कानून आपके जीवन के हर पहलू में उपस्थित है.आपके विवाहित जीवन में आपके साथी के साथ, आपके रिश्ते में, कानून यह तय करता है कि आपकी उनके साथ वैध शादी है या नहीं. आपके विश्वविद्यालय में कानून यह तय करेगा कि आपके वरिष्ठ आपसे कैसा व्यवहार करते हैं. सड़कों पर, कानून यह निर्धारित करेगा कि आप कैसे ड्राइव करते हैं और कैसे चलते हैं. कार्यस्थल पर कानून इस बात की रूपरेखा तैयार करेगा कि आपके सहकर्मी आपके साथ कैसा व्यवहार करते हैं. आपकी धार्मिक प्रस्तुतता और यौन नीति दोनों का कानूनी प्रभाव आपकी विरासत और संपत्ति पर होता है. संक्षेप में, कानून एक मानवीय अनुभव है.
इस मानवीय अनुभव को बेहतर करने के लिए यह आवश्यक है कि लोगों की कानूनी जागरूकता को बढ़ाया जाए एवं उनका कानूनी सशक्तिकरण किया जाए. कानूनी सशक्तिकरण यह सुनिश्चित करेगा कि न केवल लोगों को अपनी स्वयं की कानूनी समस्याओं को हल करने के लिए सही जानकारी पर उपलब्ध किया जाए, बल्कि लोकतांत्रिक और नागरिक भागीदारी को भी प्रोत्साहित किया जाएगा.
नागरिकों को अपने कानूनी अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में शिक्षित करने के लिए एक बुनियादी ढांचा होना चाहिए जो इसका समर्थन करता है. हमारे लोकतंत्र के दिल में एक बुनियादी विरोधाभास है. एक ओर, 'कानून का शासन' सर्वोच्च है, सभी को कानून का पालन करना होगा, और कानून की 'अज्ञानता कोई बहाना नहीं है'. दूसरी ओर, कानून जटिल हैं, उपयोग करना मुश्किल है और पूरी तरह से समझना असंभव है. विशेष रूप से भारत में, भाषा, शिक्षा और तकनीकी पहुंच के अवरोध कानूनी जागरूकता की कमी की समस्या को बढ़ाते हैं.
केवल कानून के ज्ञाता के लिए नहीं, बल्कि आम नागरिक के लिए बनाया गया है कानून
कानून सशक्तिकरण का एक उपकरण है, लेकिन आम तौर पर आम आदमी के लिए कानून एक ऐसी चीज़ है जिससे बच के रहना ही बेहतर माना जाता है. प्रसिद्ध लेखक आर.के. नारायण की लघु कहानी 'गेटमैन का उपहार' में, कानून का डर यह दर्शाता है कि एक रेजिस्टर्ड लेटर प्राप्त करने से कैसे किताब का मुख्य पात्र पागल हो जाता है. रेजिस्टर्ड लेटर आमतौर पर कानूनी कार्यवाही में उपयोग किए जाते हैं. कानून को जानने से लोग अपने आप को सुरक्षित रख सकते हैं, अपने अधिकारों का दावा कर सकते हैं और न्याय के लिए लड़ाई कर सकते हैं जब उनके साथ अन्याय हुआ है. कानून केवल कानून के ज्ञाता के लिए नहीं, बल्कि आम नागरिक के लिए बनाया गया है.
यहां दो मुख्य मुद्दे हैं. पहला कानूनी जानकारी की कमी है. पुस्तकें और प्रकाशन जो कानूनी जानकारी का विस्तार करते हैं, कानून की प्रकृति के कारण, विस्तृत हैं, इसलिए पढ़ने मैं चुनौतीपूर्ण साबित होते हैं. इसका मतलब यह भी है कि वे आम आदमी की आर्थिक सीमा से बाहर हैं. राज्य के कानून केवल महंगे नहीं हैं, वे अधिकांश सामान्य स्रोतों से पूरी तरह से अनुपलब्ध हैं. डिजिटाइसेशन से यह समस्या हल हो सकती है, लेकिन हमारे कानून 1800 के दशक से शुरू होते हैं, और लगातार बदलते रहते हैं. जानकारी को सटीक रखने के लिए बहुत समय और संसाधनों की आवश्यकता है.
