'तू चाहे बसा या उजाड़. मैं नहीं रुकता. मैं तो किसान आंदोलन में जाऊंगा. मेरे भाई मर रहे हैं और मैं चुप बैठ जाऊं? मैं मरने से नहीं डरता. किसान वैसे भी तो आत्महत्या कर रहे हैं. सरकार की गोली से मर जाएंगे. एक ही बात है.'
ये बातें अपने इकलौते बेटे से कहकर घर से निकले किसान नेता लालूराम भारतीय किसान यूनियन के आंदोलन में कूद पड़े. इसके बाद 73 वर्षीय लालूराम के तीखे तेवर अौर बहादुरी एक अक्टूबर को पूरे देश ने देखी. लालूराम वही किसान हैं जो पिछले दो दिन से सोशल मीडिया पर छाए हुए हैं. दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर पुलिस से लाठी चलाकर लोहा लेते इस किसान नेता की तस्वीर काफी वायरल हो रही है.
पुलिस से लाठी चलाने का खामियाजा भी इस किसान नेता को भुगतना पड़ा. दिल्ली के किसान घाट जाने से किसानों को रोकने की कोशिश में यूपी पुलिस ने गोली चला दी जो लालूराम के दाहिने कंधे को छूकर निकली. गोली लगने के बाद भी लालूराम नहीं रुके और खून से लथपथ कंधे को लेकर आगे बढ़ते रहे और किसान घाट पहुंचे.
मैं डरने वाला नहीं हूं. कोई मुझे लाठी मारेगा तो मैं भी मारूंगा.
न्यूज 18 से खास बातचीत में लालूराम कहते हैं,' मैं डरने वाला नहीं हूं. कोई मुझे लाठी मारेगा तो मैं भी मारूंगा. पहले उस पुलिस वाले ने लाठी चलाई, उसके बाद मैंने चलाई. फिर उन्होंने मुझे गोली मार दी. इससे पहले भी किसान आंदोलन में मुझे गोली लगी है लेकिन मुझे कोई भय नहीं है. हम तो वैसे भी मर ही रहे हैं. '
हरियाणा के कैथल जिले के खुराना गांव निवासी किसान लालूराम कहते हैं कि किसान जब भी आंदोलन करते हैं पुलिस ऐसी ही कार्रवाई करती है लेकिन इससे किसानों के हौंसले डिगने वाले नहीं हैं. उन्हें 40 साल हो गए सरकार से लड़ते हुए. हरियाणा में ओमप्रकाश चौटाला की सरकार के समय कैथल के पास ही शिमला गांव में किसानों का धरना था. उस दौरान भी पुलिस के साथ गहमागहमी हुई और पुलिस ने उनकी पीठ में रबड़ की गोली मारी थी. जिसका घाव कई दिन तक रहा था.
किसान आंदोलन और धरने प्रदर्शन के कारण पुलिस की गोली कई बार खाई
लालूराम बताते हैं कि वे कभी डॉक्टर के पास दवा लेने नहीं गए. 73 साल की उम्र हो गई लेकिन कभी बीमार नहीं पड़े और दवा-गोली नहीं खानी पड़ी. लेकिन किसान आंदोलन और धरने प्रदर्शन के कारण पुलिस की गोली कई बार खाई है.
कंडेला गांव में हुए धरने में भी पुलिस ने लाठीचार्ज किया था. कई किसान मारे गए थे. उसके बाद गुलखेड़ी का किसान आंदोलन हुआ. फिर मुंबई के आजाद मैदान में किसान धरने पर बैठे. यहां भी पुलिस से झड़प हुई. करनाल और शामली में भी आंदोलन हुए. जिनमें वे शामिल हुए. यही वजह है कि हरियाणा के आधे से ज्यादा जिलों में लोग उन्हें जानते हैं और चौधरी साहब व प्रधान जी कहकर बुलाते हैं.
किसानों ने रास्ता जाम कर दिया तो गोली बरसाओ. यह हमेशा ही कहा जाता है. जबकि सच यह है कि रास्ता जाम तो पुलिस करती है और सरकार करवाती है. हम तो शांतिर्पूवक दिल्ली के किसान घाट जा रहे थे. हमें पुलिस ने रोका. इस बार भी गलती पुलिस की ही थी. सरकारें किसानों की मांगें कभी पूरी नहीं करतीं. आधी-अधूरी मांगें मानी जाती हैं. इसीलिए किसानों को हर साल-दो साल में आंदोलन करना पड़ता है.
(साभार: न्यूज 18 के लिए प्रिया गौतम की खास बातचीत)
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