केंद्रीय कैबिनेट ने एक नया विधेयक पारित किया है जिसके मुताबिक कुष्ठ को तलाक का आधार नहीं बनाया जा सकता है. पर्सनल लॉ (संशोधन) विधेयक 2018 में ईसाइयों के लिए तलाक कानून, डिजॉल्यूशन ऑफ मुस्लिम मैरिज एक्ट, हिंदू विवाह कानून, विशेष विवाह अधिनियम और हिंदू एडॉपशन्स एंड मेन्टेनेंस एक्ट में संशोधन की बात कही गई है. ताकि कुष्ठ को तलाक का आधार बनाए जाने को हटाया जा सके.
कानून मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि तलाक के लिए कुष्ठ को आधार बनाना कानून का हिस्सा था. क्योंकि जब ये कानून बने थे उस समय कुष्ठ लाइलाज बीमारी थी. अधिकारी ने बताया, ‘बहु औषधीय उपचार के माध्यम से कुष्ठ का पूरी तरह उपचार हो सकता है. इसलिए इस प्रावधान को कानून में रखना उचित नहीं है.’
हाल की एक रिपोर्ट में कानून आयोग ने सिफारिशें की थी कि उन कानूनों और प्रावधानों को हटाया जाए जो कुष्ठ प्रभावित लोागें से भेदभाव करते है. इसके अलावा भारत ने संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किया है. जिसके तहत कुष्ठ से पीड़ित लोगों से भेदभाव खत्म करने की अपील है. अधिकारी ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने भी 2014 में केंद्र और राज्य सरकारों से कहा था कि कुष्ठ प्रभावित लोगों को मुख्य धारा में शामिल करने के लिए कदम उठाएं.
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