विधि आयोग ने सट्टेबाजी को कानूनी मान्यता देने के लिए 145 पेज की रिपोर्ट 5 जुलाई को कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को सौंपी. मीडिया में नकारात्मक रिपोर्टिंग के बाद अगले दिन 6 जुलाई को प्रेस नोट के माध्यम से यू-टर्न लेने के लिए विधि आयोग क्यों मजबूर हुआ ?
सुप्रीम कोर्ट के दायरे से बाहर है, विधि आयोग की रिपोर्ट
क्रिकेट में सुधार के लिए लोढ़ा कमेटी की रिपोर्ट के बाद बीसीसीआई मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 2016 के फैसले से क्रिकेट में सट्टेबाजी के नियमन, कानून या प्रतिबंध हेतु विधि आयोग को विचार करने के लिए कहा था. मनमर्जी तरीके से विस्तार करते हुए विधि आयोग ने सभी खेलों में सट्टेबाजी के साथ गैंबलिंग को भी कानूनी दर्जा देने की सिफारिश कर डाली, जिस पर अब विवाद है. विधि आयोग के सदस्य प्रो. एस शिवकुमार ने अपने लिखित नोट में इस रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लघंन बताते हुए विधि आयोग की मंशा पर ही सवालिया निशान खड़ा कर दिया ?
विधि आयोग की रिपोर्ट में निजी सलाहकारों की भूमिका क्यों
विधि आयोग की रिपोर्ट के आधार पर सरकार और संसद द्वारा नियम और कानूनों में बदलाव किए जाते हैं और अभी तक 20 विधि आयोगों द्वारा 262 रिपोर्टें दी जा चुकी हैं. एक साथ चुनाव के मामले को प्रधानमंत्री मोदी कई बार उठा चुके हैं, इसके बावजूद वर्तमान 21वें विधि आयोग ने इस पर विस्तृत कानूनी समाधान और व्यवहारिक रोड़मैप पेश नहीं किया है. दूसरी तरफ समान नागरिक संहिता जैसे संवेदनशील मामले पर भी विधि आयोग ने सतही प्रश्नावली जारी करके अपने कर्तव्य की इतिश्री कर डाली. अपनी 276वीं रिपोर्ट में विधि आयोग ने कहा है कि भारत में तीन लाख करोड़ का गैंबलिंग का बाजार है. विधि आयोग के सदस्य प्रो. शिवकुमार ने अपने असहमति पत्र में गैंबलिंग की लॉबी का जिक्र किया है. सवाल यह है कि गैंबलिंग जैसे संवेदनशील मसले पर विधि आयोग ने बाहरी सलाहकारों की मदद से अधकुचरी रिपोर्ट बनाकर मीडिया में बहस क्यों शुरू करवाई ?
विधि आयोग की रिपोर्ट में कानूनी प्रावधानों पर विरोधाभास
विधि आयोग ने 6 जुलाई को जारी स्पष्टीकरण में कहा है कि उन्होंने गैंबलिंग पर प्रतिबंध लगाने की अनुशंसा की थी, लेकिन मीडिया ने मामले को गलत तरीके से पेश किया. रिपोर्ट का विस्तार से अध्ययन करने पर यह स्पष्ट है कि विधि आयोग ने गैंबलिंग और सट्टेबाजी पर नए कानून का आधार पत्र जारी किया है. विधि आयोग के अनुसार, संविधान के अनुच्छेद 249 या 252 के तहत संसद द्वारा नया कानून बनाकर सट्टेबाजी और गैंबलिंग को मान्यता दी जा सकती है.
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रिपोर्ट के अनुसार संविधान की सातवीं सूची में इंट्री-40 के तहत लॉटरी पर केंद्र सरकार द्वारा कानून बनाया जा सकता है. जबकि अनुसूची-7 में इंट्री-34 के तहत गैंबलिंग पर राज्यों द्वारा कानून बनाया जा सकता है. रिपोर्ट के अनुसार लिस्ट-1 में इंट्री-31 के तहत ऑनलाइन सट्टेबाजी और गैंबलिंग के बारे में संसद द्वारा कानून बनाया गया है. जबकि सच यह है कि इंट्री-31 में टेलीफोन, वायरलैस और संचार के माध्यमों का जिक्र तो है परंतु इसमें गैंबलिंग का उल्लेख कहीं नहीं है.
