुश्किल हो जाएगा. मुमकिन है कि कोई अपनी अंगुलियों की छाप में हेर-फेर कर ले, लेकिन आंखों की पुतलियों को बदला नहीं जा सकता. मेडिकल साइंस शरीर के रंग-रूप में बदलाव कर सकता है लेकिन आंख की पुतली की बनावट को बदलना नामुमकिन है. ठीक है, चलो मान लिया !

सरकार की रणनीति कितनी कारगर?

लेकिन टैक्स से बचने की जुगत भिड़ाने वाले बहुत पहले से जानते हैं कि टैक्स वसूली करने वाले अधिकारियों से उलझना ठीक नहीं है. जीएसटी काउंसिल ने छोटे व्यापारी को ललचाने के लिए एक लंबा फंदा फेंका है.

सरकार ने छोटे कारोबारियों को रजिस्ट्रेशन के लिए सालाना 20 लाख टर्नओवर (कारोबार) की सीमा तय की है. लिहाजा, ज्यादातर व्यापारी अब खुद को छोटा कारोबारी बताएंगे.

इसके नतीजे कुछ वैसे ही होंगे जैसा कि प्रतिबंध लगाने पर होते हैं. प्रतिबंध लगाने के पीछे नीयत नेक हो सकती है लेकिन प्रतिबंध लगाना अव्यावहारिक साबित होता है क्योंकि इससे चोरी-छिपे खरीद-बेंच और तस्करी को बढ़ावा मिलता है. देश की माली हालत और व्यक्ति की सेहत के लिए यह कहीं ज्यादा नुकसानदेह है.

ठीक इसी तरह जो लोग किसी चीज को नैतिक तकाजों से देखते हैं उन्हें इस बात की खुशी होगी कि चलो आधार को पैन से जोड़ दिया गया. जिन्हें छोटा कारोबारी बने रहने में संतोष है या फिर जिन्होंने इस नियम पर अभी-अभी भरोसा किया है अथवा जिनपर इस नियम का सीधे-सीधे कोई असर नहीं पड़ने वाला उन सबके मन में इसके लिए दुराव पैदा होगा.

सरकार को लगता रहेगा चूना?

जीएसटी की नई व्यवस्था के तहत जो लोग खरीद-बिक्री के सबसे आखिरी छोर पर हैं. यानी खुदरा दुकानदार, वे जानते-बूझते खुद को छोटा कारोबारी दिखाएंगे क्योंकि उन्हें इनपुट क्रेडिट की जरुरत नहीं होती. जबकि खुदरा दुकानदार को छोड़कर तमाम कारोबारियों के लिए इनपुट क्रेडिट एक जरूरी चीज है.

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जीएसटी व्यवस्था की सबसे बड़ी नाकामी तो यह है कि उसने पेट्रोलियम जैसे महत्वपूर्ण उत्पाद को अपने विचार के दायरे में नहीं रखा और छोटे कारोबारियों की इस मांग को मान लिया कि उनके साथ कोई छेड़छाड़ ना की जाए.

अब यही छोटे व्यापारी जीएसटी की व्यवस्था से बाहर रहने की अपनी कोशिश में कामयाब होने के बाद तय की गई सीमा को लांघने की बढ़-चढ़कर कोशिश करेंगे और टैक्स वसूल करने वाले अधिकारियों से बचने की अपनी बुद्धिमानी दिखाएंगे.

आखिर क्या करे सरकार?

सरकार को चाहिए था कि वह जीएसटी के फंदे में कोई झोल ना छोड़ते हुए पहले व्यापारी समुदाय के इर्द-गिर्द शिकंजा कसती ताकि ना तो उन्हें टैक्स-कटौती की छूट हासिल हो और ना ही उससे बच निकलने का उनके पास कोई चारा हो.

छोटे कारोबारियों के लिए सहूलियती टैक्स-स्कीम लाते हुए उनके बारे में मान लिया गया कि किसी एक वित्त वर्ष में कारोबार 1 करोड़ से ज्यादा का नहीं होता. वे व्यापार से हुए अपनी करयोग्य मुनाफे पर 8 फीसदी टैक्स देना कबूल कर लेंगे. यह एक तरह से छोटे कारोबारियों से शांति-समझौता करने वाली बात हुई.

क्या है लूपहोल?

छोटे कारोबारी अभी टैक्स अदायगी के फंदे में आ ही रहे थे कि सरकार ने उन्हें जीएसटी में छूट देकर एक तरह से मौका दे दिया. अब होगा यह कि 1 करोड़ रुपए का सालाना कारोबार करने वाले लोग 5 अलग-अलग नाम से व्यापार करेंगे. और यह बताएंगे कि उनका सालाना कारोबार 20 लाख रुपए से ज्यादा नहीं होता. बेनामी कानून का उल्लंघन किए बगैर ऐसा कर सकते हैं.

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दूसरे शब्दों में कहें तो सरकार ने एक गैरजरूरी हड़बड़ी दिखाई जिसकी उम्मीद नहीं की जा रही थी. सरकार को चाहिए था कि वह पहले टैक्स अदा करने वालों की तादाद में इजाफा करती, फिर पैन को आधार से जोड़ने की पहल करती.

यह सोचना कि एक से ज्यादा पैन कार्ड रखने वाले सिर्फ इंडिविजुअल हैं तो यह सिर्फ भ्रम है. देश में कागजी कंपनियों की बाढ़ आई हुई है. इनमें से ज्यादातर निजी कंपनियां हैं और सिर्फ काले धन को सफेद बनाने में लगी हैं.

देश में दान से चलने वाले हजारों धार्मिक और पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट हैं. लोग इनका इस्तेमाल टैक्स अदायगी से बचने में एक औजार की तरह करते हैं. वित्तमंत्री अरुण जेटली को चाहिए था कि पहले वे इन संस्थानों पर लगाम कसते. लेकिन उन्होंने इंडिविजुअल को निशाना बनाने का आसान रास्ता चुना. टैक्स वसूली करने वाले हमेशा से ही आसान शिकार की तलाश में रहते हैं.

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