हिंदी के वरिष्ठ कवि केदारनाथ सिंह का 83 वर्ष की उम्र में सोमवार को निधन हो गया है. केदारनाथ सिंह का रचनाकाल काफी लंबा रहा है. केदारनाथ सिंह सबसे पहले चर्चा में तब आए जब 1959 में प्रकाशित 'तीसरा सप्तक' में अज्ञेय ने उनकी कविताओं को शामिल किया. केदारनाथ सिंह नई कविता के दौर से कविता लेखन में सक्रिय हुए और इस बीच हिंदी कविता में जिन-जिन नई प्रवृत्तियों की शुरुआत हुई केदारनाथ सिंह की कविताओं पर इन सब प्रवृत्तियों का प्रभाव देखा जा सकता है. केदारनाथ सिंह इसी वजह से युवा कवियों के सबसे प्रेरित करने वाले कवि माने जाते हैं.
केदारनाथ सिंह का जन्म 7 जुलाई, 1934 को हुआ था. 1956 में उन्होंने बीएचयू से हिंदी साहित्य में एमए और 1964 में पीएचडी किया. केदारनाथ सिंह सिर्फ कविता लेखन में नहीं बल्कि अकादमिक जगत में भी सक्रिय थे. उन्होंने कई कॉलेजों में पढ़ाया और अंत में जेएनयू के भारतीय भाषा केंद्र से प्रोफेसर के तौर पर रिटायर हुए. रिटायर होने के बावजूद जेएनयू ने उनकी सेवाओं को देखते हुए उन्हें प्रोफेसर एमिरेटस का पद दिया था. वे एक अच्छे कवि के साथ-साथ एक अच्छे शिक्षक भी थे. उनसे पढ़ने वाले छात्रों का कहना है कि निराला की प्रसिद्ध और कठिन माने जाने वाली कविता राम की शक्तिपूजा को उनसे बेहतर हिंदी का कोई अन्य प्रोफेसर नहीं पढ़ा सकता था.
केदारनाथ सिंह को उनके साहित्यिक योगदान के लिए भारत का सबसे प्रतिष्ठित साहित्यिक सम्मान माने जाने वाले ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था. उन्हें 2013 का ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया था. यह सम्मान पाने वाले वे हिंदी के 10 वें रचनाकार थे. इसके अलावा केदारनाथ सिंह को हिंदी के कई अन्य पुरस्कार भी मिले हैं. इसमें साहित्य अकादमी पुरस्कार, व्यास सम्मान, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान और दिनकर पुरस्कार भी शामिल है.
केदारनाथ सिंह के प्रसिद्ध कविता संग्रहों में बाघ, अकाल में सारस, उत्तर कबीर और अन्य कविताएं शामिल हैं.
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