सिक्किम में ऑनलाइन गेमिंग में कारवाई पर विधि आयोग की सिफारिश क्यों नहीं ?
रिपोर्ट के अनुसार भारत में ऑनलाइन गेमिंग का बाजार 36 करोड़ डॉलर है जो 3 साल बाद एक अरब डॉलर का हो जाएगा. गैर-कानूनी गैंबलिंग पर प्रतिबंध और सख्त कारवाई करने की अनुशंसा की बजाए विधि आयोग ने कानूनी प्रावधानों पर संशय पैदा करने की कोशिश की है. रिपोर्ट में सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) इंटरमीडियरी रूल्स-2011 का जिक्र है, जिसके तहत ऑनलाइन गैंबलिंग पर प्रतिबंध है. रिपोर्ट में दूसरी तरफ यह भी कहा गया है कि सरकार इंटरमीडियरी कानून में बदलाव करके ऑनलाइन गैंबलिंग को गैर-कानूनी घोषित करे. जब ऑनलाइन गैंबलिंग पर प्रतिबंध है तो फिर उन नियमों पर विधि आयोग द्वारा दुविधा क्यों पैदा की जा रही है ? क्या यह बेहतर नहीं होता कि विधि आयोग केंद्र सरकार को यह अनुशंसा करता कि सिक्किम सहित देश के अन्य राज्यों में ऑनलाइन गैंबलिंग पर प्रतिबंध लगाया जाए.
अपराधों को रोकने की बजाए उन्हें मान्यता कैसे दी जाए
रिपोर्ट के अनुसार शराब की बिक्री से सन् 2005 में बिहार को 500 करोड़ की आमदनी होती थी जो 2014-15 में बढ़कर 4000 करोड़ हो गई. इसके बावजूद बिहार सरकार ने सामाजिक हित में शराबबंदी का फैसला लिया. संविधान के अध्याय-4 में दिए गए प्रावधानों के अनुसार जनता के स्वास्थ्य और हित सुरक्षित रखने के लिए समुचित कारवाई करनी चाहिए.
विधि आयोग की रिपोर्ट में सट्टेबाजी और गैंबलिंग के सभी नुकसानदायक पहलुओं का विस्तार से जिक्र है, फिर भी उन्हें मान्यता देने की बात क्यों कही गई ? गैंबलिंग और कैसिनों के साथ सिगरेट, शराब, वेश्यावृत्ति और माफिया जैसी सामाजिक बुराइयों का सामूहिक विकास का रिपोर्ट में जिक्र है और ये सभी भारतीय कानूनों के अनुसार वर्जित भी हैं.
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गैंबलिंग की तरह इन अनेक अपराधों पर भी नियंत्रण नहीं लग रहा, तो क्या उन्हें भी कानूनी बना देना चाहिए. देश में कानून के तहत माइनिंग के लाइसेंस दिए जाते हैं, उसके बावजूद अधिकांश माइनिंग गैर-कानूनी तरीके से होती है. गैंबलिंग और सट्टेबाजी को यदि मान्यता मिल भी गई तो उससे सरकार को जीएसटी और इनकम टैक्स की आमदनी कैसे होगी ?
इन गंभीर सवालों पर विचार की बजाए विधि आयोग ने गैंबलिंग के लिए रईसों का एक नया वर्ग बनाने की सिफारिश की है, जिसके लिए संविधान का अनुच्छेद-14 इजाजत नहीं देता है. विधि आयोग की रिपोर्ट का भविष्य में एफडीआई और गैंबलिंग लॉबी द्वारा दुरुपयोग हो सकता है. यू-टर्न के बावजूद देश को यह जानने का हक है, कि सदस्य के विरोध के बावजूद विधि आयोग द्वारा कार्यकाल के अंतिम दौर में ऐसी अनीतिपूर्ण रिपोर्ट क्यों जारी की गई ?
(लेखक सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं. न्यायव्यवस्था और सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दे पर लंबे समय से लिखते रहे हैं. आधार कार्ड की अनिवार्यता से जुड़ी हुई कई उलझनों पर हमारी वेबसाइट पर इनके लेखों को यहां पढ़ा जा सकता है.)
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