दुर्भाग्यवश कानून से संबंधित जानकारियां वेबसाइटों के एक जटिल भूलभुलैया में छितरी हुई है
वैध रूप से, यह कहा जा सकता है कि आम लोगों तक कानून की मुफ्त पहुंच प्रदान करना सरकार का कर्तव्य है. दुर्भाग्य से, कानून से संबंधित जानकारी केंद्रीय और राज्य स्तर पर विभिन्न विभागों द्वारा संचालित वेबसाइटों के एक जटिल भूलभुलैया में छितरी हुई है और छिपी हुई है. ज्यादातर वेबसाइटों में, उपलब्ध कानूनी संसाधनों का कोई विवरण उपलब्ध नहीं है, ऑनलाइन मदद के लिए कोई प्रावधान नहीं है, वेबसाइट बहुत पेचीदा है और कानूनी जानकारी कैसे प्राप्त की जाए, इस पर कोई स्पष्ट निर्देश नहीं हैं.
यह देखते हुए, भारत के केंद्रीय सूचना आयोग (एक सरकारी एजेंसी, जो सूचना के अधिकार अधिनियम से संबंधित शिकायतों से निपटने के लिए स्थापित है) ने मई 2015 में पारित एक आदेश में कहा है कि 'किसी भी सरकार के लिए यह असंभव है की लोगों को सुपाठ्य रूप में सूचित किए बिना उनके कानून का पालन करने की अपेक्षा करें'.
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भले ही कानून का पाठ उपलब्ध हो, लेकिन क्या यह कानूनी जागरूकता बढ़ाने के लिए पर्याप्त है? नहीं , और इसके पीछे का कारण है हमारे कानून लिखने का ढंग. बुनियादी जानकारी को समझने के लिए कानून की पेचीदा बनावट और जटिल भाषा का उपयोग और प्रयोग बहुत बड़ी बाधाएं बन जाती हैं.
जटिल भाषा की समस्या के अलावा केंद्रीय कानून मुख्य रूप से अंग्रेजी में हैं
क़ानूनी जागरूकता के लिए यह काफी नहीं है की केवल कानूनी जानकारी उपलब्ध हो. कानून को सुलभ और समझने योग्य होना भी उतना ही महत्वपूर्ण है. इसको हासिल करने के लिए कई तरह के उपाय किए जा सकते हैं. कानूनों को एक सरल गैर-तकनीकी तरीके से समझाया जाना चाहिए जिसे आम आदमी
द्वारा भी समझा जा सकता है. इस दृष्टिकोण से सरकार को कानून लिखते समय ध्यान मे रखना होगा. हमारे क़ानूनों का पाठ स्पष्ट, संक्षिप्त और सरल होना चाहिए. हमें ऐसे क़ानूनों से दूर जाना चाहिए जो तकनीकी शब्द और अस्पष्टता से भरे हैं.
जानकारी की कमी और जटिल भाषा के मुद्दों के साथ-साथ लोगों के लिए एक और बड़ी बाधा यह है कि प्रमुख कानून (केंद्रीय कानून) मुख्य रूप से अंग्रेजी में हैं. अध्ययनों के अनुसार अंग्रेजी बोलने वाली आबादी सिर्फ 12% है. 2011 की जनगणना और विभिन्न अध्ययनों के अनुसार, भारत में 40% आबादी हिंदी भाषी है. भारत में, इंटरनेट का उपयोग करने वाले लोगों में से 21% हिंदी में इंटरनेट का उपयोग करना चाहते हैं, लेकिन लोगों के लिए हिंदी भाषा में उपलब्ध कानूनी जानकारी की मात्रा काफी कम है, इस कारण उनके विकल्प सीमित हो जाते हैं.
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इस समस्या का समाधान यह है कि नागरिकों को हिंदी भाषा में कानूनों को सरल तरीके से समझाया जाए. हिंदी में सरल, कार्रवाई योग्य कानूनी जानकारी के साथ बड़े पैमाने पर सूचना प्रणाली का विकास एक सशक्त नागरिकता के निर्माण में बहुत दूर जाएगा. भारत के सामाजिक और आर्थिक विकास के साथ, यह भी महत्वपूर्ण है कि हमारे नागरिकों की कानूनी जागरूकता बढ़नी चाहिए. हम कागज़ के पन्नों पर कानून की संख्या को बढ़ाते जाएंगे लेकिन उनका अस्तित्व बेकार है, अगर वे केवल कानून के विशेषज्ञों द्वारा पढ़े और समझे जा सकते हैं.
(लेखक सुमेश श्रीवास्तव 'न्याया' में काम करते हैं, एक संगठन जो सरल भाषा में भारत के कानूनों की व्याख्या करता है. 'न्याया' 26 जनवरी 2019 को अपनी हिंदी वेबसाइट लॉन्च करने जा रहा है.)
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